Independence Day: भारत इस बार 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. इसकी खुशी और देश प्रेम की चमक हर भारतीय की आंखों में देखी जा सकती है. वर्षों तक अंग्रेजी शासन की गुलामी में जकड़े रहे देश को मुक्त कराने के लिए कई लोगों ने जान तक की कुर्बानियां दीं. 


1857 की क्रांति से लेकर देश की आजादी तक कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थीं, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी सुनिश्चित की. आइये उन घटनाओं के बारे मे जानते हैं. 


1857 की क्रांति


1857 की क्रांति को भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है. अंग्रेजों ने इसे 'सिपाही दंगे' का नाम दिया था. अंग्रेजों के खिलाफ देशवासियों को एकजुट करने के प्रयास के तहत इस क्रांति का बिगुल 10 मई 1857 को मेरठ से फूंका गया था, जिसका असर धीरे-धीरे दिल्ली, आगरा, कानपुर और लखनऊ में हुआ.


यह विद्रोह असफल रहा था, लेकिन इस रूप में सफल भी हुआ कि इससे देशवासी संपूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन की ओर प्रेरित हुए. इस क्रांति के फलस्वरूप देश से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का नियंत्रण खत्म हो गया था. 1858 में ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत का नियंत्रण छीन लिया था और देश ब्रिटिश उपनिवेश बन गया था. इसके बाद ब्रिटिश सरकार भारत में एक गवर्नर जरनल नियुक्त कर सीधे शासन करने लगी थी.


1885 में अस्तित्व में आई कांग्रेस


19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश भारत में कई राजनीतिक संगठनों का उदय हुआ, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Congress) है, जिसकी स्थापना 1885 में हुई. इसे देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कहा जाता है. शुरू में इसका लक्ष्य एक ऐसा मंच तैयार करने का था, जिसके जरिये शिक्षित देशवासियों की बड़ी राजनीतिक भूमिका सुरक्षित करने की खातिर भारतीयों और ब्रिटिश राज के बीच नागरिक और राजनीतिक चर्चा हो सके. 


बाद में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन आयोजित करने में अहम भूमिका निभाई.


गांधी जी लौटे भारत, ज्वाइन की कांग्रेस


1915 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए और कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए. 1920 में उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व संभाला और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया. कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी, जिसे अंग्रेजों ने मान्यता नहीं दी थी.


लखनऊ समझौता


1916 में लखनऊ समझौता हुआ. यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच हुआ था. इसमें मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका अहम बताई जाती है, जो उस समय कांग्रेस के साथ ही मुस्लिम लीग के सदस्य थे. उन्होंने दोनों पार्टियों कांग्रेस और मुस्लिम लीग को इस रूप में एकमत करने में भूमिका निभाई थी कि ब्रिटिश सरकार पर भारत के प्रति ज्यादा उदार नजरिया अपनाने और भारतीयों को देश चलाने के लिए ज्यादा अधिकार दिए जाने का दबाव बनाया जाए.


जलियांवाला बाग नरसंहार


13 अप्रैल 1919 को एक अंग्रेज अधिकारी की ओर से दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद 'जलियांवाला बाग नरसंहार' किया गया था. ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने महिलाओं और बच्चों समेत जनसमूह पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए थे. इस नरसंहार से पैदा हुए आक्रोश के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) शुरू हुआ था.


असहयोग आंदोलन का हुआ असर


असहयोग आंदोलन 1920 में भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण चरण था. इसमें शामिल प्रदर्शनकारियों ने ब्रिटिश सामान को खरीदने से इनकार कर दिया और स्थानीय हैंडीक्राफ्ट चीजों को अपनाया. इसके अलावा शराब की दुकानों के खिलाफ धरने दिए गए और लोगों में स्वाभिमान और भारतीय मूल्यों की अलख जगाई गई.


कमजोर पड़ गया ब्रिटिश साम्राज्य


1935 में भारत सरकार अधिनियम और एक नए संविधान के निर्माण ने अगले दशक और उसके बाद होने वाली घटनाओं की नींव रख दी थी. वहीं, प्रथम विश्वयुद्ध के दुष्प्रभावों को दूर करते हुए ब्रिटिश संसाधनों में कमी आने लगी थी और 1940 में द्वितीय विश्वयुद्ध में इग्लैंड के शामिल होने से ब्रिटिश साम्राज्य कमजोर पड़ गया. यह घटना भारत का भविष्य तय करने में अहम मानी गई.


भारत छोड़ो आंदोलन


1942 में 'भारत छोड़ो आंदोलन' शुरू हुआ. इस आंदोलन के जरिये भारत से अंग्रेजों की तत्काल वापसी की आवाज उठाई गई. आंदोलन से बौखलाए अंग्रेजों ने ज्यादातर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को जेल में डाल दिया था. आजादी के लिए संघर्ष के दौरान महात्मा गांधी की अगुवाई में चलाए गए रौलट सत्याग्रह, चंपारण सत्याग्रह, खेड़ा आंदोलन, नमक सत्याग्रह जैसे आंदोलनों ने भी भारतीय जनमानष को एकजुट करने का काम किया और उन्हें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करने की प्रेरणा दी. 


क्रांतिकारियों का रहा अहम योगदान


एक तरफ गांधी जी की अगुवाई में अहिंसक आंदोलन चलाए जा रहे थे तो दूसरी तरफ भारत के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत की नाक में दम कर दिया था. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, सूर्य सेन, राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी, बटुकेश्वर दत्त, अशफाकउल्ला खां और उधम सिंह जैसे न जाने कितने क्रांतिकारियों ने देश की स्वतंत्रता के लिए जान की परवाह नहीं की. परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को देश अंग्रेजी शासन से आजाद हो गया.


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