independence day 2024: 'प्रधानमंत्री की दुर्भावना और विद्वेष की कोई सीमा नहीं...', जयराम रमेश क्यों हुए पीएम मोदी पर हमलावर?
independence day: दरअसल, पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने संबोधन में कम्युनल सिविल कोड की बात कही, जिसे लेकर जयराम रमेश ने कहा कि पीएम मोदी ने डॉ. आंबेडकर का अपमान किया है.
Jairam Ramesh Attack PM Narendra Modi: कांग्रेस के महासचिव और सीनियर नेता जयराम रमेश ने एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला किया है. स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कम्युनल सिविल कोड की बात कही, जिसे लेकर अब कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल पीएम नरेंद्र मोदी को घेर रहे हैं.
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा, “नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की दुर्भावना और विद्वेष की कोई सीमा नहीं है. आज के उनके लाल किले के भाषण में यह फिर पूरी तरह से दिखा.”
'यह डॉ. आंबेडकर का घोर अपमान'
जयराम रमेश ने एक्स पर आगे लिखा, “यह कहना कि अब तक हमारे पास कम्युनल सिविल कोड रहा है, डॉ. आंबेडकर का घोर अपमान है. डॉ. आंबेडकर हिंदू पर्सनल लॉ में सुधार के सबसे बड़े समर्थक थे, जिन्हें 1950 के दशक के मध्य तक वास्तविक रूप दिया गया. इन सुधारों का RSS और जनसंघ ने काफी विरोध किया था.”
नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की दुर्भावना और विद्वेष की कोई सीमा नहीं है। आज के उनके लाल किले के भाषण में यह पूरी तरह से दिखा।
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) August 15, 2024
यह कहना कि अब तक हमारे पास कम्युनल सिविल कोड रहा है, डॉ. अंबेडकर का घोर अपमान है। डॉ. अंबेडकर हिंदू पर्सनल लॉ में सुधार के सबसे बड़े समर्थक थे, जिन्हें…
21वें विधि आयोग की रिपोर्ट की दिलाई याद
जयराम रमेश ने एक पेज पोस्ट करते हुए कहा कि ये देखिए नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की ओर से नियुक्त 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को पारिवारिक कानून के सुधार पर अपने 182-पृष्ठ के परामर्श पत्र के पैरा 1.15 में क्या कहा था. पत्र में कहा गया था कि जब भारतीय संस्कृति की विविधता का जश्न मनाया जा सकता है और मनाया जाना चाहिए, तब इस प्रक्रिया में विशेष समूहों या समाज के कमजोर वर्गों को वंचित नहीं किया जाना चाहिए. इस पर विवाद के समाधान का संकल्प सभी भिन्नताओं को खत्म करना नहीं है.. इसलिए समान नागरिक संहिता न तो इस स्टेज पर जरुरी है और न ही वांछित. अधिकांश देश अब विभिन्नताओं को मान्यता देने की ओर बढ़ रहे हैं और इसका अस्तित्व भेदभाव नहीं है, बल्कि यह एक मजबूत लोकतंत्र का संकेत है.
ये भी पढ़ें