भारत गुरुवार (15 अगस्त, 2024) को 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. जब भी ये दिन आता है तो वीर जवानों का वह बलिदान याद आ जाता है, जिसने हमें आजादी दिलाई. आजादी और बंटवारे से जुड़ी कई अनसुनी कहानियां भी हैं. ऐसा ही किस्सा है ब्रिटिश भारतीय सेना के बंटवारे का. जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो सेना को भी बांट दिया गया. हालांकि, मोहम्मद अली जिन्ना बंटवारे से पहले ही दोनों सेनाओं के विभाजन पर अड़ गए थे, जिसमें सेना के 98 फीसदी मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान को चुना. इनमें कुछ ऐसे भी मुस्लिम लोग थे, जिन्होंने पाकिस्तान जाने से मना कर दिया. इन्हीं में शामिल थे लेफ्टिनेंट कर्नल इनायत हबीबुल्लाह, ब्रिगेडियर मुहम्मद उस्मान और ब्रिगेडियर मुहम्मद अनीस अहमद खान. 


ब्रिगेडियर मुहम्मद उस्मान ने अक्टूबर 1947 में कबाइलियों से लड़ते हुए कहा था, 'मौत तो देर-सवेर आनी ही है, लेकिन मैदन-ए-जंग में मरने से बेहतर और क्या होगा सकता है. मैं मर रहा हूं, लेकिन जिस इलाके के लिए हम लड़े, उसे दुश्मन के हाथ में न जाने देना.' इन तीन मुस्लिम सैन्य अधिकारियों समेत सिर्फ 554 ऑफिसर्स ही ऐसे थे, जिन्होंने पाकिस्तान के बजाय भारत को चुना था.


सेना के बंटवारे के लिए जिद पर अड़ गए थे जिन्ना
'राइट्स ऑफ पैसेज' किताब के लेखक एचएम पटेल ने अपनी किताब में लिखा है, 'पाकिस्तान का कोई मुस्लिम भारतीय राज्य में और भारत का कोई गैर-मुस्लिम पाकिस्तान के सशस्त्र बलों में शामिल नहीं हो सकता था.' सेना के बंटवारे के समय सैनिकों के सामने ये शर्त रखी गई थी. मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान और भारत के बंटवारे से पहले ही सेना के विभाजन की मांग उठा दी थी. उनका तर्क था कि नए मुल्क के लिए सुरक्षा की जरूरत होगी इसलिए जब तक सेना का बंटवारा नहीं होगा तब तक वह सत्ता नहीं संभालेंगे.


लियाकत अली ने माउंटबेटन को लिखा था खत
7 अप्रैल, 1947 को पार्टीशन काउंसिल के सदस्य लियाकत अली ने ब्रिटिश वायसरॉय माउंटबेटन को पत्र लिखकर सेना के बंटवारे की बात कही थी. इस खत में लियाकत अली ने लिखा था, 'बिना सेना के पाकिस्तान का कोई फायदा नहीं है.' माउंटबेटन ने जिन्ना और लियाकत अली को बहुत समझाने की कोशिश की और भारत की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी लेने को भी तैयार हो गए, लेकिन दोनों अपनी मांग पर अड़े रहे. 20 जून को लियाकत अली ने कहा कि वह और जिन्ना ने तय कर चुके हैं कि जब तक हमें सेना नहीं दी जाती है, तब तक पाकिस्तान सरकार का शासन हम अपने हाथों में नहीं लेंगे इसलिए सेना का ट्रांसफर तुरंत शुरू कर दिया जाना चाहिए. 


क्लाउड औचिनलेक को दी गई सेना के बंटवारे की जिम्मेदारी
लियाकत अली के इस खत के बाद कांग्रेस के सामने ये बात रखी गई और उनसे सहमति ली गई. इसके बाद 4 जुलाई को माउंटबेटन ने कहा कि सेना के ट्रांसफर के लिए सभी नेता मान गए हैं. तत्कालीन सेना प्रमुख क्लाउड औचिनलेक को सेना के बंटवारे की जिम्मेदारी दी गई और इसके लिए एक योजना तैयार की गई. क्लाउड औचिनलेक की जीवनी के लेखक जॉन कॉनेल ने लिखा, 'सेना का बंटवारा 25 अप्रैल को ही तय हो गया था. हालांकि, यह प्रशासनिक और कूटनीतिक चीजों को दरकिनार कर सिर्फ राजनीतिक निर्णय था.'


क्लाउड औचिनलेक ने माउंटबेटन को खत लिखकर किया था आगाह
जैसे वक्त में सेना के बंटवारे का यह फैसला लिया गया, वो बेहद नाजुक स्थिति थी. जब एक तरफ सैनिकों की अदला-बदली चल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ पंजाब में बेहद नाजुक हालात थे. ऐसे में औचिनलेक ने माउंटबेटन को खत लिखकर यह कहा भी था, 'पूरे उत्तर भारत में सेना की यूनिट्स छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटी है, इन्हें इकट्ठा करना होगा और सैनिकों की अदला-बदली में 6 महीने लग जाएंगे. ऐसे में अगर कोई घटना हो जाती है या हालात बिगड़ते हैं तो सेना वापस ऐसी स्थिति में नहीं आ पाएगी कि वह कानून व्यवस्था संभाल ले.' 


एक तरफ पंजाब में हिंसा दूसरी ओर सेना का बंटवारा
पंजाब में चल रहे हालातों को देखते हुए पंजाब बाउंड्री फोर्स (PBF) बनाई गई, जिसमें 15 भारतीय और 10 पाकिस्तानी बटालियन थीं और इन्हें पंजाब सीमा के पास तैनात कर दिया गया. यह आखिरी बार था जब भारतीय सेना एक यूनिट की तरह काम कर रही थी. पीबीएफ जवानों की तैनाती के बावजूद दो लाख से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गई. भारतीय सेना की वेबसाइट पर इसके बारे में लिखा है कि यह हिंसा गृहयुद्ध जैसी थी. 1 सितंबर को पीबीएफ को भंग कर दिया गया.


बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान को कितने-कितने सैनिक मिले?
जब सैनिकों का बंटवारा हुआ तो हर तीसरे मुस्लिम जवान ने पाकिस्तान को चुना. ब्रिटिश इंडियन आर्मी में 4 लाख से ज्यादा सैनिक थे, जिनमें से 3 लाख, 91 हजार आर्मी के जवान थे, 13 हजार एयरफोर्स और 8,700 नेवी में थे. बंटवारे के बाद 2 लाख 60 हजार जवान भारत के पास चले गए और 1 लाख 31 हजार पाकिस्तान के पास. 10 हजार एयरफोर्स के जवान भारत को मिले, जबकि तीन हजान पाकिस्तान को और 5,700 नेवी के जवान भारत के पास और तीन हजार पाकिस्तान को मिले. बंटवारे से पहले ब्रिटिश इंडियन आर्मी में 30 से 36 फीसदी मुस्लिम जवान थे, लेकिन विभाजन के बाद सिर्फ 2 फीसदी ही रह गए, जबकि 98 फीसदी ने पाकिस्तान को चुन लिया.


मिलिट्री इक्विपमेंट का भी कर दिया गया बंटवारा
सेना के साथ हथियारों का भी बंटवारा किया गया. सेना के पास कुल 1 लाख 65 हजार टन वजन के मिलिट्री इक्विमेंट थे, जिनमें से 4 नावें, 12 समुद्र में माइन ढूंढ निकालने वाले जहाज यानी माइनस्वीपर्स और 1 युद्धपोत मिला. वहीं, पाकिस्तान को 2 छोटी नावें और 4 माइनस्वीपर्स मिले. इनके अलावा, ज्यादातर नेवी के ट्रेनिंग बेस और अधिकारी भी पाकिस्तान के इलाके में चले गए, जबकि भारत में ऐसे बहुत कम अधिकारी थे, जिन्हें वॉरशिप और नेवी के दूसरे जहाज चलाने आते हों.


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