Independence Day 2024: चार जून, 1947 को माउंटबेटन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर हिंदुस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी. इस घोषणा के साथ ही देश आजाद होने वाला था. इसके बाद जोधपुर और उसके आसपास की रियासतों जैसे जैसलमेर, बीकानेर आदि में पाकिस्तान में मिलाए जाने की अफवाहें तेज हो गई थीं. 


इस दौर से गुजरने वाले दो व्यक्तियों एनके शर्मा और किशन सिंह भाटी को ऊहापोह का वो दौर याद है. उन्होंने बताया, 'घोषणा हो गई कि अगर कोई हिंदुस्तान में रहना चाहता है या पाकिस्तान में रहना चाहता है तो वो इस फैसले के लिए स्वतंत्र है. 1947 के बाद 15 फरवरी, 1949 तक जैसलमेर इस असमंजस में रहा कि हम भारत में मिलें या पाकिस्तान में मिलें या फिर स्वतंत्र रहें.


जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर में थे अच्छे संबंध


बताया गया, 'जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर में एक दूसरे की रिश्तेदारी होने की वजह से तीनों में काफी अच्छे संबंध थे. जोधपुर ने उस समय पहले तो विलय पर दस्तखत कर दिए और फिर बाद में विद्रोही रुख अपना लिया. जोधपुर के महाराज ने बिटेन के अधिकारियों से भी बात की और जज के सामने भी कहा कि मैं जोधपुर का विलय नहीं करूंगा. उनका इरादा मिलने का नहीं था और उन्हें उम्मीद थी की जैसलमेर और बीकानेर मेरा साथ देंगे.'


इस दौर में जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर की जनता में भी काफी दुविधा थी कि कहीं ये राजा-महाराजा कोई गलत फैसला न कर बैठें. इन रियासतों को भारत में मिलाने में लगे वीपी मेनन ने अपनी किताब 'The Story of the Integration of the Indian States' में इस बारे में लिखा है. 


जोधपुर के राजा का अड़ियल था रवैया


किताब में लिखा है, 'जोधपुर के महाराज हनवंत सिंह को रास्ते पर लाना मुश्किल बना हुआ था. जिन्ना और मुस्लिम लीग के दूसरे नेताओं से उनके साथ बैठक हुई. इस तरह की आखिरी मुलाकात में महाराज हनवंत सिंह, जैसलमेर के युवराज महाराज कुमार गिरधर सिंह को साथ ले गए क्योंकि बीकानेर के महाराज उनके साथ जाने के लिए तैयार नहीं हुए और अकेले जाने में उन्हें डर लग रहा था.'


अपाइन्टमेंट कौन दे, इसके लिए भोपाल के नवाब से बात की. फिर उसी दिन छह अगस्त को जिन्ना से मुलाकात कराई. जिन्ना से मुलाकात करने जोधपुर के महाराज, भोपाल के नवाब और जैसलमेर के महाराज. मुलाकात में जिन्ना से कहा गया कि जो रियासतें पाकिस्तान के साथ मिल रही हैं, उन्हें आपसे क्या मिलेगा? जिन्ना ने जवाब में कहा कि मैं उन्हें हिंदुस्तान से कई ज्यादा सहूलियत देने के लिए तैयार हूं. 


जिन्ना से सादे कागज पर क्यों किए दस्तखत?


जिन्ना ने रियासतों के नवाबों के सामने एक सादे कागज पर दस्तखत कर दिए और कहा कि जो भी शर्त पाकिस्तान में शमिल होने के लिए आप इसमें डालना चाहें, डाल दें. जोधपुर के महाराज ने कहा कि अगर जोधपुर, पाकिस्तान के साथ मिल जाए तो कराची पोर्ट को हमें इस्तेमाल करने दें. 


वहीं जैलमेर के महाराज कहा कि हम पाकिस्तान ले जुड़ सकते हैं लेकिन एक शर्त है. वो बोले कि जब भी हमारे राज्य में हिंदू या मुस्लिमों के बीच झगड़ा होगा तो क्या आप तटस्थ रहेंगे? हालांकि, इस बैठक में महाराजाओं पर पाकिस्तान के साथ जल्द मिलने को लेकर दबाव डाला गया था लेकिन जोधपुर के महाराज ने जिन्ना से कहा कि उन्हें थोड़ा वक्त चाहिए. ये सुनते ही जिन्ना आगबबूला हो गए और उस खाली पेपर को छीन लिया जिस पर दस्तखत किए थे. 


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