Independence Day 2024: 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हो गया. भारत की आजादी के साथ ही स्वतंत्रता सेनानियों की शहादतें भी सफल हो गईं. यूं तो भारत को आजादी मिल गई, लेकिन देश के सामने काफी चुनौतियां थीं. दरअसल, आजादी से पहले ही कई रियासतों के नवाब बगावती तेवर दिखाने लगे थे.


देश की सबसे समृद्ध रियासत हैदराबाद ने अपनी आजादी का ऐलान 12 जून, 1947 को कर दिया था. हैदराबाद के निजाम के तेवर अभी भी नहीं बदले थे. भोपाल के नवाब का बगावती रुख उन्हें पाकिस्तान की तरफ खींच रहा था. पश्चिम में जूनागढ़ और जोधपुर ने नींद हराम कर रखी थी. जोधपुर तो वो रियासत थी जिसकी सीमा प्रस्तावित पाकिस्तान से लगती थी. दो अगस्त आते-आते जोधपुर के तेवर बदल गए थे. 


क्यों आया जोधपुर के रुख में परिवर्तन?


जोधपुर के तत्कालीन राजा हनवंत सिंह की आधिकारिक जीवनी लिखने वाले जोधपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर लक्ष्मण सिंह राठौर ने बताया, 'जोधपुर के नवाब के मन में परिवर्तन विशेष छूट वाले फैसले से आया. जोधपुर और अन्य कुछ रियासतों के नवाब भारत में विलय के लिए कुछ विशेष छूट चाहते थे जिसे स्टेट डिपार्टमेंट ने स्वीकार नहीं किया. नवाबों को पता लग गया विशेष छूट को स्वीकार नहीं किया जाएगा.'


भारत के एकीकरण के लिए अहम था ये दिन


जोधपुर यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर लक्ष्मण सिंह राठौर 25 जुलाई, 1947 के दिन को भारत के एकीकरण में सबसे अहम मानते हैं. उन्होंने कहा, माउंटबेटन ने एक भाषण दिया और ये भाषण उनके जीवन का सबसे अहम भाषण था. इस भाषण में माउंटबेटन ने ये नहीं कहा कि आप हिंदुस्तान में रहो या पाकिस्तान में रहो.'


माउंटबेटन ने तो रियासतों को भारत में रहने के लाभ बताए. उन्होंने कहा कि भौगोलिक स्थिति को देखते हुए और जनता के हित को ध्यान में रखते हुए और अपना एकीकरण करें. ये संकेत साफ था कि आप भारत में अपना एकीकरण करें. माउंटबेटन के रुख से भारत को काफी फायदा हुआ. रियासतों के राजा-महाराजाओं ने देखा कि उनको ब्रिटेन से कोई मदद नहीं मिलने वाली. इसके बाद काफी रियासतों ने भारत में शामिल होने का फैसला किया. रियासतों के इस फैसले के बाद से भारत की एकता को बनाए रखने की चुनौती अभी खत्म नहीं हुई थी.'


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