Day: टोक्यो ओलंपिक्स में भारतीय खिलाड़ियों के शानदार प्रदर्शन के बाद देश के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की मांग दोगुनी हो गई है. जिसके बाद राष्ट्रीय ध्वज के दाम बढ़ गए हैं. 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले के साथ साथ इस बार घरों और इमारतों पर भी राष्ट्रीय ध्वज की संख्या कई गुना ज्यादा होने का अनुमान है.


राष्ट्रीय ध्वज की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पश्चिम बंगाल में दक्षिण कोलकाता के कारखानों में दिन रात काम हो रहा है.  दरअसल झंडे के ऑर्डर हर साइज़ के हैं, जबकि पहले छोटे झंडे स्कूल की वजह से बहुत बनते थे, लेकिन इस साल स्कूल बंद है इसलिए उनके ऑर्डर नहीं हैं.


16 अगस्त को मनाया जाएगा खेला होबे दिवस


देश में सिले हुए झंडे सबसे ज़्यादा बंगाल में बनते है और बड़ा बाज़ार से सप्लाई होते हैं. इस साल तो बंगाल में 16 अगस्त से खेला होबे दिवस होगा, जिसकी वजह से क्लब ने भी भरपूर ऑर्डर दिए हैं.


टोक्यो ओलंपिक में भारत की जीत के साथ-साथ भारत की आजादी के 75वें साल के शुभ अवसर पर इन झंडों की मांग में वृद्धि हुई है. बड़ा बाज़ार के विक्रेता अशोक सिंह ने कहा, “इस साल बिक्री बढ़ गई है, क्योंकि इस समय देश में स्वतंत्रता का 75वां वर्ष मनाया जा रहा है और देश ने ओलंपिक में भी स्वर्ण पदक जीता है.’’


राष्ट्रीय झंडों की बढ़ती मांग का एक अन्य कारण देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अगले दिन 16 अगस्त को होने वाला खेला होबे दिवस भी है. उत्तर 24 परगना में फुटकर विक्रेता अभय नाथ ने बताया, “सीपीआईएम, कांग्रेस, बीजेपी, टीएमसी हर कोई झंडे खरीद रहा है. इस बार हमारी अच्छी बिक्री हो रही है.’’


इस साल महंगे हुए झंडे


इस साल झंडों की कीमत भी बढ़ गई है. थोक में 4 फीट का झंडा लगभग 75 रुपए का हुआ करता था, लेकिन इसकी कीमत अब 85 रुपए है. ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि कच्चे माल की लागत बढ़ गई है, जिसके परिणामस्वरूप झंडे की कीमत में वृद्धि हुई है.


झंडा विक्रेता अशोक ने कहा, ‘’चार फुट के झंडे अब 10 रुपए और तीन फुट के झंडे 4 रुपए महंगे हो गए हैं. जिन झंडों को हम 15 रुपए में बेचा करते थे, वह अब 18 रुपए में बिक रहे हैं. 6 फुट के झंडे 100 रुपये में बेचे गए थे, लेकिन इस साल हमें इन्हें 120 रुपये में बेचना पड़ रहा है.’’


पिछले साल बंद के कारण बिक्री कम हो गई थी और झंडा बनाने वाले उद्योग को काफी नुकसान हुआ था. दक्षिण कोलकाता में एक कारखाने में काम करने वाले अकरम अली मोल्ला ने कहा, “पिछले साल लॉकडाउन के कारण कोई काम नहीं हुआ था, लेकिन इस साल लॉकडाउन में ढील दी गई है, इसलिए काम का दबाव अधिक है.”


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