India-US Military Exercise: LAC के करीब भारत-अमेरिका की सेना करेगी एक्सरसाइज, फॉरेन ट्रेनिंग नोड में होने वाला यह युद्धाभ्यास क्यों है अहम?
India-America Military Relations: भारत और अमेरिका सालाना युद्धाभ्यास बुधवार से शुरू हो रहा है. यह मिलिट्री एक्सरसाइज एक साल भारत में और एक साल अमेरिका में होती है.
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India-America Military Exercise: चीन से सटी एलएसी के करीब बुधवार (16 नवंबर) से उत्तराखंड के औली में भारत और अमेरिका की सेनाएं अपना सालाना युद्धाभ्यास शुरू करने जा रही है. वो हाल ही में तैयार की गए फॉरेन ट्रेनिंग नोड में की जाएगी.
भारतीय सेना अब मित्र-देशों की सेनाओं के साथ हाई ऑल्टिट्यूड यानी उच्च पर्वतीय इलाकों की जो भी मिलिट्री एक्सरसाइज करेगी वो औली के इसी ट्रेनिंग नोड में होगी. भारतीय सेना का उच्च पर्वतीय क्षेत्र में ये पहला फॉरेन ट्रेनिंग नोड है. उत्तराखंड का औली करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर है. ऐसे में इतने ऊंचे पहाड़ी इलाके में भारतीय सेना पहली बार किसी मित्र-देश की सेना के साथ मिलिट्री एक्सरसाइज करने जा रही है.
इससे पहले तक सेना अमेरिकी सेना के साथ सालाना मिलिट्री एक्सरसाइज उत्तराखंड के चौबटिया (रानीखेत) फिर राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज (बीकानेर) में करती आई थी लेकिन रानीखेत की उंचाई करीब छह हजार फीट है. रानीखेत चीन से सटी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से काफी दूर है. औली की दूरी करीब 90 किलोमीटर है.
फॉरेन ट्रेनिंग नोड में क्या व्यवस्था है?
फॉरेन ट्रेनिंग नोड में युद्धाभ्यास के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर मित्र-देशों की सेनाओं की टुकड़ियों के लिए रहने की पूरी व्यवस्था होती है. रानीखेत के चौबटिया में तो भारतीय सेना को स्थानीय गांवों को ट्रेनिंग के लिए खाली कराना पड़ता था. यहां तक कि गांव वालों के घरों में ही काउंटर-इनसर्जेंसी काउंटर टेररिज्म (CI-CT) ऑपरेशन ड्रिल के लिए इस्तेमाल करना पड़ता था लेकिन ट्रेनिंग नोड में ये सब चीजें अलग से बनी होती है ट्रेनिंग में भी कोई खास दिक्कत नहीं आती है.
औली में भारतीय सेना का पांचवा फॉरेन ट्रेनिंग नोड है. इसके अलावा पहले से हिमाचल के बकोल्ह, राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज, मेघालय के उमरोई (शिलांग के करीब) और मिजोरम के वरांगटे में इसी तरह के ट्रेनिंग सेंटर है.
हर साल होती है एक्सरसाइज
चीन से चल रही तनातनी के बीच भारत और अमेरिका की सेनाएं 16 नवंबर से एलएसी के करीब उत्तराखंड के औली में मिलिट्री एक्सरसाइज (16 नवंबर-2 दिसंबर) करने जा रही है. भारत और अमेरिकी की सेनाओं के बीच साझा युद्धाभ्यास का ये 15वां संस्करण है. पहले ये युद्धाभ्यास 15 नवंबर से होने जा रहा था.
भारत और अमेरिका की सेनाओं के बीच जो सालाना मिलिट्री एक्सरसाइज होती है उसे 'युद्धाभ्यास' के नाम से ही जाना जाता है. एक साल ये एक्सरसाइज भारत और एक साल अमेरिका में होती है. पिछले साल ये युद्धाभ्यास अमेरिका के अलास्का में किया गया था. इसलिए इस साल ये एक्सरसाइज भारत में होनी जा रही है.
मिलिट्री एक्सरसाइज क्यों है अहम?
उत्तराखंड का औली करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर है और यहां से लाइन ऑफ कंट्रोल यानी एलएसी करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है. उत्तराखंड से सटी एलएसी भारतीय सेना के सेंट्रल सेक्टर का हिस्सा है. यहां पर एलएसी का बाड़ोहती इलाका भारत और चीन के बीच लंबे समय से विवादित रहा है. पिछले दो साल के दौरान जब पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनातनी चल रही थी तब इस इलाके में भी चीन की सैन्य गतिविधियां बढ़ने की खबरें लगातार आती रहती थी. यह ही वजह है कि अक्टूबर के महीने में भारत और अमेरिका के बीच होने वाली मिलिट्री एक्सरसाइज बेहद अहम हो जाती है.
भारत और चीन के बीच एलएसी 10 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई पर ही है. गलवान घाटी जहां साल 2020 में भारत और चीन की सेनाओं में झड़प हुई थी वो भी करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर है. ऐसे में इस युद्धाभ्यास के जरिए भारत अपनी हाई ऑल्टिट्यूड मिलिट्री वॉरफेयर की रणनीति अमेरिका से साझा करेगा. वहीं अमेरिकी सेना भी अलास्का जैसे बेहद ही सर्द इलाकों में तैनात रहती हैं जहां 12 महीने बर्फ रहती है. ऐसे में अमेरिकी सेना भी अपने हाई ऑल्टिट्यूड स्ट्रेटेजी भारतीय सेना से साझा करेगी.
अगस्त के महीने में भारत और अमेरिका की स्पेशल फोर्सेज का साझा युद्धाभ्यास, वज्र-प्रहार हिमाचल प्रदेश के बकलोह में हुआ था. 21 दिनों तक चलने वाले इस सालाना युद्धाभ्यास में दोनों देशों के एसएफ कमांडो ने एक दूसरे की बेस्ट प्रैक्टिस और अनुभव को सीखा था.
इस दौरान दोनों देशों के सेनाएं एक साथ ट्रेनिंग करेंगी और साझा स्पेशल ऑपरेशन, काउंटर टेररिस्ट ऑपरेशन्स, एयर-बोर्न ऑपरेशन्स में हिस्सा लिया. वज्र-प्रहार में अमेरिका टुकड़ी में फर्स्ट (1) स्पेशल फोर्सेज ग्रुप (एसएफजी) और स्पेशल टैक्टिक्स स्क्वॉड्रन (एसटीएस) के सैनिक शामिल हुए थे, जबकि भारतीय सेना की तरफ से बकलोह स्थित स्पेशल फोर्सेज ट्रेनिंग स्कूल (एसएफटीएस) के कमांडो शामिल हुए थे.
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