नई दिल्ली: चीन की घोषणा के बाद बुधवार को भारत ने भी ऐलान किया कि पूर्वी लद्दाख से सटे एलएसी पर पिछले नौ महीने से चल रहा टकराव अब खत्म होने जा रहा है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खुद संसद में चीन से हुए डिसइंगेजमेंट को लेकर बयान जारी किया. नए समझौते के तहत पैंगोंग-त्सो लेक से सटे फिंगर-एरिया पर फिर से मई 2020 वाली स्थिति बन जाएगी. यानि चीन की पीएलए सेना फिंगर 8 से पीछे चली जाएगी और भारतीय सैनिक फिंगर 3 पर बनी स्थायी चौकी, धनसिंह थापा पोस्ट पर चले जाएंगे. पैंगोंग-त्सो के दक्षिण से भी दोनों देशों की सेनाएं अब अपनी अपनी चौकियों में लौट जाएंगी.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन से पैंगोंग-त्सो के उत्तर और दक्षिण में हुए डिसइंगेजमेंट पर राज्यसभा में बयान देते हुए कहा कि ये समझौता, 'फेस्ड, कोर्डिनेटेड और वेरीफाइवल' तरीके से किया जाएगा, यानि दोनों देशों की सेनाएं विवादित इलाकों से धीरे-धीरे कर एक साथ पीछे हट जाएंगी. इसके साथ-साथ इस बात की भी तस्दीक की जाएगी कि क्या वाकई दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटी है या नहीं.
रक्षा मंत्री ने '62 के युद्ध के दौरान चीन द्वारा कब्जाई गई जमीन (अक्साई चिन) और पाकिस्तान द्वारा चीन को दी गई जमीन (कुल 43 हजार वर्ग किलोमीटर) का जिक्र तो किया, लेकिन मौजूदा विवाद में साफ कर दिया कि भारत ने 'एक इंच जमीन भी नहीं खोई है.'
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत एलएसी पर शांति कायम करने के लिए चीन से ये समझौता जरूर कर रहा है, लेकिन एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर भारत को चीन के मुकाबले 'ऐज' यानि बढ़त हासिल है.
आपको बता दें कि पिछले साल यानि अप्रैल-मई 2020 में कोरोना महामारी के दौरान चीनी सेना ने पूर्वी लद्दाख से सटे कई इलाकों में घुसपैठ करने की कोशिश की थी. ये वे इलाके थे जो एलएसी पर हमेशा से विवादित थे और नो-मैन लैंड समझाते थे, हालांकि दोनों देशों के सैनिक यहां पर पैट्रोलिंग जरूर करते थे. लेकिन कोरोना महामारी के दौरान जब भारतीय सेना ने अपने सभी पैट्रोलिंग और एक्सरसाइज रद्द कर दी थी, तब चीन की पीएलए सेना ने पैंगोंग-त्सो के उत्तर में फिंगर एरिया में गैर-कानूनी तरीके से अपने बंकर और हैलीपैड बनाकर कब्जा कर लिया था.
इससे पहले तक चीनी सेना फिंगर 8 के पीछे खुरनाक फोर्ट और सिरजैप रहती थी. लेकिन चीनी सैनिक फिंगर 4 पर आकर जम गए थे. वहीं भारतीय सेना की 62 के युुद्ध के बाद से ही फिंगर 3 पर धनसिंह थापा पोस्ट पर रहती थी. इसके अलावा डेपसांग प्लेन, गोगरा, हॉट-स्प्रिंग और गलवान घाटी में भी चीनी सेना ने घुसपैठ करने की कोशिश की, जिसके कारण पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी पर कई 'फ्रिक्शन पॉइंट' बन गए थे.
इसके बाद दोनों देशों के कोर कमांडर स्तर की कई बार बातचीत हुई, लेकिन चीनी सेना पीछे नहीं हटी. इसी दौरान एक बार गलवान घाटी में डिसइंगेजमेंट की बात से मुकर गई, जिसके बाद गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं में हिंसक-संघर्ष हुआ. इसी खूनी झ़ड़प में भारतीय सेना के कर्नल संतोष बाबू सहित कुल 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए. चीन को भी भारी नुकसान हुआ लेकिन चीनी सेना ने कभी अपने मरे हुए सैनिकों का आंकड़ा उजागर नहीं किया.
चीनी सेना जब पीछे नहीं हटी तो 29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने पैंगोंग-त्सो के दक्षिण में एक बड़ा दांव चलते हुए कैलाश हिल रेंज की मुखपरी, मगर हिल, गुरंग हिल और रेचिन ला दर्रे पर अपना अधिकार जमा लिया. इसे 'प्री-एम्टिव स्ट्राइक' से चीन तिलमिलाकर रह गया. क्योंकि चीन का मोल्डो गैरिसन, स्पैंगूर-गैप और रेचिन ग्रेजिंग-लैंड सीधे भारत की चुशुल ब्रिगेड की जद में आ गया था. इसके अलावा भारतीय सैनिकों ने उसी रात को फिंगर-एरिया 4 पर भी ठीक चीनी सैनिकों के सामने अपना मोर्चा जमा लिया.
इसके कारण दोनों देशों के सैनिक आई-बॉल-टू-आई-बॉल हो गए. यहां तक की भारत ने पूरी एलएसी पर जबरदस्त 'काउंटर-डेप्लोयमेंट' किया. एक अनुमान के मुताबिक, दोनों देशों के करीब करीब 50-50 हजार सैनिक पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी पर तैनात हैं. इसके अलावा दोनों देशों ने बड़ी तादाद में टैंक, तोप, आर्मर्ड व्हीकल्स (इंफेंट्री कॉ़म्बेट व्हीकल्स), हैवी मशीनरी और मिसाइलों का जखीरा भी यहां तैनात था.
29-30 अगस्त की रात को भारत की प्री-एम्टिव कारवाई के बाद चीनी सेना बातचीत की टेबल पर नरम पड़ गई और फिर 24 जनवरी को दोनोें देशों के कोर कमांडर स्तर की नौवें दौर की बैठक के बाद पैंगोंग-त्सो पर डिसइंगेजमेंट के लिए तैयार हो गई.
मौजूदा समझौते के तहत अब चीनी सेना फिंगर 4 से फिंगर 8 से पूर्व दिशा (यानि पीछे) चली जाएगी और भारतीय सैनिक भी फिंगर 4 से फिंगर 3 पर अपनी स्थायी चौकी पर चले जाएंगे. फिंगर 3 से लेकर फिंगर 8 तक नो-मैन लैंड हो जाएगा. वहां अब दोनों देशों के सैनिक तबतक पैट्रोलिंग नहीं करेंगे जबतक की दोनों देशों के सैन्य कमांडर और राजनयिक इस पर कोई फैसला नहीं कर लेते. लेकिन, यहां भी धीरे-धीरे कर ही सैनिक पीछे हटेंगे--एक साथ पूरा एरिया खाली नहीं करेंगे.
पैंगोंग-त्सो के उत्तर और दक्षिण में 10 फरवरी यानि बुधवार से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटना शुरू हो गई हैं. लेकिन 48 घंटें बाद दोनों देश के कमांडर्स इस बात की तस्दीक करेंगे कि क्या वाकई डिसइंगेजमेंट समझौते के अनुरूप हुआ है या नहीं.
पैंगोंद-त्सो के दक्षिण में भी दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट जाएंगी. क्योंकि कैलाश हिल रेंज से सटे इलाकों में दोनों देशों की सेनाओं के टैंक, आर्मर्ड व्हीकल्स (इंफेंट्री कॉ़म्बेट व्हीकल्स), हेवी मशीनरी का सबसे ज्यादा जमावड़ा है. लेकिन सूत्रों की मानें तो कैलाश हिल रेंज से सबसे पहले टैंक इत्यादि ही पीछे हटेंगे--फ्रंट लाइन सैनिक बाद में पीछे हटेंगे.
सूत्रों के मुताबिक, भारतीय सेना डिसइंगेजमेंट समझौते के दौरान फूंक फूंक कर कदम रख रही है. क्योंकि इससे पहले भी चीन कई बार डिसइंगेजमेंट की बात कहकर मुकर चुका है. चीनी सेना बार-बार पीछे जाकर फिर से एलएसी पर तैनात हो जाती है. गलवान घाटी की हिंसा भी इसका नतीजा थी.
सूत्रों की मानें तो चीन की कथनी और करनी में काफी फर्क है, यही वजह है कि डिसइंगेजमेंट समझौता फिलहाल पैंगोंग-त्सो के उत्तर और दक्षिण के लिए ही किया गया है. बाकी, डेपसांग प्लेन, गोगरा और हॉट-स्प्रिंग इत्यादि इलाकों में सैनिक तभी पीछे हटेंगे जब पहले चरण का डिसइंगेजमेंट सफल हो जाता है. क्योंकि डिसइंगेजमेंट यानि सेनाओं के पीछे हटने के दौरान ही देखा गया है सैनिक आपस में भिड़ जाते हैं.
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