नई दिल्ली: डिसइंगेजमेंट समझौते के तहत पैंगोंग-त्सो के दक्षिण में कम से कम तीन जगह से भारत और चीन के टैंक पीछे हट गए हैं. इनमें से कुछ टैंक 500 मीटर से लेकर एक किलोमीटर तक पीछे चले गए हैं. पहले इन जगह पर दोनों देशों के टैंकों की पोजिशन महज़ 40-50 मीटर थी. फिंगर एरिया से भी चीनी सेना पीछे हटना शुरू हो गई है. लेकिन फिंगर नंबर 8 से पीछे जाने में एक हफ्ता का वक्त लग सकता है.


जानकारी के मुताबिक, डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया के दौरान दोनों देश फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और ड्रोन (क्वाडकोप्टर) का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि इस बात की तस्दीक की जा‌ सके कि दोनों देश के सैनिक, टैंक, आईसीवी (इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल्स) और दूसरी हैवी मशीननरी तयशुदा जगह तक पीछे हटें हैं या नहीं.


यहां है 'ट्रस्ट-डेफेसिट'


सूत्रों के मुताबिक, गलवान घाटी के डिसइंगेजमेंट और उस दौरान हुई हिंसा‌ से दोनों देशों के बीच 'ट्रस्ट-डेफेसिट' काफी ज्यादा है. इसीलिए, दोनों देशों की सेनाएं फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.


सूत्रों के मुताबिक, भारत और चीन की आर्मर्ड और मैकेनाइज्ड फोर्सेज़ धीरे-धीरे कर कम हो जाएंगी और फिर डि-एसक्लेशन यानि उनकी तादाद कम होना शुरू हो जाएगी. दोनों तरफ के टैंक इत्यादि अपने अपने एडम बेस (एडमिनिस्ट्रेटिव बेस) पर पहुंच रहे हैं. पूर्वी लद्दाख के चुशूल सेक्टर में लोमा और नियोमा में भारतीय सेना की आर्मर्ड ब्रिगेड का मुख्यालय है. चीन का भी मोल्डो गैरिसन से कुछ दूरी पर है.


सूत्रों के मुताबिक, भारतीय सेना के बटालियन कमांडर्स और ब्रिगेड कमांडर्स ने डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया की रोज समीक्षा कर रहे हैं और पूरी जानकारी लेह स्थित 14वीं कोर, उधमपुर स्थित उत्तरी कमान और राजधानी दिल्ली स्थित सेना मुख्यालय पहुंच रही है.


इस बीच रक्षा मंत्रालय ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के आरोपों पर अपरोक्ष-रूप से जवाब देते हुए कहा कि भारतीय सेना की स्थायी चौकी, धनसिंह थापा पोस्ट फिंगर 3 पर जरूर है, लेकिन भारत का दावा फिंगर 8 तक है. रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि डेपसांग प्लेन, गोगरा और हॉट-स्प्रिंग में डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया पहले चरण के डिसइंगेजमेंट के 48 घंटे के भीतर की जाएगी.


आपको बता दें कि डेपसांग प्लेन्स को लेकर भारत और चीन के बीच पहला विवाद वर्ष 2002 में हुआ था. उसके बाद वर्ष 2013 में एक बड़ा फेसऑफ हुआ था जो 25 दिनों तक चला था. सूत्रों के मुताबिक, चीन के लिए डेपसांग प्लेन ठीस वैसा है जैसा भारत के लिए सिलिगुड़ी कोरिडोर (चिकन-नेक). इसी को लेकर भारत और चीन चीन के बीच वर्ष 2017 में भूटान की सीमा पर डोकलम विवाद हुआ था.


इस बीच डिसइंगेजमेंट को लेकर जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक, डिसइंगेजमेंट की रूपरेखा 24 नबम्बर को नौवें दौर के कोर कमांडर स्तर की बैठक में बनी थी. लेकिन दोनों देशों के टॉप मिलिट्री और पॉलिटिकल लीडरशिप से हरी झंडी मिलने के बाद इसे अंजाम दिया गया.


भारत में चायना स्टडी ग्रुप (रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री, एनएसए, रक्षा सचिव, विदेश सचिव, कैबिनेट सेक्रेटरी, सीडीएस और तीनों सेना प्रमुख) ने इस पर चर्चा की और फिर पीएमओ ने इस पर मुहर लगाई. इस दौरान चुशूल और मोल्डो में भारत और चीन की सेनाओं के बीच स्थापित हॉट-लाइन पर भी कई बार बात हुई.


आखिरकार, 10 फरवरी को दोनों देशों की सेनाओं ने नौ महीने बाद एलएसी से पीछे हटना शुरू किया. सबसे पहले चीन के रक्षा मंत्रालय ने इसकी घोषणा की. सूत्रों के मुताबिक, चीन का नया वर्ष शुरू शुक्रवार यानि 12 फरवरी से शुरू हो रहा था और चीन राष्ट्रीय छुट्टी होने से पहले डिसइंगेजमेंट की घोषणा करना चाहता था.


चीन में नए साल पर पूरे दो हफ्ते की छुट्टी होती है. जबकि, भारत चाहता था कि चीन की सेना के पीछे जाने के बाद ही इस बात का ऐलान किया जाए. संसद का सत्र चलने के कारण भारतीय सेना और रक्षा मंत्रालय ने कोई बयान जारी नहीं किया और 11 फरवरी यानि गुरूवार को भारत ने रक्षा मंत्री के संसद में बयान से ही इसका ऐलान करना मुनासिब समझा.


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