Hydroxychloroquine के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 70 फीसदी, हर महीने बना सकता है 20 करोड़ टैबलेट
देश में एचसीक्यू के पर्याप्त भंडार हैं और कंपनियां घरेलू मांग के साथ-साथ निर्यात को पूरा करने में सक्षम हैं.इस दवा का विनिर्माण अमेरिका जैसे विकसित देशों में नहीं होता. इसका कारण उन देशों में मलेरिया का नहीं होना है.
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नई दिल्ली: जानलेवा कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की मांग अचानक काफी बढ़ गई है. अमेरिका जैसा ताकतवर देश इस दवा को लेकर भारत पर टकटकी लगाए बैठा है. मलेरिया के इलाज में उपयोग होने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का सबसे बड़ा विनिर्माता भारत है. दुनिया में इन दवा के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 70 फीसदी है. इस दवा को कोरोना वायरस संक्रमण के इलाज में पासा पलटने वाला माना जा रहा है.
देश के पास इस दवा का तेजी से उत्पादन बढ़ाने की क्षमता
दवा उद्योग का कहना है कि देश के पास हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का तेजी से उत्पादन बढ़ाने की क्षमता है. इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन के मुताबिक, देश में हर महीने 40 टन हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) उत्पादन की क्षमता है. यह 200-200 एमजी के करीब 20 करोड़ टैबलेट के बराबर बैठता है. क्योंकि इस दवा का उपयोग रूमेटाइड आर्थराइटिस जैसी ‘आटो इम्यून’ बीमारी के इलाज में भी किया जाता है, इसके कारण विनिर्माताओं के पास उत्पादन क्षमता अच्छी है जिसे वे कभी भी बढ़ा सकते हैं.
दवा की जरूरत पड़ी तो कंपनियां उत्पादन बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध
इपका लैबोरेटरीज, जाइडस कैडिला और वालेस फार्मास्युटकिल्स शीर्ष औषधि कंपनियां हैं, जो देश में एचससीक्यू का विनिर्माण करती हैं. जैन ने कहा कि भारत में मौजूदा मांग को पूरा करने के लिये उत्पादन क्षमता पर्याप्त है और अगर जरूरत पड़ती है कंपनियां उत्पादन बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने करीब 10 करोड़ एचसीक्यू टैबलेट का आर्डर इपका लैबोरेटरीज और जाइडस कैडिला को दिया.
देश घरेलू मांग के साथ-साथ निर्यात को पूरा करने में सक्षम
भारत एचसीक्यू में इस्तेमाल 70 प्रतिशत जरूरी रसायन चीन से लेता है और फिलहाल आपूर्ति स्थिर है. दवा उद्योग के अधिकारियो का कहना है कि देश में एचसीक्यू के पर्याप्त भंडार हैं और कंपनियां घरेलू मांग के साथ-साथ निर्यात को पूरा करने में सक्षम हैं. भारत ने 25 मार्च को एचसीक्यू के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी और इसे दो दर्जन रसायानों (एपीआई) की सूची में डाला जिसका निर्यात नहीं किया जा सकता. भारत इस दवा का सबसे बड़ा निर्यातक है.
अमेरिका जैसे विकसित देशों में नहीं बनती ये दवा
इस दवा का विनिर्माण अमेरिका जैसे विकसित देशों में नहीं होता. इसका कारण उन देशों में मलेरिया का नहीं होना है. ट्रंप की इस दवा की मांग के बाद भारत इसके निर्यात पर पाबंदी हटाने को सहमत हो गया है. इससे पहले, कोरोना वायरस महामारी के बीच इस दवा समेत दो दर्जन से अधिक रसायनों के निर्यात पर पाबंदी लगायी गयी थी. निर्यात पर पाबंदी हटाने से पहले अधिकारियों ने इस बात का आकलन किया कि कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए देश को इस दवा की कितनी जरूरत है. हालांकि हाल में इस दवा की खरीद और उपयोग को प्रतिबंधित किया गया क्योंकि इसका उपयोग चयनित रूप से कोरोना वायरस संक्रमित के इलाज में किया जा रहा है. इसका कारण इसमें ‘एंटीवायरल’ विशेषताओं का होना है.
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