आज से 72 साल पहले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत की ‘नियति से मुलाकात’ के वचन निभाने का प्रयास किया था. अपने पहले प्रधानमंत्री के इस वचन को भारत निरंतर निभाने की कोशिश कर रहा है. सात दशक पहले भारत के उज्जवल भविष्य के लिए देखा गया सपना, देश हर कदम पर पूरा कर रहा है. आज जब हम बीते हुए कल को पीछे मुड़ कर देखते हैं तो आज के भारत और 72 साल पहले के भारत में जमीन और आसमान का फर्क दिखाई देता है.


भारत ने न सिर्फ उन्नति और प्रगति की राह पर बल्कि सक्षमता और समझ के स्तर पर भी एक विश्वरूप में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब है और निरंतर अपनी बेहतरी में कार्यरत है.


आज के भारत की सूरत कितनी बदली है आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस वक्त विश्व पटल पर नए देश के तौर पर अंकुरित हुआ ये राष्ट्र आज अपनी सक्षमता से विश्व की सबसे तेजी से उभरती अर्थवव्यवस्था में शामिल हो गया है. 1950 के दशक में भारत की जीडीपी जहां महज़ 30.6 बिलियन डॉलर थी. वहीं आज 2.5 ट्रिलियन डॉलर से आगे पहुंच गई है. जिसकी बदौलत भारत विश्व की सातवीं और एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थवव्यवस्था है. अगले पांच सलों में 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य रखा गया है.


आजादी के वक्त (1951 की जनगणना) देश की आबादी 36,10,88,090 थी. आज भारत की जनसंख्या 125 करोड़ को पार कर चुकी है. कुछ मानकों पर बड़ी आबादी को एक अभिशाप माना जाता है, लेकिन भारत जैसे उभरते देश के लिए ये मानव शक्ति, मानव पूंजी साबित हुई है.


शिक्षा के स्तर पर देश दिनों दिन नया कीर्तिमान रचता जा रहा है. 1951 की जनगणना की आकड़ों की बात करें उस वक्त देश में 18.33 प्रतिशत लोग साक्षर थे. वहीं आज साक्षरता दर करीब 74 फीसदी हैं.


भारत अब खाद्यान के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है. आजादी के पहले भारत ने आकाल के कई भयावह दृश्य देखे हैं, लेकिन हमारी तरक्की की रफ्तार ऐसी रही है अब देश के किसी भी कोने में भूखमरी जैसे हालात नहीं हैं. आज भारत 277.49 मिलियन टन खाद्यान का उत्पादन करता है.


1947 में भारत में जीवन प्रत्याशा 32 साल की थी जो अब बढ़ कर 65 साल हो गई है. वहीं 1960 के दशक के दौरान शिशु मृत्यु दर में हर 1000 जन्में बच्चों में 165 की मृत्यु हो जाती थी जो अब घट कर 32 हो गई है. इसके अलावा देश में कई ऐसी महामारियों जैसे प्लेग और पोलियो से यह देश मुक्त हो चुका है.