नई दिल्ली: शनिवार को हुई दसवें दौर की मीटिंग में भले ही भारत और चीन बॉर्डर विवाद को सुलझाने की बात कर रहे हैं, लेकिन सूत्रों की मानें तो सबसे बड़ा पेंच डेपसांग प्लेन पर अटक सकता है. सूत्रों की मानें तो गोगरा और हॉट स्प्रिंग में डिसइंगेजमेंट जल्द होने की संभावना है, क्योंकि वहां एक बार पहले भी यानि पिछले साल सितंबर-अक्टूबर में भी थोड़ा डिसइंगेजमेंट हुआ था. लेकिन डेपसांग प्लेन में ये इतना आसान नहीं है.
दरअसल, डेपसांग प्लेन में दोनों देशों के बीच विवाद बेहद पुराना है. भारत के दौलत बेग ओल्डी यानी डीबीओ के बेहद करीब के इस इलाके में सबसे पहले दोनों देशों के बीच पैट्रोलिंग को लेकर विवाद वर्ष 2002 में हुआ था. लेकिन इस विवाद ने एक बड़े टकराव का रूप लिया अप्रैल 2013 में जब दोनों देशों की सेनाओं ने यहां पहली बार अपने कैंप गाड़ लिए थे और 25 दिनों तक ‘फेसऑफ’ (गतिरोध) हुआ था.
डेपसांग प्लेन क्यों है खास
भारत और चीन दोनों के लिए ही काराकोराम रेंज का डेपसांग प्लेन बेहद सामरिक महत्व का इलाका है. भारत का इसलिए क्योंकि यहीं से सामरिक महत्व की रोड, डीएस-डीबीओ यानि 255 किलोमीटर लंबी दुरबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी रोड गुजरती है. दुनिया की सबसे उंची एएलजी यानि एडवांस लैंडिंग ग्राउंड डीबीओ, यहां से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर है. जिसके चलते भारत को चीन पर इस इलाके में बढ़त हासिल है. चीन के लिए इसका महत्व है क्योंकि इसके करीब से ही चीन का जी-219 हाईवे गुजरता है, जो तिब्बत को शिनजियांग प्रांत से जोड़ता है.
सूत्रों की मानें तो चीन के लिए डेपसांग प्लेन का इलाका ठीक वैसा ही है जैसा कि भारत के लिए सिलिगुड़ी कोरिडोर का चिकन-नेक. चीन को इस बात का डर है कि अगर भारत ने इस इलाके पर अपना अधिकार जमा लिया तो जी-219 हाईवे भारतीय सेना के सीधे जद में आ जाएगा. इसीलिए चीन इस इलाके में भारतीय सेना की पैट्रोलिंग में अंड़गा लगाता रहता है.
डेपसांग प्लेन में पांच पैट्रोलिंग पॉइंट हैं—पीपी नंबर 10, 11, 11ए, 12 और 13. चीनी सेना इन्ही पांच पैट्रोलिंग पॉइंट्स पर भारतीय सेना की गश्त पर मुश्किलें खड़ी करती है. पिछले नौ महीने से यानि जब से पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर भारत और चीन की सेनाओं में टकराव शुरू हुआ है तभी से यहां भी पैट्रोलिंग बंद है.
(फाइल फोटो)
दोनों ही देशों की सेनाओं ने ये जहां जबदस्त तरीके से टैंक, आर्मर्ड व्हीकल्स और हैवी मशीनरी की तैनाती कर रखी है. आपकों बता दें कि भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर कुल 65 पैट्रोलिंग पॉइंट हैं, जो काराकोरम पास (दर्रे) से शुरू होकर डेपसांग प्लेन, गलवान घाटी, गोगरा, हॉट-स्प्रिंग, फिंगर एरिया, पैंगोंग-त्सो लेक और कैलाश हिल रेंज से चुमार-डेमचोक तक हैं.
जानकारी के मुताबिक, डेपसांग प्लेन में दरअसल, एक वाई-जंक्शन बनता है, जो बुर्तसे से कुछ किलोमीटर पर है. उसी से सटे दो नालों- जीवन नाला और रकी नाला के बीच में ये पांच पैट्रोलिंग पॉइंट हैं- पीपी-10, 11, 11ए, 12 और 13.
गलवान घाटी, फिंगर-एरिया, पैंगोंग त्सो लेक और गोगरा (हॉट स्प्रिंग) के बाद पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच ये पांचवा फ्लैस-पॉइंट यानि विवादित इलाका है. हालांकि, पहले चरण के डिसइंगेजमेंट के बाद से फिंगर एरिया का विवाद लगभग सुलझ गया है.
चीन की ये थी योजना
सूत्रों की मानें तो विवाद शुरू होने के वक्त चीनी सेना एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चयुल कंट्रोल को पश्चिम की तरफ धकेलना चाहती थी ताकि डेपसांग प्लेन्स में कुछ इलाकों पर अपना कब्जा जमा लिया जाए.
वर्ष 2013 में जब भारत और चीन के बीच डेपसांग प्लेन्स में फेसऑफ हुआ था तो उस वक्त उच्च स्तर के राजनैतिक और राजनयिक दखल के बाद ही फेसऑफ खत्म हुआ था और दोनों देश की सेनाएं पीछे हटी थीं. करीब 25 दिन बाद फेसऑफ खत्म हुआ था.
इस फेसऑफ के करीब चार महीने बाद ही भारतीय वायुसेना ने डीबीओ में वर्षों से बंद पड़ी अपनी हवाई पट्टी को फिर से शुरू किया था. उस दौरान वायुसेना ने अपने मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, सी-130जे सुपरहरक्युलिस को यहां पर लैंडिंग कर दुनिया की सबसे उंची हवाई पट्टी का खिताब हासिल किया था.
ये हवाई पट्टी 62 के युद्ध के दौरान बनाई गई थी. लेकिन कुछ साल बाद ही इस इलाके में भूकंप आने के बाद ये क्षतिग्रस्त हो गई थी. उसके बाद यहां भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर तो ऑपरेशन्स करते थे लेकिन ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की लैंडिंग बंद कर दी गई थी. अप्रैल 2013 के फेसऑफ के चार महीने बाद लेकिन यहां इस हवाई पट्टी का मालवाहक विमानों के लिए तैयार कर लिया गया.
डीबीओ हवाई पट्टी बनने से सैनिक और सैन्य साजो सामान को इलाके तक पहुंचाने में काफी मदद मिलती है. डीबीओ रोड और डीबीओ हवाई पट्टी से सैनिकों की मूवमेंट काफी तेज हो गई है.
डीबीओ हवाई पट्टी के कारण ही पिछले साल अप्रैल-मई में भारतीय सेना ने बेहद तेजी से इस इलाके में अपने सैनिक और दूसरे सैन्य साजो सामान को एलएसी पर तैनात कर दिया था, जिसके चलते चीन की पीएलए सेना भी भौचक्का रह गई थी.
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