नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच हुए समझौते के बाद दोनों देशों की सेनाओं ने पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी से डिसइंगेजमेंट शुरू कर दिया है. शुरुआती दौर में पैंगोंग-त्सो लेक के उत्तर और दक्षिण से दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटना शुरू कर दिया है. इस बीच पैंगोंग-त्सो झील के दक्षिण से चीनी सेना के टैंक पीछे जाने का वीडियो भी सामने आया है. इस वीडियो में दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स समझौते की मेज पर भी दिखाई पड़ रहे हैं. शुक्रवार को दोनों देशों के कमांडर्स पिछले 48 घंटे के दौरान हुए डिसइंगेजमेंट की समीक्षा करेंगे.


करीब एक मिनट चौदह सेकेंड के इस वीडियो में चीनी टैंक पीछे जाते दिखाई पड़ रहे हैं. जानकारी के मुताबिक, ये वीडियो पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में रेचिनला दर्रे का है, जहां बुधवार को सबसे पहले चीनी सेना के टैंक पीछे अपनी सीमा की तरफ जाते दिखाई पड़ रहे हैं. ये चीन की पीएलए सेना के टी-96 टैंक हैं. इस वीडियो में एक के बाद एक चीन के तीन टी-96 टैंक मुड़कर पीछे जाते दिख रहे हैं. इसके बाद भारतीय सेना का एक टी-90 टैंक भी पीछे लौटता दिख रहा है.



वीडियो से साफ हो जाता है कि एलएसी के इस इलाके में दोनों ही सेनाओं के टैंक और आर्मर्ड कैरियर व्हीकल्स (आईसीवी, बीएमपी इत्यादि) का बड़ा जमावड़ा है और बेहद करीब ही दोनों देशों की सेनाओं के बीच में कुछ ही मीटर की दूरी है. सूत्रों की मानें तो क्योंकि पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण यानि कैलाश हिल रेंज के रेचिन ला दर्रे इत्यादि पर बड़ी तादाद में टैंक, आर्मर्ड व्हीकल्स हैं इसलिए वहां पर पूरी तरह डिसइंगेजमेंट में 10-15 दिन का वक्त लग सकता है.



सूत्रों की मानें तो पैंगोंग-त्सो लेक के उत्तर में जो फिंगर एरिया का इलाका है वहां से भी दोनों देशों के सैनिकों ने थिनिंग यानि कम होना शुरू हो गया है. लेकिन क्योंकि डिसइंगेजमेंट फेस्ड, कोर्डिनेटेड और वेरीफाइवल तरीके से होना है, इसलिए यहां भी दोनों देशों की सेनाओं को पूरी तरह से पीछे जाने में एक हफ्ता का समय लग सकता है.


सूत्रों की मानें तो डिसइंगेजमेंट में इसलिए भी वक्त लग सकता है क्योंकि समझौते के मुताबिक, दोनों देशों को एलएसी की फॉरवर्ड लोकेशन से सभी तरह के निर्माण-कार्यों को भी हटाना होगा और अप्रैल-मई 2020 की स्थिति में आना होगा (‘स्टेट्स कयो एंटे’).


आपको बता दें कि पिछले नौ महीने में चीनी सेना ने फिंगर 4 से 8 के बीच बड़ी तादाद में बंकर, बैरक और हैलीपैड तक बना लिया है. भारतीय सेना ने भी धनसिंह थापा पोस्ट के आगे आकर फिंगर 4 के करीब अपना कैंप लगा लिया था.






इस बीच थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने बुधवार को एक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि देश की सीमाओं पर वास्तविक और वर्तमान खतरों को देखते हुए भारत को अपने आक्रमक रूख को और अधिक मजबूत करने की जरूरत है.


जनरल नरवणे सेंटर फॉर लैंड वॉरफेयर स्टडीज़ (क्लोज) में ‘मल्टी डोमेन ऑपरेशन्स फ्यूचर ऑफ कन्फिलिक्ट्स’ थीम पर बोल रहे थे. थलसेना प्रमुख ने इस सेमिनार को रक्षा मंत्री के डिसइंगेजमेंट की घोषणा के तुरंत बाद बोल रहे थे.


रक्षा मंत्री के संसद में भाषण से पहले खुद जनरल नरवणे और सीडीएस, जनरल विपिन रावत भी संसद में पहुंचे थे और रक्षा मंत्री को डिसइंगेजमेंट के बारे में ब्रीफिंग दी थी.


चीन सीमा की स्थिति पर बोलते हुए थलसेना प्रमुख ने कहा कि हमारी उत्तरी सीमाएं पर जो कुछ भी हो रहा है उसको लेकर हमें अपनी सीमा के बारे में विचार करना चाहिए. क्योंकि सीमाओं के निर्धारण नहीं होने के चलते हमारी क्षेत्रीय अंखडता और संप्रभुता को चुनौतियां मिल सकती हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आगे नए खतरे हैं.


उन्होनें चीन से मिल रही चुनौती को फुटबॉल मैच से तुलना की जिसमें एक टीम सभी नियम मानकर खेल रही है और दूसरी टीम फुटबॉल की बजाए रग्बी खेल रही है और उसके खिलाड़ी भी प्रोटेक्टिव-गियर में हैं.


मल्टी डोमेन ऑपरेशन्स की बात करते हुए थलसेनाध्यक्ष ने कहा कि अर्मेनिया और अजरबेजान के बीच हुए युद्ध ने दिखा दिया है कि नए डोमेन में उभरती चुनौतियों के सामने टैंक, तोप, फाइटर जेट्स इत्यादि कम महत्वपूर्ण हो जाते हैं. लेकिन भारतीय सेना अपनी क्षमताओं को भविष्य में होने वाले युद्ध और मल्टी डोमेन ऑपरेशन्स (स्पेस, साइबर, ड्रोन और इंफो-वॉरफेयर) में जीत के लिए मजबूत कर रही है.


रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दी जानकारी- भारत ने चीन को पीछे धकेला, अप्रैल 2020 से पहले की स्थिति होगी कायम