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In Details: गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के पीछे की एक-एक बात, जानें अबतक क्या-क्या हुआ है

भारत और चीन के सैनिक कमांडरों के बीच हुई बैठकों में तय हुआ था कि इस इलाके में दोनों पक्षों के सैनिक बिना हथियार के रहेंगे. इसलिए सोमवार की रात हुए हिंसक टकराव में दोनों ओर से हाथापाई और पत्थर-रॉड का इस्तेमाल हुआ.

नई दिल्ली: चीन सीमा पर पिछले पचास सालों की सबसे बड़ी खूनी झड़प में भारतीय सेना के एक कर्नल रैंक के कमांडिंग अफसर सहित कुल 20 जवान शहीद हो गए. लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गलवान घाटी में ये घटना सोमवार और मंगलवार की देर रात हुई, जिसमें माना जा रहा है कि चीनी सेना को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है और बड़ी तादाद में चीन के PLA सैनिक हताहत हुए हैं.

मंगलवार की देर शाम भारतीय सेना ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि गलवान घाटी में 14-15 जून की दरमियानी रात को चीनी सैनिकों से हुई झड़प में तीन सैनिकों की मौत हो गई थी. बाद में उन 17 सैनिकों ने भी दम तोड़ दिया जो इस झड़प में गंभीर रूप से घायल हुए थे.

इस तरह, कुल 20 सैनिक कारवाई के दौरान शहीद हो गए. सेना ने मारे गए सैनिकों के लिए ‘किल्ड इन एक्शन’ शब्द का इस्तेमाल किया, जो कि भारतीय सेना किसी भी सैनिक के कर्तव्य निभाते हुए जान चले के दौरान इस्तेमाल करती है.

भारतीय सेना ने अपने संक्षिप्त बयान में ये भी कहा कि हालांकि, गलवान घाटी में जिस जगह भारत और चीन के सैनिकों की भिड़ंत हुई थी वहां अब डिसइंगेजमेंट हो चुका है यानी वहां सैनिक पीछे हट गए हैं, लेकिन बयान में साफ तौर से कहा गया कि “सेना अपने देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है.”

शुरूआत में शहीद हुए सैनिकों की पहचान 16 बिहार के कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) कर्नल बी संतोष बाबू और उनकी ही यूनिट के दो अन्य सैनिकों के तौर पर हुई (देर रात तक हालांकि आधिकारिक तौर से सेना ने शहीद हुए 19 सैनिकों के नाम और फोटो जारी नहीं किए थे.)

6 जून की मीटिंग में हुआ था डिसइंगेजमेंट का फैसला

दरअसल, 6 जून की मीटिंग में भारत और चीन के कोर कमांडर्स (लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारी) इस बात के लिए राजी हो गए थे कि गलवान घाटी के पेट्रोलिंग प्वाइंट (पीपी) नंबर 14, 15 और 17 पर दोनों देश के सैनिक डिसइंगेज हो जाएंगे, लेकिन इसके लिए दोनों देशों के फील्ड कमांडर्स को बैठक करनी होगी.

इसके मद्देनजर सोमवार को पीपी 14 और 17 नंबर पर दोनों देशों के फील्ड कमांडर्स की फ्लैग-मीटिंग हुई. पीपी 14 पर भारतीय सेना का नेतृव किया बिहार रेजीमेंट की 16वीं बटालियन (16 बिहार) के कमांडिंग ऑफिसर, कर्नल बी संतोष बाबू ने. 17 नंबर पेट्रोलिंग प्वाइंट पर भारत की तरफ से एक ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारी ने फ्लैग-मीटिंग में हिस्सा लिया. चीन की तरफ से एक सीनियर कर्नल ने हिस्सा लिया.

चीनी सैनिकों के पीछे हटने की तस्दीक के लिए गई टीम

जानकारी के मुताबिक, सोमवार को पीपी 14 पर एक लंबी बैठक चली. बैठक के बाद निर्णय लिया गया कि दोनों देशों के सैनिक कम से कम ढाई से तीन किलोमीटर पीछे चले जाएंगे, लेकिन रात के बाद भारतीय सेना की एक छोटी पेट्रोलिंग पार्टी इस बात की तस्दीक करने गई कि मीटिंग में जिस बात पर सहमति बनी थी, उसे चीनी सेना मानती है या नहीं.

जानकारी के मुताबिक, जैसे ही ये सैनिक उस ऊंची पहाड़ी पर पहुंचे, जहां चीनी सैनिक होने की आशंका थी, चीनी सैनिकों ने घात लगाकर भारत की इस पेट्रोलिंग पार्टी को घेर लिया और मारपीट शुरू कर दी. माना जा रहा है कि शुरूआत में चीनी सैनिकों की तादाद भारतीयों से ज्यादा थी. जैसे ही कर्नल संतोष बाबू और बाकी सैनिकों को इस झड़प की जानकारी मिली वे तुरंत झड़प वाली जगह पहुंच गए.

पहाड़ी से नीचे गलवान नदी में गिरे सैनिक

दोनों देशों के बड़े सैन्य कमांडर पहले ही इस बात पर राजी हो चुके थे कि विवादित इलाकों में सैनिक बिना हथियारों के रहेंगे, इसलिए ना तो कर्नल संतोष और ना ही उनकी बाकी पलटन के पास कोई हथियार था. वहां पहुंचते ही चीनी सैनिकों ने धक्का-मुक्की शुरू कर दी. विवाद इतना बढ़ा कि दोनों तरफ के सैनिकों ने लाठी-डंडे और पत्थरों से एक-दूसरे पर हमला बोल दिया.

ये झड़प एक पहाड़ी पर हो रही थी, ऐसे में दोनों तरफ के सैनिकों ने एक-दूसरे को पहाड़ से नीचे फेंकना शुरू कर दिया. पहाड़ से नीचे गलवान नदी बह रही थी. उस वक्त गलवान नदी का पानी बर्फ के समान था क्योंकि यहां पर इस मौसम में भी रात के वक्त तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है.

बड़ी तादात में दोनों तरफ के सैनिक नदी में गिर गए और बुरी तरह घायल हो गए. कुछ अपुष्ट खबरों के मुताबिक, जिस पहाड़ी पर झड़प हुई वो सैनिकों के भार से टूट कर नदी में आ गिरी जिसके कारण इतनी बड़ी संख्या में दोनों तरफ के सैनिक हताहत हुए.

भारतीय सेना ने भी अपने बयान में ‘हाई-ऑल्टिट्यूड’ इलाके और ‘सब-ज़ीरो’ तापमान यानी शून्य से भी नीचे तापमान का जिक्र किया है. सेना के आधिकारिक सूत्रों ने झड़प के दौरान किसी भी तरह से कोई फायरिंग से भी इंकार किया है, क्योंकि सैनिकों के पास किसी भी तरह का हथियार नहीं था.

दोनों विदेश मंत्रालयों ने दी प्रतिक्रियाएं

इस घटना के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने भी एक संक्षिप्त बयान जारी करते हुए कहा कि LAC के संदर्भ में जिस बात के लिए दोनों पक्ष रजामंद थे उसे चीन की सेना ने बदलने की कोशिश की. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, “15-16 जून की रात को जो हिंसक झड़प हुई वो चीन की तरफ से यथास्थिति यानी जमीनी परिस्थितियों को एक तरफा बदलने के कारण हुई. दोनों ही पक्षों को इस झड़प में नुकसान हुआ है जो कि बचाया जा सकता था अगर उच्च स्तर पर लिए निर्णयों को चीन ने माना होता.”

अनुराग श्रीवास्तव ने साफ तौर से कहा कि भारत सीमा पर शांति बनाकर रखना चाहता है लेकिन भारत जो भी कार्य कर रहा है वो अपनी सीमा में कर रहा है. उन्होंने कहा कि भारत चीन से भी यही अपेक्षा करता है.

चीन के विदेश मंत्रालय और पीएलए सेना की वेस्टर्न थियेटर कमांड ने बयान देकर भारत पर इस घटना की जिम्मेदारी थोपने की कोशिश की. भारत की पूरी LAC को देखने वाले वेस्टर्न थियेटर कमांड के प्रवक्ता ने तो पूरी गलवान घाटी क्षेत्र को ही अपना बताते हुए आरोप लगाया कि भारतीय सैनिकों ने दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स के बीच हुए समझौते का उल्लंघन किया है.

चीन ने नहीं दी सैन्य नुकसान की जानकारी

हालांकि, चीन की तरफ से अपने नुकसान के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा गया, लेकिन चीनी सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के संपादक ने ट्वीट कर चीनी सैनिकों के हताहत होने की पुष्टि की.

भारतीय इंटरसेप्ट के मुताबिक, चीन के कम से कम 43 सैनिक इस खूनी झड़प में हताहत हुए हैं. ये इंटरसेप्ट भारतीय सेना ने चीन के रेडियो सैट और दूसरे कम्युनिकेशन को इंटरसेप्ट कर प्राप्त किए हैं, क्योंकि चीन की तरफ से अपने सैनिकों के मारे जाने या फिर घायल होने की जानकारी शायद ही कभी सार्वजनिक की जाती है. घटना के बाद चीनी सैनिकों के हेलीकॉप्टर्स की मूवमेंट भी गलवान घाटी में काफी देखी गई जो मारे गए सैनिक और घायलों को ले जाने के लिए यहां उड़ान भर रहे थे.

आपको बता दें कि 1967 की नाथूला और चोला दर्रे के खूनी संघर्ष के बाद पहली बार इतनी बड़ी कोई झड़प भारत और चीन सीमा पर देखने को मिली है. 1967 में नाथूला और चोला की लड़ाई में चीन के करीब 400 सैनिकों की जान चली गई थी जबकि भारत के 40 जवान शहीद हुए थे, लेकिन उस वक्त भी चीनी सेना ने अपना आंकड़ा जारी नहीं किया था, जैसा कि गलवान घाटी की घटना के बाद किया है.

नई दिल्ली में दिनभर चली बैठकें

गलवान घाटी में हुए खूनी संघर्ष ने लद्दाख से लेकर सेना के उत्तरी कमान के उधमपुर स्थित मुख्यालय सहित राजधानी दिल्ली में भी हड़कंप मचा दिया. सुबह से ही थलसेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ बैठकें की.

दोपहर को रक्षा मंत्री के साथ हुई बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर भी मौजूद थे. इसके बाद देर शाम प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास, 7 लोक कल्याण मार्ग (एलकेएम) पर रक्षा मंत्री, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक लंबी बैठक की. ये सभी सीसीएस यानी कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के सदस्य हैं, जिसके प्रमुख खुद पीएम हैं.

मई के पहले हफ्ते में शुरू हुआ विवाद

आपको बता दें कि भारत और चीन के बीच पिछले डेढ़ महीने से लद्दाख से सटी एलएसी पर तनातनी चल रही है. गलवान घाटी, हॉट-स्प्रिंग्स से सटे गोगरा और पैंगोंग-त्सो लेक से सटे विवादित फिंगर-एरिया में दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव चल रहा है. 5-6 मई को फिंगर एरिया में दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी, जिसमें दोनों तरफ के दर्जनों सैनिकों घायल हुए थे. तब से लगातार सैन्य और राजनयिक स्तर पर दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है लेकिन सीमा पर तनाव कम नहीं हो रहा है.

इस बीच खबर ये भी आई थी कि चीन ने पूरी 3488 किलोमीटर लंबी एलएसी पर लद्दाख से लेकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरूणाचल प्रदेश तक अपनी सेना का बिल्ट-अप कर लिया है. इसको लेकर 6 जून को दोनों देशों के कोर कमांडर स्तर के सैन्य अधिकारियों के बीच चुशूल-मोलडो में एक लंबी मीटिंग भी हुई थी जिसके बाद थलसेना प्रमुख जनरल नरवणे ने कहा था कि स्थिति काबू में है और डिसइंगेजमेंट कि प्रक्रिया कई स्तर पर चल रही है. लेकिन गलवान घाटी की घटना से ऐसा लगता है कि ये कोई लोकल-स्तर की घटना नहीं है बल्कि पूरी एलएसी पर भारत की घेराबंदी की कोशिश है. भारतीय सेना ने साफ कर दिया है कि वो किसी भी तरह की चुनौती से निपटने के लिए तैयार है.

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