India-China Dispute: अरुणाचल प्रदेश में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई है. झड़प में दोनों देशों के सैनिकों के घायल होने की खबर है. जानकारी के मुताबिक यह झड़प तवांग के करीब हुई है. वहीं तवांग, जिसको पाने के लिए चीन वर्षों से सपने संजोए हुए है. चीन अपनी इसी हसरत को पूरा करने की चाह में हर बार मुंह की खाता है. 


चीन की निगाहें शुरू से ही पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश में स्थित बौद्ध मठ तवांग पर रही हैं. तिब्बत में रहने वाले बौद्ध समुदाय के लोगों के लिए ये मठ काफी पवित्र माना जाता है. चीन तिब्बत की तरह ही प्रमुख बौद्ध स्‍थलों पर अपनी पकड़ बनाना चाहता है.


क्यों तवांग को पाना चाहता है चीन 


चीन तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानता है. उसका दावा है कि तवांग और तिब्बत में काफी सांस्कृतिक समानताएं हैं. तवांग मठ को एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. बता दें कि वर्ष 1962 के युद्ध के समय भी तवांग पर उसका कब्जा हो गया था. लेकिन बाद में युद्धविराम के तहत उसे पीछे हटना पड़ा था.


तवांग के रास्ते भारत आए थे दलाई लामा 


चीन लगातार दलाई लामा का विरोध करता रहा है. 84 साल के दलाई लामा साल 2017 में तवांग के रास्ते ही भारत आए थे. चीन हमेशा से दलाई लामा को अलगाववादी नेता मानता आया है और कहता है कि वह साल 1959 में असफल सैन्‍य विद्रोह के बाद तिब्‍बत से भागकर भारत आए थे. 


बॉर्डर पर तिब्‍बत और भारत में थी आपसी सहमति 


बताया जाता है कि पुराने समय में तिब्‍बत के शासकों व भारतीय शासकों के बीच इसे लेकर कोई विवाद पैदा नहीं हुआ था और वे आपसी तालमेल से रहा करते थे. इसलिए उन्‍होंने अरुणाचल और तिब्‍बत के बीच कोई निश्चित सीमा रेखा निर्धारित नहीं की थी. लेकिन 20वीं सदी की शुरुआत में सीमा निर्धारित किए जाने को लेकर बात होने लगी. 


शिमला में हुई थी बैठक 


तवांग में बौद्ध मठ होने के मद्देनजर सीमाओं का निर्धा‍रण शुरू किया गया, जिसके लिए 1914 में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों के बीच शिमला में एक बैठक भी हुई. उस वक्‍त ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों ने तवांग और दक्षिणी क्षेत्र को ब्रिटिश भारत का हिस्‍सा तय किया, जिसे तिब्‍बत के प्रतिनिधियों ने भी स्‍वीकार कर लिया. लेकिन तत्‍कालीन चीनी प्रतिनिधियों ने इसे नहीं माना. चीन के रुख में और अधिक आक्रामकता तब आई, जब 1949 में वहां कम्‍युनिस्‍ट क्रांति के बाद जनवादी सरकार की स्‍थापना हुई. चीन का वह रुख अब भी बरकरार है.


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