नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच 11वीं कोर कमांडर स्तर की बातचीत के बाद शनिवार को रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी किया है. मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों को पैंगोंग-त्सो इलाके के अलावा एलएसी के बाकी विवादित इलाकों में डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी की जाए, ताकि डि-एस्कलेशन यानि सैनिकों की तादाद को भी कम किया जा सके.


शुक्रवार को दोनों देशों के कोर कमांडर स्तर की बातचीत करीब 13 घंटे चली थी. उसके बाद ही रक्षा मंत्रालय ने बयान जारी किया. बयान में कहा गया कि दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर विवादित इलाकों में डिसइंगेजमेंट को लेकर मीटिंग में विचारों का विस्तृत आदान-प्रदान किया गया. दोनों पक्षों ने मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार बकाया मुद्दों को तेजी से हल करने की आवश्यकता पर भी सहमति व्यक्त की.  


भारतीय सेना की तरफ से लेह स्थित 14वीं कोर (फायर एंड फ्यूरी कोर) के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने नेतृत्व किया, जबकि चीन की तरफ से पीएलए-सेना के दक्षिणी झिंगज्यांग डिस्ट्रिक के कमांडर ने नेतृत्व किया. भारत के कहने पर ये मीटिंग बुलाई गई थी जो एलएसी पर पूर्वी लद्दाख के चुशूल बीपीएम-हट में हुई. 


पैंगोंग त्सो लेक के सटे इलाकों से सेना पीछे हटी
इसी साल 24 जनवरी को हुई 9वें दौरे की मीटिंग के बाद दोनों देशों ने पैंगोंग त्सो लेक से सटे इलाकों से डिसइंगेजमेंट कर लिया है. लेकिन अभी कुछ विवादित इलाकों में डिसइंगेजमेंट के साथ-साथ पूरी तरह से डि-एस्कलेशन होना बाकी है. इसी मुद्दे पर दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स ने बातचीत की. मीटिंग में दोनों देशों के डिप्लोमेट भी मौजूद रहे.


शुक्रवार को हुई 11वें दौर की मीटिंग का एजेंडा डिसइंगेजमेंट और डि-एस्कलेशन था यानि दोनों देशों के सैनिक एलएसी से पीछे हट जाएं और सैनिकों की तादाद भी कम कर दी जाए. ये डिसइंगेजमेंट गोगरा, हॉट-स्प्रिंग, डेपसांग प्लेन्स और डेमोचक जैसे विवादित इलाकों में किया जाना है. एक अनुमान के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल पर दोनों देशों ने करीब एक-एक लाख सैनिकों को अभी भी तैनात किया हुआ है. इसके अलावा बड़ी तादाद में टैंक, तोप, आईसीवी और मिसाइलों को भी यहां तैनात किया हुआ है. इसके अलावा पूरी एलएसी से सैनिकों की तैनाती को कम करना भी है यानि डि-एस्किलेशन भी है.  


एक साल से चल रहा है गतिरोध
एलएसी पर एशिया की दो महाशक्तियों के बीच टकराव को पूरा एक साल हो गया है. पिछले साल यानि 5-6 अप्रैल 2020 को ही एलएसी के पैंगोंग-त्सो झील से सटे फिंगर एरिया में दोनों देशों के बीच पहली बार झड़प हुई थी. उसके बाद 15-16 जून को गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई खूनी झड़प में भारत के 20 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे. चीन को भी हालांकि एक बड़ा नुकसान हुआ था, लेकिन चीन ने कभी इस बात का खुलासा नहीं किया कि उसके कितने सैनिक हताहत हुए हैं. इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच संबंध बेहद तल्ख हो गए थे.


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