India-China Relations: क्या इस नीति से दिल्ली और बीजिंग के बीच सुधरेंगे हालात? रूसी राजदूत ने बताई अहम बात
India China Relations: रूसी राजदूत डेनिस अलीपोव ने भारत और चीन के बीच जारी गतिरोध पर खुलकर बात की. उनका मानना है कि अब दिल्ली और बीजिंग के बीच सकारात्मक संवाद होगा.
Russia On India China Dispute: भारत में रूसी राजदूत डेनिस अलीपोव (Russian Ambassador Denis Alipov) ने कहा है कि रूस-भारत-चीन (Russia-India-China) त्रिपक्षीय ढांचे में सहयोग की 'असाधारण क्षमता' है. यह नई दिल्ली और बीजिंग के बीच सकारात्मक वार्ता को प्रोत्साहित करने में सहयोगात्मक साबित हो सकता है. राजदूत ने कहा कि आरआईसी का रुख उन कुछ शक्तियों की नीतियों से बहुत अलग है जिनका भारत और चीन के बीच असहमति के लिए 'जानबूझकर दुरुपयोग' किया जा रहा है. परोक्ष रूप से उनकी बात का संदर्भ अमेरिका से जोड़कर देखा जा रहा है.
अलीपोव ने अमेरिका (America) नीत 'हिंद-प्रशांत' (Indo-Pacific) पहल की भी निंदा की. उन्होंने इसे 'निषेध नीति' करार दिया, लेकिन साथ ही क्वाड में 'विभाजनकारी' बयानों का समर्थन करने से इनकार करने के भारत के रुख की प्रशंसा भी की. राजदूत ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा कि आरआईसी क्षेत्र में 'आपसी समझ, विश्वास और स्थिरता' को बढ़ाने में सहायक है और यह सदस्यों देशों के बीच सहयोग और समन्वय बढ़ाने में अधिक योगदान कर सकता है.
'RIC से दिल्ली और बीजिंग के बीच होगा सकारात्मक संवाद'
उन्होंने कहा, 'निश्चित रूप से, रूस के लिए यह प्राथमिकता वाला प्रारूप है जिसके बारे में हमारा मानना है कि यह नई दिल्ली और बीजिंग के बीच सकारात्मक संवाद को प्रोत्साहित करने में सहायक हो सकता है.' उन्होंने अमेरिका की परोक्ष रूप से आलोचना करते हुए कहा, 'इसका रुख निश्चित तौर पर कुछ अन्य शक्तियों की नीति से बहुत अलग है, जो जानबूझकर भारत और चीन के बीच असहमति का दुरुपयोग अपने भू राजनीतिक खेल के लिए कर रहे हैं.'
पूर्वी लद्दाख में चीन और भारत के बीच गतिरोध की स्थिति
गौरतलब है कि पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) के कई स्थानों पर भारत और चीन के बीच गतिरोध बना हुआ है. अनेक दौर की राजनयिक और सैन्य वार्ताओं के बावजूद दो साल से अधिक समय से गतिरोध बना हुआ है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले सप्ताह कहा था कि सीमा की स्थिति भारत-चीन संबंधों की स्थिति को निर्धारित करेगी.
आरआईसी का महत्व क्या है?
रूसी राजदूत ने कहा, 'यह (आरआईसी) क्षेत्र में आपसी समझ, विश्वास और स्थिरता बढ़ाने में बहुत सहायक है, साथ ही यह वैश्विक और क्षेत्रीय उथल-पुथल के बीच बहुपक्षीय संस्थाओं के एजेंडे का समर्थन करता है जिनके हम सदस्य हैं, जैसे ब्रिक्स (ब्राजील, भारत, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और शंघाई सहयोग संगठन (एसीओ).'
आरआईसी ढांचे के तहत तीनों देशों के विदेश मंत्री एक नियमित अंतराल पर बैठक करते हैं और आपसी हितों के द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करते हैं. ब्रिक्स के सदस्य देश दुनिया की 41 प्रतिशत आबादी का, 24 प्रतिशत वैश्विक जीडीपी का और 16 प्रतिशत वैश्विक व्यापार का प्रतिनिधित्व करते हैं.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच भारत और रूस के बीच सहयोग के बारे में पूछे जाने पर अलीपोव ने कहा कि 'हिंद प्रशांत' के मुद्दे पर अब तक सहमति नहीं बनी है. उन्होंने कहा, 'हम यह भी अपने दिमाग में रख रहे हैं कि अमेरिका विशेष और निषेध नीति के लिए इस शब्दावली का इस्तेमाल कर रहा है जिसने यूक्रेन संकट बढ़ने से पहले खुले तौर पर रूस को खतरा करार दिया था.'
'हम भारत के रुख की प्रशंसा करते हैं'
उन्होंने कहा, 'रूस ही नहीं, अमेरिका बहुपक्षीय प्रारूप को रोकने और अन्य देशों को संघर्ष में धकेलने के लिए ऐसी नीति को प्रोत्साहित कर रहा है. इस संदर्भ में हम भारत के रुख की प्रशंसा करते हैं जिसने क्वाड में विभाजनकारी बयान में शामिल होने से इनकार कर दिया था.'
गौरतलब है कि क्वाड भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का गठबंधन है. भारत एक मुक्त, समावेशी और नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र की वकालत कर रहा है. क्वाड हिंद-प्रशांत में सहयोग बढ़ाने के प्रयासों को मजबूत कर रहा है और यह इन आलोचनाओं को खारिज करता है कि यह किसी देश के खिलाफ है.
'हिंद प्रशांत सागर क्षेत्र पर रूस और भारत का रुख एक है'
हिंद प्रशांत सागर क्षेत्र को लेकर भारत के रुख का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा, 'रूसियों और भारतीयों का क्षेत्र को लेकर रुख पूरी तरह से एक है. जब हमने इलाके के विकास में आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का सहयोग संगठन) की केंद्रीय भूमिका का समर्थन किया तो हमारी कथनी और करनी एक रही.'
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