नई दिल्ली: चीन भले ही पाकिस्तान के साथ मिलकर उत्तर के ज़मीनी इलाके में भारत के खिलाफ नाकेबंदी कर सकता हो. लेकिन उसकी असली चिंता हिन्द महासागर इलाके में भारत की ताकत, हैसियत और दबदबा है. इस बात का सीधा अंदाज़ा आपको भारत का नक्शा उल्टा करते ही समझ आ जायेगा. क्योंकि इस बात से यह साफ होता है कि ज़मीन पर जहां भारत के विकल्प सीमित हैं वहीं हिन्द महासागर में उसके पास चीन की नाकेबंदी के विकल्प भी बहुतेरे हैं और उसके दोस्तों की टीम भी काफी मजबूत है.


कारोबारी आवाजाही के लिए खतरे बढ़ाते हैं चीन के विवाद


वहीं अगर चीन के नक्शे पर नज़र आता है कि दुनिया में आकर के लिहाज से तीसरे और आबादी के पैमाने पर पहले नम्बर वाले देश के बड़े और अहम इलाके पूर्वी छोर पर हैं, जहां आबादी तो घनी है लेकिन पहुंच का रास्ता क्षेत्रीय विवादों से घिरा है. दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में पड़ोसियों के साथ चीन के विवाद कारोबारी आवाजाही के लिए खतरे बढ़ाते हैं.


मलक्का स्ट्रेट पर फंसी है चीन की अर्थव्यवस्था की गर्दन


हिन्द महासागर में मलक्का स्ट्रेट व्यस्ततम समुद्री कारोबारी मार्गों में से है. दुनिया के सबसे बड़े तेल खरीददार चीन का 72 फीसद पेट्रोलियम आयात भी एशिया के इसी गलियारे से होता है. ऐसे में चीन को लगातार यह चिंता सताती है कि मलक्का स्ट्रेट पर उसकी अर्थव्यवस्था की गर्दन फंसी है. इतना ही नहीं हिन्द महासागर में भारत की हैसियत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस महासागर का नाम ही उसके नाम से जुड़ा है. भारत की भौगोलिक स्थिति उसे हिन्द महासागर की एक बड़ी और खास ताकत बनाती है.


हिन्द महासागर में भारत की नाकेबांदी से बचने की ही जुगत में चीन कभी पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह के सहारे तेल आयात का ज़मीनी रास्ता तलाशने की जुगत करता रहा तो कभी बांग्लादेश और म्यांमार के रास्ते वैकल्पिक कारोबारी मार्ग बनाने की कोशिश करता रहा है. श्रीलंका के हम्मबनटोटा पोर्ट और जिबूती के बंदरगाह पर नैसैनिक ठिकाने बनाने की चीन की योजना भी उसके इसी काउंटर इंडिया प्लान का हिस्सा है. क्योंकि चीन यह अच्छे से जनता है कि भारत अगर अगर समुद्र में उसके खिलाफ नाकेबंदी लगाता है तो उसकी हालत खराब हो सकती है.


क्रा कैनाल के प्लान को आगे बढ़ाने में जुटा है चीन


समंदर में आवाजाही के छोटे वैकल्पिक रास्ते बनाने की जुगत में ही चीन पिछले कुछ वक्त से क्रा कैनाल के प्लान को आगे बढ़ाने में जुटा है. यानी चीन थाईलैंड को दो भागों में तोड़कर समुद्री गलियारा बनाने की परियोजना को हवा दे रहा है. वैसे यह आइडिया नया नहीं है जिसका क्रा-कैनाल नाम होगा. थाईलैंड में भी यह विचार नया नहीं है. थाईलैंड में ही एक बड़ा वर्ग इसे समृद्धि और सम्भावना के दरवाजे के तौर पर देख रहा है. मगर कभी लागत की चिंताओं तो कभी इस कैनाल के बनने पर मलेशिया से सटे थाई इलाके के अलग हो जाने की चिंताओं जैसे विभिन्न कारणों से यह आइडिया हर बार टालता रहा.


इस परियोजना पर ताज़ा ज़ोर जहां थाईलैंड में चीन-थाई आर्थिक-सांस्कृतिक संघ जैसे संगठन कर रहे हैं. वहीं सरकार ने भी पूर्व सेनाध्यक्ष जकी अगुवाई में समिति बनाकर इस प्रस्ताव का नफ़ा-नुकसान तौलने को कहा है. चीन की लुंघाओ जैसी कम्पनी भी इस प्रस्ताव के लिए ज़ोर लगा रही है जिसने दक्षिण चीन सागर में कृत्रिम द्वीप तैयार किए थे.


परियोजना से अंडमान सागर और दक्षिण चीन सागर सीधे जुड़ जाएंगे


मलक्का पर निर्भरता कम करने की जुगत में चीन इस परियोजना को समर्थन दे रहा है जो दक्षिणी थाईलैंड को चुम्फोन प्रान्त इलाके में दो भागों में बांट दे ताकि एक नया समुद्री रास्ता खुल सके. यूं तो इस परियोजना का लाभ सभी मुल्कों को होगा मगर सबसे बड़ा फायदा चीन के खाते में जायेगा क्योंकि इस नए रास्ते के खुलने से अंडमान सागर और दक्षिण चीन सागर सीधे जुड़ जाएंगे. चीन इसके लिए करीब 30अरब डॉलर की धनराशि खर्च करने को भी तैयार है.


क्रा नहर परियोजना का जहां कारोबारी पहलू है वहीं रणनीतिक पक्ष भी है. क्योंकि इस नए समुद्री रास्ते के खुलने से हिन्द महासागर में अपनी चल-कदमी बढा रही चीन की नौसेना के लिए सहूलियत आसानी हो जाएगी. क्रा नहर परियोजना को चीन का समर्थन भारत समेत कई मुल्कों के मन में आशंका बढ़ा रही है कि चीन इसका इस्तेमाल अपने सैन्य दबदबे के लिए भी करेगा.


चीन के इन मंसूबो को भांपते हुए भारत ने किया ये काम


चीन के इन मंसूबो को भांपते हुए भारत ने बीते बिम्सटेक पोर्ट कॉन्क्लेव की मेजबानी की. इस दौरान भारत के चेन्नई, विशाखापत्तनम और कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने थाईलैंड के रोनोंग बंदरगाह के साथ जोड़ने के लिए तीन एमओयू किए गए. रोनोंग उसी जगह पर स्थित है जहां से प्रस्तावित क्रा नहर निकाले जाने की योजना है. चीन की चालों का जवाब देने के लिए भारत ने समंदर में अपनी सैन्य ताकत मजबूत करने के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय साझेदारी का भी ताना-बाना तैयार किया है जो ड्रेगन की घबराहट और फिक्र बढाने को काफी है.


भारत अपने अंडमान और लक्षद्वीप जैसे इलाकों को आधुनिक सुविधाओं व हथियारों से लैस विमानवाहक युद्धपोत कर तरह तैयार कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक इस कवायद में अंडमान द्वीप समूह में उत्तर की तरफ स्थित शिबपुर के नौसेना बेस आइएनएस कोहासा और केम्पबेल की हवाई पट्टी को एक नए लड़ाकू हवाई अड्डे में बदलने की तैयारी हो गयी है. तरह विकसित कर रहा है.


अंडमान निकोबार को पहले ही ट्राई सर्विस बेस बना चुका है भारत


इसके अलावा लक्षद्वीप के अगट्टी की हवाई पट्टी को भी वायुसैनिक ठिकाना बनाने का प्लान बन गया है.भारत अंडमान निकोबार को पहले ही ट्राई सर्विस बेस बना चुका है जो सीधे स्ट्रेटेजिक फोर्स कमांड के तहत आता है. यानी इस द्वीप पर किसी भी समय पर नौसेना के अलावा वायुसेना और थल सेना के दस्तों के अलावा कई मिसाइलें भी तैनात है. ऐसे में भारत की इस बढ़ी ताकत के साथ चीन के कई कारोबारी हित भारतीय प्रहार क्षमता की ज़द में आते हैं.


चीन की घबराहट भारत-अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया और जापान की चौकड़ी के बीच मजबूत होती साझेदारी को लेकर भी है. बीते दिनों अमेरिका के विदेश उपमंत्री स्टीफन बेगुन ने भारत-अमेरिका रणनीतिक सहयोग फोरम के एक कार्यक्रम के दौर कहा था की क्वाड अब एक वास्तविकता है. लेकिन अभी तक इंडो-पैसिफिक समूह के इन देशों के पास नाटो और यूरोपीय संघ की तरह कोई मजबूत ढांचा नहीं है. ऐसे में अमेरिका की तरफ से इस बात का न्यौता है कि हम देर-सवेर इस समूह नाटो या ईयू जैसा ढाँचा तय करें.


क्वाड देशों की एक बैठक आयोजित करेगा भारत


भारत की रणनीति में भी क्वाड की की अहमियत बढ़ रही है. विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने 3 सितम्ब को कहा कि भारत जल्द ही क्वाड देशों की एक बैठक आयोजित करेगा. इतना ही नहीं भारत के सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने भी 3 सितम्बर को एक ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान क्वाड को समुद्री आवाजाही की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए एक कारगर तंत्र करार दिया.


क्वाड की सम्मिलित ताकत चीन के मुकम्मल घेराबंदी करने के लिए काफी है. चारों देशों की सैनिक ताकत चीन की सैन्य हैसियत से कहीं ज़्यादा की है. वहीं दुनिया की सबसे बड़ी सैनिक महाशक्ति अमेरिका भी यह साफ कर चुका है कि अब आने वाले वक्त में उसकी ताकत का फोकस हिन्द-प्रशांत के क्षेत्र में होगा. यानी अपनी सैनिक ताकत का बड़ा हिस्सा अन्य इलाकों से निकालकर अमेरिका हिन्द-प्रशांत कस क्षेत्र में लगाएगा.