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चीन से तनातनी के बीच CDS बिपिन रावत ने क्यों दिया बड़ा बयान? यहां जानिए इसकी वजह

शांति समझौतों के तहत दोनों देश इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि जबतक शांतिपूर्ण तरीके से सीमा विवाद नहीं सुलझ जाता है तबतक दोनों देशों की सेनाएं विवादित इलाकों में किसी भी तरह की घुसपैठ नहीं कर सकती हैं.

नई दिल्लीः एलएसी पर चल रही तनातनी के बीच चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), जनरल बिपिन रावत ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि अगर चीन से चल रही बातचीत फेल हुई तो भारत के पास सैन्य-विकल्प का रास्ता खुला हुआ है, क्योंकि चीन पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर विवादित इलाकों में घुसपैठ करने के बाद बातचीत के बाद भी पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है.

सीडीएस का बयान शनिवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोवाल की तीनों सेनाओं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) प्रमुखों के साथ एक उच्च-स्तरीय बातचीत के बाद आया है. इस मीटिंग में सीडीएस जनरल बिपिन रावत भी मौजूद थे.

CDS के बयान की ये हैं वजहें

जानकारी के मुताबिक, सीडीएस ने साफ किया है कि सरकार चीन के साथ शांतिपूर्ण तरीके से एलएसी पर चल रही तनातनी खत्म करना चाहती है, लेकिन अगर चीन से चल रही सैन्य और राजनयिक बातचीत असफल रही तो चीन के खिलाफ ‘मिलिट्री-ओपशन’ खुला हुआ है ताकि एलएसी पर अप्रैल महीने के आखिर वाली स्थिति (‘स्टेट्स क्वो एंटे’) को फिर से बरकरार किया जा सके. सीडीएस के मुताबिक, देश की सेनाएं किसी भी सैन्य कारवाई के लिए हमेशा तैयार रहती हैं.

एबीपी न्यूज आपको बताने जा रहा है कि कि सीडीएस का ‘सैन्य विकल्प’ का बयान क्यों आय़ा है:

पहला कारण ये है कि पिछले तीन महीने से चीनी सेना पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी के विवादित इलाके—फिंगर एरिया, गोगरा और हॉट-स्प्रिंग इलाकों में—घुसपैठ कर बैठा हुआ है.

दूसरा कारण ये है कि सैन्य और राजनयिक स्तर पर हो चुकी एक दर्जन से भी ज्यादा बैठकों के बाद भी चीनी सेना पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है.

एलएसी के विवादित इलाकों में यथास्थिति के साथ छेड़छाड़ भारत और चीन के बीच हुए पांच शांति समझौतों का उल्लंघन है. ये तीसरा बड़ा कारण है. भारत-चीन सीमा पर शांति बहाली के लिए किए गए ये समझौते 1993, 1996, 2005, 2012 और 2013 में किए गए थे.

  • 1993—एग्रीमेंट ऑन मेटेंनेंस ऑफ पीस एंड ट्रैन्क्यूलेटी एलॉन्ग लाइन ऑफ कंट्रोल
  • 1996—एग्रीमेंट ऑन कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स इन मिलिट्री-फील्ड एलॉन्ग एलएसी
  • 2005—प्रोटोकॉल ऑन मोडेलिटीज़ फॉर इम्पीलेंटनेशन ऑफ द कॉन्फिडेंस बिल्डिंग
  • 2012—एग्रीमेंट ऑन एस्टेबिलिशमेंट ऑफ ए वर्किंग मैकेन्ज़िम फॉर कन्सलेटेशन एंड कोर्डिनेशन ऑन इंडिया-चायना बॉर्डर एफेयर्स
  • 2013—बॉर्डर डिफेंस कॉपरेशन एग्रीमेंट

शांति समझौतों में तय बातों का उल्लंघन कर रहा चीन

दरअसल, इन शांति समझौते के तहत दोनों देश इस बात के लिए तैयार हो गए थे कि जबतक शांतिपूर्ण तरीके से सीमा विवाद नहीं सुलझ जाता है तबतक दोनों देशों की सेनाएं विवादित इलाकों में किसी भी तरह की घुसपैठ नहीं कर सकती हैं.

अगर अलग-अलग धारणांओं के चलते घुसपैठ होती भी है तो इन शांति समझौते के तहत मामले को सुलझाया जाएगा और सेनाएं पीछे हट जाएंगी. लेकिन चीनी सेना ऐसा नहीं कर रही है. इन विवादित इलाकों में किसी भी तरह का बॉर्डर फोर्टिफिकेशन यानि सैन्य गतिविधियां और इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाया जाएगा.

इन शांति समझौते के उलट चीनी सेना ने ना केवल घुसपैठ की बल्कि वहां पर स्थायी तौर से टेंट, कैंप, बैरक और बॉर्डर फोर्टिफिकेशन किया है. खास तौर पर, पैंगोंग-त्सो लेक से सटे फिंगर एरिया में चीनी सेना ने ना केवल बड़ी तादाद में सैनिकों को जमावड़ा किया है बल्कि अपने कैंप, पक्के बैरक और हेलीपैड तक तैयार कर लिए हैं. ये गतिविधियां फिंगर 8 से फिंगर 5 के बीच किया है.

ये सबकुछ चीन ने मई महीने के शुरूआत से किया है. मई महीने के पहले तक चीनी सेना की तैनाती फिंगर 8 के पीछे सिरजैप और खुरनाक फोर्ट में रहती थी. ये शांति समझौता का उल्लंघन है.

बैठकों में मसला सुलझाने के बजाए चीन का अड़ियल रवैया

साथ ही चीन पिछले तीन-चार मीटिंग में अड़यिल रवैया अपना रहा है. वो फिंगर एरिया से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है. उल्टा भारत के सामने शर्त रख दी है कि अगर भारत पीछे हटेगा तो चीन भी उतना ही पीछे हटेगा, जबकि भारत की फिंगर 2 एरिया में 1962 के युद्ध के बाद से ही ‘थनसिंह थापा पोस्ट’ है. ऐसे में भारत ने चीन का ये प्रस्ताव खारिज कर दिया है.

डेपसांग प्लेन्स में भी चीनी सेना का हैवी बिल्ड-अप यानि भारी तैनाती है. यहां पर चीनी सेना ने एलएसी के बेहद करीब ना केवल बड़ी तादाद में सैनिक तैनात किए हैं बल्कि टैंक, तोप और हैवी मशीनरी भी तैनात कर रखी है. यानि चीनी सेना पूरी तरह से युद्ध के लिए तैयारी कर रही है.

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