नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी के पैंगोंग-त्सो लेक के उत्तर और दक्षिण छोर के विवाद पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच डिसइंगेजमेंट समझौता हो गया है. इसमें पूर्वी लद्दाख का सबसे विवादित इलाका, फिंगर एरिया भी शामिल है. नए समझौते के तहत चीनी सेना अब फिंगर नंबर-8 के पीछे चली जाएगी और भारतीय सेना फिंगर तीन पर. गुरूवार को संसद में डिसइंगेजमेंट पर बयान देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया था कि फिंगर एरिया में दोनों देशों की सेनाएं अप्रैल-मई 2020 की स्थिति पर लौट आएंगी यानि 'स्टेट्स कयो एंटे' स्थापित किया जाएगा.


पिछले साल तक दोनों देशों की सेनाओं की तैनाती कहां होती थी?


एबीपी न्यूज अब आपको बताने जा रहा है कि आखिर अप्रैल-मई 2020 के दौरान दोनों देशों की सेनाओं की पोजिशन यानि तैनाती कहां होती थी. एबीपी न्यूज संवाददाता ने पिछले साल विवाद शुरू होने से पहले फिंगर एरिया के भारतीय सेना के फौजी मैप भी देखे हैं और सेना मुख्यालय के बड़े अधिकारियों से भी इस मामले पर समय समय पर चर्चा भी की है. साथ ही सेना के उऩ पूर्व वरिष्ट सैन्य अधिकारियों से बातचीत की है, जो एलएसी विवाद पर चीन की पीएलए आर्मी से बैठक कर चुके हैं और चीन का दावा भी जानते हैं. उसी के आधार पर एबीपी न्यूज फिंगर एरिया की वस्तुस्थिति बताने जा रहा है.


फिंगर एरिया में असल विवाद 1999 से शुरू हुआ था. उस वक्त भारत करगिल में पाकिस्तान से युद्ध लड़ रहा था तब चीन ने इस एरिया में पैट्रोलिंग करने के बहाने फिंगर 8 से लेकर 5 तक एक सड़क बना ली थी. उस वक्त भारत क्योंकि पाकिस्तान से जूझ रहा था, और टू-फ्रंट वॉर के लिए तैयार नहीं था, इसलिए भारतीय सेना ने कोई खास एतराज नहीं जताया था. लेकिन तब तक चीन ने वहां अपना कोई बंकर या चौकी नहीं बनाई थी. चीन की तैनाती फिंगर 8 के पूर्व (यानि पीछे) सिरेजैप और खुरनाक फोर्ट पर रहती थी. लेकिन मौजूदा विवाद पिछले साल यानि मई 2020 में शुरू हुआ, जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी. 5-6 मई 2020 को चीन की पीएलए सेना ने पहले इस‌ 1999 वाली सड़क की ब्लैक टॉपिंग का बहाना बनाया और फिर यहीं आकर जम गई. चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को फिंगर 4 से आगे पैट्रोलिंग नहीं करने दी.


नया ट्रैक काफी कठिन, उंचे पहाड़ों से होकर गुजरता है


ऐसे में भारतीय सैनिक ने एक नए ट्रैक से फिंगर 7 तक पैट्रोलिंग करने लगे. ये ट्रैक हॉट स्प्रिंग के करीब गोगरा पोस्ट से फिंगर 7 पर निकलता था. इस ट्रैक से आने के लिए पैंगोंग त्सो लेक और फॉबरांग जाने की जरूरत नहीं होती है. लेकिन ये नया ट्रैक काफी कठिन है और उंचे पहाड़ों से होकर गुजरता है. इस नए ट्रैक से चीन और अधिक भन्ना उठा. उसने फिंगर पांच से लेकर गोगरा से आने वाले ट्रैक पर अपने सैनिक तैनात कर दिए.  इसके बाद चीनी सेना ने फिंगर 4 और 8 के बीच बड़ी तादाद में बंकर, बैरक, फील्ड-हॉस्पिटल और हैलीपैड तक बनाकर अपना कब्जा करने की कोशिश की. फिंगर 8 से 4 तक की दूरी करीब 9 किलोमीटर की है. ऐसे में चीन ने इस करीब करीब 60 वर्ग किलोमीटर के इलाके पर गैर-कानूनी कब्जा कर लिया. हालांकिं ये 'डिफेक्टो' 1999 से चीन के पास ही था.


भारत का ऐतराज फिंगर 4-8 पर कब्जे पर नहीं बल्कि एलएसी से जुड़े उन समझौतों को लेकर था, जो भारत और चीन ने 1993 के बाद से एलएसी पर शांति कायम करने के लिए किए थे. उस एक समझौते में साफ था कि एलएसी के विवादित इलाकों में किसी तरह का डिफेंस-इंफ्रस्ट्राकचर खड़ा नहीं किया जाएगा. यही वजह है कि जो अब डिसइंगेजमेंचट समझौता हुआ है उसमें जितना भी निर्माण-कार्य पिछले नौ महीने में हुआ है, उसे सब डिसमेंटल यानि तोड़ना शामिल है.


1962 युद्ध के बाद फिंगर नंबर 3 पर थी भारतीय सेना की स्थायी चौकी


भारत की बात करें तो 1962 के युद्ध में सिरिजैप और खुरनाक फोर्ट खोने के बाद से ही भारतीय सेना की स्थायी चौकी फिंगर नंबर 3 पर थी. 62 के युद्ध में चीन के खिलाफ बहादुरी और पराक्रम का परिचय देने वाले मेजर थनसिंह थापा के नाम पर भारत ने इस चौकी को थनसिंह थापा पोस्ट नाम दिया. धनसिंह थापा को देश के सबसे बड़े बहादुरी मेडल, परमवीर चक्र से नवाजा गया था. चीन ने उन्हें .युद्धबंदी बना लिया था, लेकिन बाद में रिहा कर दिया था. परमवीर चक्र मिलने के बाद पता चला था कि वे जिंदा है. शांति के वक्त आईटीबीपी के जवान इस चौकी पर तैनात रहते है. लेकिन पिछले साल विवाद शुरू होने के बाद से ही भारतीय सेना इस चौकी पर तैनात है.


अप्रैल-मई 2020 से पहले तक भारतीय सेना मानती थी कि एलएसी यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल फिंगर 4 और 5 के बीच से गुजरती है, क्योंकि चीन की सड़क फिंगर 5 तक थी. लेकिन क्योंकि भारतीय सेना फिंगर 8 तक दावा करती थी, इसलिए फिंगर 8 तक पैट्रोलिंग करती थी. जब कभी भी दोनों देशों के सैनिक पैट्रोलिंग के दौरान यहां टकरा जाते थे तो विवाद होता था--हालांकि स्थानीय कमांर्ड्स के दखल के बाद दोनों देशों के सैनिक वापस अपने अपने बैरक मे ंलौट आते थे. लेकिन फिंगर एरिया में लड़ाई की शुरूआत हुई पिछले साल 5-6 मई को. क्योंकि चीनी सेना भारतीय सैनिकों को फिंगर 4 से आगे पैट्रोलिंग नहीं करने दे रही थी. चीनी सेना क्योंकि फिंगर 2 तक अपना दावा करती है. इसलिए चीनी सेना चाहती थी कि भारतीय सैनिक थनसिंह थापा पोस्ट से आगे ना आएं. भारत की क्लेम लाइन दरअसल, अक्साई चिन की सीमा से एलाईंड करती है. इसीलिए भारत अपना दावा 8 नंबर तक करता है--जैसाकि भारत अक्साई चिन पर करता है जिसपर चीन ने '62 के युद्ध में कब्जा कर लिया था.


फिंगर 4 पर हुई थी दोनों देशों के सैनिकों में भिडंत


5-6 मई 2020 को दोनों देशों के सैनिकों में फिंगर 4 पर जबरदस्त भिडंत हुई थी. इस भिड़ंत में दोनो तरफ के कई दर्जन सैनिक घायल हुए थे. दोनों तरफ के सैनिकों ने हमला करने के लिए लाठी-डंडे  से लेकर पत्थरबाजी तक की थी. गाड़ियों के शीशे तक तोड़ दिए थे. शुरूआत में भारतीय सैनिक कम थे इसलिए चीनी सैनिक भारी पड़ गए थे. लेकिन बाद में भारतीय सेना ने अपनी रिइंफोर्समेंट भेजी तो चीनी सैनिक अपनी आर्मर्ड गाड़ियां तक छोड़कर पास की पहाड़ियों में भाग खड़े हुए थे (जिसका वीडियो वायरल हुआ था).


ये पूरा फिंगर एरिया विवादित क्षेत्र है यानि मिलेट्री भाषा में कहें तो ये दोनों देशों के बीच एक बड़ा 'फ्लैश पाइंट' ( Flash-Point) है. वर्ष 2017 में भी दोनों देशों के सैनिकों के बीच यहां एक झड़प हुई थी जिसका वीडियो सामने आया था. पेंगोंग लेक की दूूरी लद्दाख के प्रशासनिक मुख्यालय, लेह से 150 किलोमीटर है. यहां तक पहुंचने के लिए दुनिया की दूसरे सबसे उंचाई वाली सड़क, चांगला पास (दर्रे) से गुजरना पड़ता है, जो करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर है. पेंगोंग लेक से गुजरने वाली एलएसी भी क्योंकि 'डिमार्केटेड' नहीं है इसलिए कई बार चीनी सैनिक अपनी बोट्स को जानबूझकर भारत की तरफ लेकर आने की कोशिश करते हैं. यही वजह है कि भारतीय सैनिक और आईटीबीपी के जवान भी लेक में अपनी बोट्स से यहां गश्त लगाते हैं. एक बार तो दोनों देशों की बोट्स के टकराने की खबर आई थी.


पेंगोंग-त्सो लेक की लंबाई 135 किलोमीटर 


करीब चौदह हजार (14300) फीट की उंचाई पर पेंगोंग-त्सो लेक की लंबाई 135 किलोमीटर है. भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल, जिसे एलएसी भी कहा जाता है इसी विश्व-प्रसिद्ध झील के बीच से गुजरती है. 135 किलोमीटर लंबी इस झील का दो-तिहाई हिस्सा चीन के पास है और एक-तिहाई यानि 30-40 किलोमीटर भारत के पास है. तिब्बत की राजधानी, ल्हासा यहां से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर की दूरी पर है तो चीन की राजधानी बीजिंग तीन हजार छह सौ किलोमीटर. पैंगोंग लेक पर बाकयदा एक माईल-स्टोन लगा है जिसपर ये लिखा रहता था. लेकिन पिछले महीने जब एबीपी न्यूज की यहां पहुुंची चतो वो माईल-स्टोन गायब था. एबीपी न्यूज पहला ऐसा न्यूज चैनल था जो नौ महीने के विवाद के दौरान सबसे पहले पैंगोंग-त्सो लेक पहुंचा था.


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