नई दिल्ली: महीने भर में भारत और चीन के सैनिकों के बीच तीन बार झड़प हो चुकी है. गैलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिक आमने सामने बैठे हैं. लेकिन जिस जगह चीनी सैनिक बैठे हैं वो अक्साई चिन भारत का था. भारत के इस हिस्से पर चीन ने कब्जा कर लिया. सवाल ये है कि अक्साई चिन को भारत ने कैसे खो दिया? उसके लिए कौन जिम्मेदार है और कैसे हम इसे दोबारा हासिल कर सकते हैं? चीन बार बार हमारी सीमा में घुसता है, भारत को उकसाता है तो क्या इन सारे सवालों का संबंध अक्साई चिन को लेकर उसकी असुरक्षा से जुड़ा है? पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर की नीलम घाटी जहां लगातार सीजफायर तोड़ रही पाकिस्तानी सेना भारत की कार्रवाई से सकते में आ गई. ये कार्रवाई थी भी ऐसी पाकिस्तान को ऐसी मार पहले शायद ही कभी पड़ी थी. देखते ही देखते पाकिस्तानी सेना भाग खड़ी हुई और पहाड़ों के बीच आग के शोले जलने लगे. भारत की कार्रवाई से पाकिस्तान इतना घबरा गया कि उसने सारी दुनिया को भारत के हाथों हुई पिटाई के एक-एक जख्म खुद दिखाए लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के गोलों ने पाकिस्तान के साथ-साथ चीन को भी डरा दिया और उसके अफसर इलाके को छोड़कर भाग खड़े हुए.


सवाल ये है कि पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में हुई इस कार्रवाई ने भारत के प्रति चीन के रवैय्ये को कैसे बदल दिया. सवाल ये भी है कि गिलगित बाल्टिस्तान और पीओके को लेकर भारतीय आक्रमता से चीन के क्यों पसीने छूट रहे हैं ? वो कौन सा डर है, जो चीन को बार-बार भारत से टकराने के लिए मजबूर कर रहा है? 5 अगस्त 2019 वो ऐतिहासिक तारीख, जिस दिन जम्मू कश्मीर को 70 सालों तक भारत से दूर करने वाले अनुच्छेद 370 को हटाकर फेंक दिया गया. इस दिन गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में ऐलान किया कि पूरा जम्मू कश्मीर भारत का है और जो हिस्सा हमारे पड़ोसियों ने हड़प लिया है उसे भारत लेकर रहेगा.



सवाल ये है कि अमित शाह के इस ऐलान ने बीजिंग में बैठे जिनपिंग को क्यों परेशान कर दिया? सवाल है कि जम्मू कश्मीर पर मोदी सरकार की आक्रामक नीति का गलवान घाटी में चीन की घुसपैठ से क्या रिश्ता है? अगर है तो वो रिश्ता क्या है? लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC के पास चीन और भारतीय सेना के बीच तनाव बढ़ता दिख रहा है. एक्सपर्ट को डर है कि अगर दोनों सेनाएं आमने-सामने हुईं तो 2017 के डोकलाम विवाद के बाद ये सबसे बड़ा विवाद होगा. चीन के इरादे इसलिए भी खतरनाक लग रहे हैं क्योंकि गैलवान जैसे इलाकों में भारत-चीन के बीच इस तरह का विवाद शायद ही देखने को मिला हो. जिस गैलवान घाटी को लेकर कभी इतना बड़ा विवाद नहीं हुआ उसे लेकर चीन अब क्यों आंख दिखा रहा है और क्यों एक्सपर्ट चीनी ड्रैगन की इस हरकत के पीछे मोदी सरकार की जम्मू कश्मीर पर आक्रामक नीति को जिम्मेदार बता रहे हैं जिसके बाद पाकिस्तान की तरह चीन भी असुरक्षित हो गया है.



चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत को धमकाते हुए लिखा गलवान घाटी डोकलाम नहीं है. ये अक्साई चिन का हिस्सा है, जो शिनजियांग प्रांत में आता है. चीन की सेना के पास एडवांस इंफ्रास्ट्रक्चर की एडवांटेज है. इसीलिए अगर भारत ने कोई भी गलती की तो उसे बहुत भारी कीमत चुकानी होगी. चीनी अखबार ने जिस अक्साई चिन का जिक्र करते हुए भारत पर एडवांटेज होने का दावा किया है, वो कभी भारत का हिस्सा था लेकिन चीन ने इस पर कब्जा कर लिया. जैसे पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के पीओके, गिलगित-बाल्टिस्तान को हमसे हड़प लिया है बिलकुल उसी तरह अक्साई चिन भी उसके कब्जे में चला गया है. जिस जगह पर आज चीन के सैनिक तंबू गाड़कर बैठे हैं, उस जमीन पर कभी भारत का कब्जा था लेकिन चीन ने उसे हड़प लिया और आज वो उसी के बलबूते भारत को आंख दिखा रहा है.


सवाल है कि अक्साई चिन पर चीन ने कैसे कब्जा किया? इस दौरान भारत क्या कर रहा था? भारत ने इसे वापस पाने के लिए क्या किया और क्या इसे दोबारा हासिल किया जा सकता है? अक्साई चिन को वापस पाने का फॉर्मूला क्या है ये समझें उससे पहले हमने अक्साई चिन को कैसे खो दिया, इसकी कहानी जान लेना बहुत जरूरी है. जो तिब्बत के पठार का दक्षिण पश्चिम हिस्सा है, यहां बंजर और निर्जन मैदान हैं जिसे चीन अपने मुस्लिम बहुल राज्य शिजियांग का हिस्सा बताता है, लेकिन सच ये नहीं है.



1865 में भारत चीन सीमा का विलियम जॉन्सन ने सर्वे किया और जॉनसन लाइन के हिसाब से बताया कि अक्साई चिन जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है. 1899 में एक ब्रिटिश सर्वेयर ने अक्साई चिन को मैकार्ने मैकडोनल्ड लाइन के हिसाब से अक्साई चिन को चीन का हिस्सा बताया. इसके 50 साल बाद चीन ने अक्साई चिन पर कब्जे का पहला कदम रखा और यहां 1951 में सड़क बनानी शुरू कर दी. इस सड़क के जरिए चीन का शिनजियांग प्रांत तिब्बत से जुड़ गया. चीन की इस कार्रवाई पर भारत ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और इस तरह 1957 में चीन ने 179 किलो मीटर लंबी सड़क बनाकर अपने इरादे जाहिर कर दिए. इसके बाद 1962 की जंग हुई और भारत का अक्साई चिन चीन के पास चला गया.


बहुत से जानकार मानते हैं कि मौजूदा सरकार के सुस्त रवैये के कारण चीन इतनी आसानी से अक्साई चिन को निगलने में कामयाब हो गया, जबकि ये जगह सामरिक लिहाज से बहुत अहम थी. अक्साई चिन सेंट्रल एशिया की सबसे ऊंची जगह है, जिस वजह चीन पर इसकी नजर थी. अक्साई चिन चीन के दो अहम राज्यों शिनजियांग और तिब्बत को जोड़ता है. इस पर कब्जा होने से चीन बरसों से भारत पर एक एडवांटेज रखता है. इसको इस तरह समझिए जैसे डोकलाम विवाद में भारतीय सेना चीन के सेना के मुकाबले ऊंचाई पर बैठी थी जिससे चीन की सेना पर हमला करना आसान था. वैसे ही अक्साई चिन पर कब्जा होने से चीन को ये बढ़त हासिल है. यही वजह है कि इसे चीन के हाथों खोने के इतने साल बाद भी इसे लेकर सियासी घमासान थमने का नाम ही नहीं लेता. 1962 में जब चीन से जंग हुई तो उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी, जवाहर लाल नेहरू तब प्रधानमंत्री थे, ऐसे में कांग्रेस हमेशा इस मुद्दे को लेकर कटघरे में रहती है. ये तथ्य है कि कांग्रेस के ही राज्य में 1948 में भारत ने जम्मू कश्मीर का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के हाथों गंवा दिया. 1962 की जंग के बाद चीन ने लद्दाख का 37555 स्क्वायर किलो मीटर एरिया कब्जा कर लिया जिसे हम अक्साई चिन कहते हैं और 1963 में पाकिस्तान ने गिलगित बाल्टिस्तान का एक हिस्सा चीन को दिया. जिसे हम शक्सगाम वैली के नाम से जानते हैं. इस तरह कांग्रेस की सरकार के वक्त जम्मू कश्मीर का नक्शा तीन बार बदला और हर बार भारत के हिस्से पर कब्जा हुआ.



अक्साई चिन पर सवालों में घिरने वाली कांग्रेस का मोदी सरकार से एक सवाल है और वो ये कि जिस तरह से मोदी सरकार पाकिस्तान से पीओके-गिलगित-बाल्टिस्तान मांगती है, उसी तरीके से वो चीन से अक्साई चिन वापस लेने की मांग क्यों नहीं करती. कांग्रेस ये आरोप इसलिए लगाती है क्योंकि सरकार के मंत्री और बीजेपी नेता पाकिस्तान पर तो खुलकर बोलते हैं लेकिन जहां बात चीन की आती है तो वो बात नहीं रहती. हांलाकि गृह मंत्री ने संसद में इसे वापस लेने की मांग जरूर की है. अब सवाल ये है कि क्या भारत अक्साई चिन को दोबारा हासिल कर सकता है ? ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि अक्साई चिन, चीन के लिए बहुत अहम है. तभी उसने 1962 की जंग में सिर्फ इस पर कब्जा किया. पूरी कहानी अगली रिपोर्ट में देखिए. 1962 में चीन अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन में घुस गया था और जंग खत्म होने पर वो अरुणाचल से तो चला गया लेकिन अक्साई चिन से वो नहीं हटा. इसकी एक वजह ये है कि अरुणाचल प्रदेश के मुकाबले अक्साई चिन दिल्ली के ज्यादा करीब है और इसके जरिए चीन जम्मू कश्मीर में भी भारत पर दबाव बनाए रख सकता है.



यही कारण है कि चीन अक्साई चिन को किसी भी कीमत पर हाथ से नहीं जाने देगा लेकिन जिस तरह से हाल के सालों में भारतीय सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास सड़क और पुल बनाए हैं उसने चीन को परेशान कर दिया है. यही वजह है कि लद्दाख में भले ही 3-4 प्लैश प्वाइंट पर हालत गंभीर हो लेकिन हालात भारतीय सेना के नियंत्रण में हैं. सूत्रों ने बताया है कि फिलहाल एलएसी पर शांति बनी हुई है, गलवान घाटी में चीनी सैनिक अपने कैंप में ही हैं. दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स हॉट-लाइन पर बात करने के अलावा बैठक भी कर रहे हैं लेकिन बातचीत भारत की मांग की वजह से अटक गई है. भारत चाहता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जहां-जहां दोनों देशों की सेनाओं की तैनाती है. उसे ही एलएसी मान लिया जाए लेकिन चीन इसे मानने के लिए तैयार नहीं है. चीन चाहता है कि भारत बॉर्डर-एरिया में सभी सड़क और दूसरे आधारभूत ढांचों का निर्माण-कार्य बंद कर दे लेकिन भारत इसके लिए तैयार नहीं है. जिस तरह से भारत ने चीन की सीमा के पास बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है, उसने चीनी ड्रैगन को डरा दिया है. क्योंकि चीन को लगता था कि टकराव की स्थिति में वो आसानी से भारत को दबा देगा लेकिन हालात बदलने से चीन की सेना टेंशन में है.



चीन को सबसे ज्यादा डर पाकिस्तान को लेकर भारत की आक्रामकता से लग रहा है, जिस तरह से भारत की तरफ से पीओके, गिलगित बाल्टिस्तान वापस लेने की मांग जोर पकड़ रही है, चीन को सीपैक के जरिए पाकिस्तान में किया गया अपना निवेश फंसता दिख रहा है. 23 दिसंबर 2019 को नीलम वैली में जब भारतीय सेना ने धावा बोला तो इसकी धमक बीजिंग तक सुनाई दी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जिस नीलम वैली में भारतीय सेना ने शोले बरसाए तो वहां डैम बना रहे चीनी मूल के इंजीनियर भाग खड़े हुए. उन्हें इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि भारत ऐसी कार्रवाई भी कर सकता है. इसके बाद चीन की सरकार को पहली बार एहसास हुआ कि भारत की बढ़ती आक्रामकता सीपेक के उसके सपने को खत्म कर सकती है.



एक्सपर्ट मानते हैं कि कोरोना के बाद पाकिस्तान चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आने वाले सालों में दक्षिण चीन सागर में वो घिरता है तो सीपेक के जरिए ही पाकिस्तान के ग्वादर से हिंद महासागर तक पहुंच पाएगा. इसीलिए पूरी संभावना है कि पाकिस्तान पर भारत का दबाव कम करने के लिए ही चीन अचानक सीमा पर सक्रिय हो गया है, उसे पाकिस्तान की भी चिंता है और अपनी भी. लेकिन यहां बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत अक्साई चिन को वापस ले सकता है. भारत की रणनीति हमेशा डिफेंसिव यानी सुरक्षात्मक रही है लेकिन जंग अगर दूसरे के घर में घुसकर लड़ी जाए तभी बेहतर होता है, इसी रणनीति के तहत भारतीय सेना ने अपने तेवर बदल दिए हैं.