India-China War: भारतीय सेना ने अपने 114 जवानों और अधिकारियों को याद किया, जिन्होंने साठ साल पहले लद्दाख की बर्फीली ऊंचाइयों पर देश के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया था. 18 नवंबर 1962 को, मेजर शैतान सिंह ने 113 अन्य जवानों और 13 कुमाऊं रेजिमेंट के अधिकारियों के साथ चीनी सेना के खिलाफ अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए ठंडे रेगिस्तान में लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.


इस दिन को भारतीय सेना द्वारा "रेजांग ला दिवस" के रूप में मनाया जाता है. चुशूल गांव में इन शहीदों की याद में युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया है. 1962 के भारत-चीन युद्ध की 60वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, चुशोल रेजांग ला युद्ध स्मारक में एक स्मारक सेवा आयोजित की गई थी. इस अवसर पर रक्षा सचिव गिरिधर अरमाने ने 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की.


इस अवसर पर गिरिधर अरमाने ने कहा, "राष्ट्र हमेशा मेजर शैतान सिंह और चार्ली कंपनी के अन्य जवानों का आभारी रहेगा, जिन्होंने आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक चुशुल घाटी की रक्षा की."


रेजांग ला युद्ध की यादें ताजा हो गईं


बता दें कि पूर्वी लद्दाख में 1962 में रेज़ांग ला की लड़ाई, भारत के उल्लेखनीय सैन्य अभियानों में से एक थी. रेजांग ला की लड़ाई आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा देने वाली रहेगी. देश की रक्षा करने वाली यूनिट की कमान 13 कुमाऊं रेजीमेंट के 113 जवानों के साथ मेजर शैतान सिंह ने संभाली थी. रेजांग ला की लड़ाई में भारतीय सेना की 13 कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी के सैनिकों ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था.


60 साल पहले 18 नवंबर की सुबह, जब भारी तोपखाने के समर्थन से पांच हजार से अधिक चीनी सैनिकों ने चुशुल के हवाई क्षेत्र की रक्षा करते हुए चार्ली कंपनी पर हमला किया, तो भयंकर लड़ाई छिड़ गई, जिसमें चुशुल की रक्षा करते हुए भारत के वीर सपूतों ने अपनी जान न्योछावर कर दिए.


13 कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी के 120 बहादुर सैनिकों ने कमांडिंग ऑफिसर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को सबसे बड़ा झटका दिया था और लड़ाई में हजारों चीनी सैनिकों को मार गिराया था. इस युद्ध में सी कंपनी के 114 जवान लड़ते हुए शहीद हो गए. पांच घायलों को कैदियों के रूप में ले जाया गया, हालांकि वे सभी भाग निकले थे.


तीन महीने बाद, चार्ली कंपनी के सैनिकों के शव लड़ाई की मुद्रा में ही बरामद किए गए थे. कुछ खाइयों से दूर पाए गए, हाथ से हाथ की लड़ाई में गोली और संगीन के घाव के साथ. सेना की मदद करने वाले स्थानीय कुली के रूप में युद्ध में भाग लेने वाले 72 वर्षीय सोनम रिंगज़िन ने कहा कि युद्ध के दौरान सभी ग्रामीणों ने सेना की मदद की. लेकिन, यह एक असमान लड़ाई थी क्योंकि आजादी के 15 साल बाद भारतीय सेना अच्छी तरह से सुसज्जित नहीं थी, उसके पास न तो सर्दियों के कपड़े थे और न ही बेहतर हथियार थे, जिससे विशाल चीनी सेना के साथ लड़ा जा सके. 


आज भारतीय सेना सबको जवाब दे सकती है


सोनम ने स्मारक पर समारोह में भाग लेने के दौरान कहा, "लेकिन आज सेना अच्छी तरह से तैयार है, उसके पास इन कठिन क्षेत्रों में वह सब कुछ है जिसकी उसे जरूरत है. अगर भारतीय सेना इन जमीनों की रक्षा अपने हाथों से कर सकती है, तो हम अब मजबूत हैं."


रेज़ांग ला की लड़ाई की 60वीं वर्षगांठ पर, फायर एंड फ्यूरी कॉर्प्स के वरिष्ठ सेना अधिकारी चुशुल के पास रेजांगला युद्ध स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे. पुनर्निर्मित युद्ध स्मारक में कार्यक्रमों की श्रृंखला आयोजित की जा रही है, जिसका उद्घाटन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले साल किया था.


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