CJI Lalit Retires: EWS, गुजरात दंगे और अयोध्या सहित कई अहम फैसलों का हिस्सा रहे सीजेआई यूयू ललित, ऐसा रहा 74 दिन का कार्यकाल
CJI Retires: चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित 2014 में सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए थे. उन्होंने 27 अगस्त, 2022 को 49वें सीजेआई के रूप में शपथ ली थी.

India CJI UU Lalit Retires: भारत के चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित (CJI UU Lalit) ने 74 दिन के अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण फैसले दिए और कार्यवाही के सीधे प्रसारण और मामलों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में बदलाव जैसे कदमों की शुरुआत की.
वह न्यायपालिका के ऐसे दूसरे प्रमुख रहे जिन्हें बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट की बेंच में पदोन्नत किया गया. नौ नवंबर, 1957 को जन्मे जस्टिस ललित को 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस नियुक्त किया गया था और उन्होंने 27 अगस्त, 2022 को 49वें CJI के रूप में शपथ ली थी. मंगलवार (8 नवंबर) उनके कार्यकाल का अंतिम दिन रहा. न्यायमूर्ति ललित से पहले जस्टिस एसएम सीकरी मार्च 1964 में सुप्रीम कोर्ट की बेंच में सीधे पदोन्नत होने वाले पहले वकील थे. वह जनवरी 1971 में 13वें सीजेआई बने थे. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं.
यह है महत्वपूर्ण फैसले
सीजेआई उदय उमेश ललित ने कार्यकाल के अंतिम दिन उनके नेतृत्व वाली संविधान बेंच ने 3 : 2 के बहुमत से, सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर तबके (EWS) से संबंधित लोगों को एडमिशन और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाले 103वें संविधान संशोधन की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है.
न्यायमूर्ति ललित ने जस्टिस एस रवींद्र भट के दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की, जिन्होंने सामान्य वर्ग के लिए ईडब्ल्यूएस कोटा को 'असंवैधानिक' माना है. संवैधानिक महत्व के मामलों में महत्वपूर्ण कार्यवाही के सीधे प्रसारण या वेबकास्ट पर ऐतिहासिक फैसले की चौथी वर्षगांठ पर, जस्टिस ललित ने 27 सितंबर से संविधान बेंच के मामलों का सीधा प्रसारण शुरू करने का आदेश दिया.
सीजेआई की अगुवाई वाली बेंच ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक को फांसी की सजा पर मुहर लगाई और साल 2000 में लालकिले पर हुए हमले के मामले में मौत की सजा देने के फैसले की समीक्षा करने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया. इस हमले में सेना के तीन जवान शहीद हो गए थे.
यह रह गया अधूरा
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के चार रिक्त पदों को भरने का न्यायमूर्ति ललित का प्रयास अधूरा रह गया क्योंकि उनके उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एसए नज़ीर ने पांच सदस्यीय कॉलेजियम के नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश के प्रस्ताव पर लिखित सहमति मांगने की प्रक्रिया पर आपत्ति जताई.
चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने, हालांकि, विभिन्न सुप्रीम कोर्ट में लगभग 20 न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश की और इसके अलावा बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में नामित करने की सिफारिश भी की. कॉलेजियम ने कुछ अन्य मुख्य न्यायाधीशों और न्यायाधीशों को स्थानांतरित करने के अलावा, कुछ उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की भी सिफारिश की. सुप्रीम कोर्ट में वर्तमान में 34 स्वीकृत पदों की तुलना में 28 न्यायाधीश हैं.
गुजरात दंगे पर दिया फैसला
फैसलों के मोर्चे पर सीजेआई उदय उमेश ललित की अगुवाई वाली बेंच ने 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में 'निर्दोष लोगों' को फंसाने के लिए कथित सबूत गढ़ने के आरोप में गिरफ्तार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के साथ ही केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को भी जमानत दे दी. कप्पन को अक्टूबर 2020 में तब गिरफ्तार किया गया था जब वह हाथरस में गैंगरेप के बाद एक दलित लड़की की मौत की घटना को कवर करने जा रहे थे.
मौत की सजा को लेकर क्या होगा?
जस्टिस ललित के नेतृत्व वाली बेंच ने मौत की सजा के प्रावधान वाले मामलों में दिशा-निर्देश जारी करने की मांग वाली एक याचिका को पांच जजों की संविधान बेंच के पास भेज दिया, जिसे यह तय करना है कि मौत की सजा के प्रावधान वाले मामलों में अपराध की गंभीरता कम करने वाली संभावित परिस्थितियों पर कब और कैसे विचार किए जा सकता है?
विजय माल्या को लेकर दिया यह फैसला
सीजेआई यूयू ललित के नेतृत्व वाली पीठों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन न करने पर बहुत कड़ा संज्ञान लिया और भगोड़े व्यवसायी विजय माल्या को चार महीने कैद की सजा सुनाई, जो 9,000 करोड़ रुपये से अधिक के बैंक ऋण डिफाल्ट मामले में आरोपी है. बेंच ने फोर्टिस हेल्थकेयर लिमिटेड के पूर्व प्रवर्तकों मलविंदर सिंह और शिविंदर सिंह को मध्यस्थता निर्णय का सम्मान करने के लिए 1170.95 करोड़ रुपये का भुगतान न करने पर अवमानना दोषी ठहराया और उन्हें छह महीने की जेल की सजा सुनाई.
जस्टिस ललित की अगुवाई वाली बेंच ने भारतीय मूल के एक केन्याई नागरिक को उसकी अलग हुई पत्नी से बेटे की कस्टडी हासिल करने में धोखाधड़ी और आपराधिक अवमानना के मामले में एक साल की सजा सुनाई और 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.
किन अहम फैसलों का हिस्सा रहे
जस्टिस ललित को 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था. तब वह वरिष्ठ वकील थे. वह मुसलमानों में ‘तीन तलाक’ की प्रथा को अवैध ठहराने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे. पांच जजों की संविधान पीठ ने अगस्त 2017 में 3 : 2 के बहुमत से ‘तीन तलाक’ को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इन तीन न्यायाधीशों में न्यायमूर्ति ललित भी थे.
क्यों अयोध्या मामले से हुए थे अलग?
सीजेआई उदय उमेश ललित ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में सुनवाई से खुद को जनवरी 2019 में अलग कर लिया था. मामले में एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने संविधान पीठ को बताया था कि न्यायमूर्ति ललित यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के वकील के रूप में एक संबंधित मामले में वर्ष 1997 में पेश हुए थे.
न्यायमूर्ति ललित की अगुवाई वाली पीठ ने एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि त्रावणकोर के पूर्व राजपरिवार के पास केरल में ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन का अधिकार है. उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO ) कानून के तहत एक मामले में बंबई उच्च न्यायालय के ‘‘त्वचा से त्वचा के संपर्क’’ संबंधी विवादित फैसले को खारिज कर दिया था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि यौन हमले का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन मंशा है, त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं.
न्यायमूर्ति ललित जून, 1983 में वकील बने और उन्होंने दिसंबर 1985 तक बंबई उच्च न्यायालय में वकालत की. वह जनवरी 1986 में दिल्ली आकर वकालत करने लगे और अप्रैल 2004 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया. उन्हें 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में सुनवाई के लिए CBI का स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया गया था.
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