Crackdown on Separatists: भारत सरकार ने आतंकी समूहों और उनके वित्तपोषण के खिलाफ सफलतापूर्वक कार्रवाई करने के बाद अब अलगाववादी विचारधारा वाले राजनीतिक संगठनों को खत्म करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं. कश्मीर घाटी में ऐसे संगठनों के खिलाफ लगातार छापेमारी और कार्रवाई की जा रही है.


जम्मू-कश्मीर में भारत विरोधी और अलगाववादी दलों पर नए सिरे से की जा रही कार्रवाई के बीच चार संगठनों ने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से खुद को अलग करने की घोषणा की है. इनमें नया नाम जम्मू-कश्मीर तहरीक-ए-इस्तिकलाल पार्टी का है, जिसके अध्यक्ष गुलाम नबी सोफी हैं. इससे पहले जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल मूवमेंट (डीपीएम), जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट और जम्मू-कश्मीर तहरीक-ए-इस्तिकामत ने भी हुर्रियत और उसकी विचारधारा को छोड़ने का ऐलान किया था.


गुलाम नबी सोफी का भारत के प्रति समर्थन


गुलाम नबी सोफी ने अपने संगठन को ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (जी) और (एम) से अलग करने का ऐलान करते हुए कहा कि वह भारत की शांति और एकता के लिए काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. उन्होंने कहा 'मैं भारत का सच्चा और प्रतिबद्ध नागरिक हूं और भारतीय संविधान में पूर्ण विश्वास रखता हूं. न तो मैं अतीत में भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल था और न ही भविष्य में ऐसा कोई इरादा है..


सोफी ने हुर्रियत के दोनों गुटों पर साधा निशाना


सोफी ने प्रेस बयान में मीरवाइज उमर फारूक और दिवंगत सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाले हुर्रियत के दोनों गुटों की आलोचना करते हुए कहा कि वे अपने वादे निभाने में पूरी तरह विफल रहे हैं. उन्होंने कहा 'हमने तमाम मुश्किलों के बावजूद संघर्ष जारी रखा, लेकिन न तो एपीएचसी (जी) और न ही (एम) जनता की उम्मीदों पर खरे उतरे. वे आम लोगों की आकांक्षाओं और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करने में हर कदम पर असफल रहे.'


सोफी ने अलगाववादी विचारधारा से तोड़े संबंध


सोफी ने आगे कहा कि उन्होंने बहुत पहले ही अलगाववादी विचारधारा से अपने संबंध तोड़ लिए थे और अब वह आधिकारिक रूप से इसकी निंदा करते है. उन्होंने ये भी घोषणा की कि अब से उनका या उनके संगठन का नाम हुर्रियत के किसी भी धड़े से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. सरकार की सख्त नीति के तहत अब ये देखा जाना बाकी है कि बाकी अलगाववादी संगठनों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है.