नयी दिल्ली: भारत ने गुरुवार को सात रोहिंग्या प्रवासियों को म्यांमार वापस भेज दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें म्यांमार वापस न भेजा जाए की मांग को खारिज कर दिया था. इसके तुरंत बाद ही सातों प्रवासियों को वापस म्यांमार भेज दिया गया. ये रोहिंग्या प्रवासी करीब छह सालों पहले भारत में अवैध रूप से घुसे थे और उन्हें जेल भेज दिया गया था. इस कदम की मानवाधिकार समूहों ने आलोचना की.


एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारत सरकार पर गंभीर आरोप
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने आरोप लगाया कि भारत सरकार रोहिंग्या प्रवासियों के खिलाफ 'लगातार बदनाम' करने का अभियान चला रही है और यह देश में शरण चाहने वालों के लिए एक 'खतरनाक' मिसाल बन रही है. 26 से 32 साल की आयु वर्ग वाले इन पुरुषों को 2012 में पकड़ा गया था. उन्हें बाद में असम के सिलचर स्थित कछार केंद्रीय जेल में डाल दिया गया था. इससे पहले एक अदालत ने उन्हें विदेशी नागरिक अधिनियम के तहत दोषी ठहराया था.


रोहिंग्या प्रवासियों को वापस भेजे जाने से पहले असम और म्यांमार के सुरक्षा अधिकारियों ने मणिपुर में मोरेह सीमा चौकी पर दस्तावेजों का आदान प्रदान किया. असम के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (सीमा) भास्कर जे. महंत ने बताया कि म्यांमार के सात नागरिकों को वापस भेज दिया गया. इन प्रवासियों को मणिपुर में मोरेह सीमा चौकी पर म्यामांर अधिकारियों को सौंपा गया.


जे महंत ने कहा कि म्यांमार के राजनयिकों को दूतावास की पहुंच प्रदान की गई थी जिन्होंने प्रवासियों की पहचान की पुष्टि की. केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि अवैध प्रवासियों की म्यांमार की नागरिकता की पुष्टि पड़ोसी देश की सरकार द्वारा रखाइन प्रांत में उनके पते के सत्यापन के बाद हुई और इन सभी को म्यांमार की सरकार ने यात्रा दस्तावेज प्रदान किये. अधिकारी ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि रोहिंग्या प्रवासियों को भारत से वापस भेजा गया है.


सुप्रीम कोर्ट का हस्ताक्षेप से इनकार
विदेश मंत्रालय ने कहा कि इन सात रोहिंग्या प्रवासियों की म्यांमार वापसी उनके वापस जाने की इच्छा की पुष्टि करने और म्यांमार सरकार की पूर्ण सहमति से किया गया है. इससे पहले दिन में सुप्रीम कोर्ट ने सात रोहिंग्याओं को म्यामांर भेजने के सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. न्यायालय ने इस संबंध में दायर एक अर्जी खारिज कर दी.


न्यायालय ने सात रोहिंग्या प्रवासियों को वापस भेजने की इजाजत देते हुए कहा कि सक्षम अदालत ने उन्हें अवैध प्रवासी पाया. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की पीठ ने सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुये कहा कि उनके देश म्यांमार ने उन्हें अपने देश के मूल नागरिक के रूप में स्वीकार कर लिया है.


पीठ ने कहा कि अनुरोध पर विचार करने के बाद हम इस संबंध में किये गये फैसले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते. याचिका खारिज की जाती है. पीठ ने सातों रोहिंग्या में से एक द्वारा दायर एक अर्जी खारिज कर दी जिसने असम के सिलचर में हिरासत केंद्र में बंद सातों रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेजने से केंद्र के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी.


इन्हें वापस भेजा गया
जिन रोहिंग्या प्रवासियों को वापस भेजा गया उनमें मोहम्मद जमाल, मोहबुल खान, जमाल हुसैन, मोहम्मद यूनुस, सबीर अहमद, रहीम उद्दीन और मोहम्मद सलाम शामिल हैं और इनकी आयु 26 से 32 वर्ष के बीच है. शीर्ष अदालत ने रोहिंग्या के मामले पर सबसे पहले सुनवाई की क्योंकि याचिकाकर्ता जफरूल्लाह के वकील प्रशांत भूषण ने पीठ को सूचित किया कि सात रोहिंग्याओं को वापस भेजने के लिये भारत-म्यांमार सीमा पर लेकर जाया जा रहा है.


सुनवायी के दौरान अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी कहा कि ये सात रोहिंग्या गैरकानूनी तरीके से 2012 में भारत में आये थे और उन्हें विदेशी नागरिक कानून के तहत दोषी ठहराया गया था. उन्होंने कहा कि दोषी ठहराये जाने के बाद उन्हें एक हिरासत केंद्र भेज दिया गया और विदेश मंत्रालय ने इन सात रोहिंग्या की पहचान के लिये म्यांमार दूतावास से संपर्क किया था. उन्होंने कहा कि इनकी पुष्टिकरण प्रक्रिया के बाद म्यांमार सरकार ने इन रोहिंग्याओं को वापस भेजने की सुविधा प्रदान करने के लिये उनकी पहचान का प्रमाणपत्र और एक महीने का वीजा भी दिया है.


एमनेस्टी इंडिया के कार्यकारी निदेशक ए. पटेल ने कहा कि वापस भेजे गए रोहिंग्या म्यांमार सरकार द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर खतरों का सामना कर रहे हैं और यह भारत में मानवाधिकारों के लिए काला दिन है. यह फैसला मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का सामना करने वालों को शरण देने की समृद्ध भारतीय परंपरा को नजरअंदाज करता है. भारत सरकार ने गत वर्ष संसद में बताया था कि भारत में 14000 से अधिक रोहिंग्या रह रहे हैं जो कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी यूएनएचसीआर से पंजीकृत हैं. वहीं सहायता एजेंसियों का अनुमान है कि देश में करीब 40000 रोहिंग्या हैं.


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