एलएसी पर भारत ने इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में चीन की बराबरी कर ली है. अब लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (एलएसी) पर सड़क, पुल और टनल निर्माण में भारत और चीन में कोई खास अंतर नहीं है. ये दावा एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) के डीजी लेफ्टिनेंट जनरल राजीव चौधरी ने किया है.


राजधानी दिल्ली में चीन सीमा से सटी सेला टनल के मुख्य-ब्लॉस्ट की ई-सेरेमनी के दौरान बीआरओ के डीजी  ने कहा कि लद्दाख हो या सिक्किम, उत्तराखंड या फिर अरुणाचल प्रदेश, सभी जगह बॉर्डर निर्माण का कार्य तेजी से चल रहा है. एबीपी न्यूज़ से बातचीत में राजीव चौधरी ने कहा कि पिछले कुछ समय में बीआरओ का बजट लगभग दोगुना हो गया है. जल्द ही बीआरओ का बजट 10-11 हजार करोड़ हो जाएगा (अभी 8763 करोड़ है).


बीआरओ के महानिदेशक के मुताबिक, सेला टनल बनने से अरुणाचल प्रदेश से सटी चीन सीमा तक भारतीय सेना की मूवमेंट तो तेज होगी ही. साथ ही स्थानीय लोगों को भी आवाजाही में काफी मदद मिलेगी, जिससे राज्य की आर्थिक-समाजिक स्थिति भी बेहतर हो पायेगी.


इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ई-सेरेमनी के जरिए सेला टनल का मुख्य ब्लास्ट किया. माना जा रहा है कि अगले साल तक ये सुरंग बनकर तैयार हो जाएगी. राजनाथ सिंह ने मुख्य ब्लास्ट ऐसे समय में किया है जब चीन ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की हाल की अरूणाचल प्रदेश के दौरे पर आपत्ति जताई थी.


बीआरओ के प्रोजेक्ट वर्तक के तहत अरूणाचल प्रदेश के बलीपुर-चारदूर-तवांग रोड को जोड़ने वाली सेना टनल करीब डेढ़ किलोमीटर (1555 मीटर) लंबी है. इस टनल की एस्केप-ट्यूब करीब 980 मीटर लंबी है. फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऑल-वेदर टनल की आधारशिला रखी थी. टनल का पहला ब्लास्ट अप्रैल 2019 में किया गया था.


रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, सेला टनल को न्यू आस्ट्रियन टनलिंग तकनीक से तैयार किया जा रहा है. इसके तहत सुरंग को स्नो-लाइन से काफी नीचे बनाया जा रहा है ताकि सर्दियों के मौसम में बर्फ हटाने की जरूरत ना पड़े. रक्षा मंत्रालय का दावा है कि 13 हजार फीट की उंचाई पर ये टनल बनने के बाद दुनिया की सबसे लंबी सुरंग बन जाएगी.


सेला टनल के बनने से असम के तेजपुर से चीन सीमा से लगे तवांग तक पहुंचने में काफी तेजी आएगी. क्योंकि फिलहाल सेला-पास (दर्रे) पर गाड़ियों की स्पीड काफी कम हो जाती है. सुरंग निर्माण पूरा होने पर अरुणाचल प्रदेश सहित पूरे उत्तर-पूर्व राज्य क्षेत्र का विकास तेजी से होगा. इसके अलावा प्राकृतिक आपदा य़ा फिर किसी विषम परिस्थिति में सैनिकों के रेस्कयू ऑपरेशन में भी काफी तेजी आएगी. जानकारी के मुताबिक, टनल के बनने से एलएसी पर तैनात सैनिकों की मूवमेंट भी काफी तेजी से की जा सकती है.


बता दें कि कुछ समय पहले ही गृह मंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम में देश की सीमा-नीति पर विस्तार-पूर्वक जानकारी दी थी. गृह मंत्री के मुताबिक, पिछले छह सालों में यानि 2014-20 के बीच देश की सीमाओं पर छह सुरंगों का सफलतापूर्वक निर्माण किया गया, जबकि नौ टनल्स का निर्माण-कार्य जारी है.


वर्ष 2008-2014 के बीच बॉर्डर पर करीब 3600 किलोमीटर का सड़क निर्माण-कार्य किया गया, जबकि वर्ष 2014-20 के बीच 4764 किलोमीटर का निर्माण हुआ. सीमावर्ती सड़कों का बजट भी इस अवधि में 23 हजार करोड़ से बढ़कर 47 हजार करोड़ हो गया. वर्ष 2008-14 के बीच करीब 7000 मीटर पुलों का निर्माण हुआ था जबकि पिछले छह सालों में ये निर्माण दोगुना यानि 14000 मीटर हो गया.  यहां तक कि 2008-14 में सीमा पर केवल एक सुरंग का निर्माण हुआ था, जबकि 2014-20 के बीच छह सुरंगों का निर्माण किया गया.


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