चर्चा में है इंफाल का सदियों पुराना इमा कैथल बाजार, एस जयशंकर ने कहा- नारीशक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण
मणिपुर का इमा कैथल बाजार हौसलों और हिम्मतों का बाजार है. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी इस बाजार के अनूठेपन के कायल हुए बगैर नहीं रह सके. उनके यहां दौरे ने इसे फिर से चर्चाओं में ला दिया है.
जुल्म के खिलाफ हम बार उठ खड़ी होंगी एक सैलाब बनकर और बह जाएगा हर वो गुरूर जो कुचल देने की फितरत रखता है कि उठ खड़ी होंगी हम एक खूबसूरत सी मिसाल बनकर... और मणिपुर के इमा कैथल बाजार पर ये पंक्तियां सटीक बैठती है. तभी तो यहां के दौरे के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर खुद को ये कहने से नहीं रोक पाए कि ये बाजार नारी शक्ति की सबसे बेहतरीन मिसाल पेश करता है. रविवार 27 नवंबर को विदेश मंत्री के इस बाजार की तस्वीरें ट्वीट करते ही एक बार ये बाजार फिर से चर्चाओं में है.
इसके साथ ही याद आ रहा इसका वो इतिहास जो बताता है कि हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष ही जीतता आया है. और इमा बाजार की महिलाओं ने इसे साबित कर दिखाया है. बिगड़े हालातों में भी हिम्मत और हौसले से जंग कैसे जीती जाती है इमा बाजार इसकी शानदार बानगी है. यही वजह है जो इसे दुनिया के बाजारों में खास बनाती है. इतना कि हर कोई इसका कायल हो जाता है फिर चाहे वो देश-विदेशों में घूमे विदेश मंत्री जयशंकर ही क्यों न हों?
Visited the legendary Ima market in Imphal. A great example of Nari Shakti powering economic growth. pic.twitter.com/v2CXDauAUn
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) November 27, 2022
नारी शक्ति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर 26 से 28 नवंबर तक देश के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के दौरे पर हैं. इस दौरान 27 नवंबर को उन्होंने इस सूबे की राजधानी इंफाल का दौरा किया. ये दौरा उनके ट्वीट से खास बन गया. खास इसलिए कि केंद्रीय मंत्री यहां की एक खास बाजार इमा कैथल के दौरे पर पहुंचे थे. यहां जाकर इस बाजार से वो इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने रविवार को अपने ट्विटर हैंडल से इस बाजार में घूमने और लोगों से मिलने की कई तस्वीरें और वीडियो ट्विटर पर पोस्ट किए.
तस्वीरें ही ये जाहिर करने के लिए काफी हैं कि ये बाजार खास होने के साथ ही बेहद खूबसूरत भी है. उन्होंने ट्वीट किया, "इंफाल के मशहूर इमा बाजार का दौरा किया. आर्थिक विकास को मजबूती देने वाली नारी शक्ति का एक बेहतरीन उदाहरण." आखिर क्या खासियत है इस बाजार की कि दुनिया में इसे एशिया के सबसे बड़े बाजार के तौर पर जाना जाता है. इसके लिए हमें 500 साल पीछे जाना पड़ेगा.
कैसे अस्तित्व में आया इमा कैथल
इमा कैथल मामूली बाजार नहीं है और हो भी नहीं सकता, क्योंकि जिस बाजार की शुरुआत मुखालफत से हुई हो उसकी शुरुआत आसान तो कतई नहीं हो सकती. इसके खास होने की कई वजहें हैं. दरअसल आज से 500 साल पहले 16 वीं शताब्दी में ही इमा बाजार की नींव पड़ गई थी. इस दौर में मणिपुर में लुल्लुप-काबा का चलन था. ये जबरन बंधुआ मजदूरी को बढ़ावा देने वाली एक प्रथा थी. ये एक ऐसा सिस्टम था जिसमें जबरदस्ती लोगों से काम करवाया जाता था.
इसमें मेइती पुरुषों को कुछ वक्त तक के लिए सेना और अन्य नागरिक परियोजनाओं में काम करना पड़ता था. इसके लिए उन्हें उनके घर से दूर भेज दिया जाता था. पुरुषों के घर से दूर रहने की वजह से सभी जिम्मेदारियां मेइती औरतों के कंधों पर आ गई. धान की खेती और उपज की बिक्री के लिए पीछे छूट गई इन महिलाओं ने हार नहीं मानी. इस जबरन मजदूरी की प्रथा से उन्होंने न तो अपने मर्दों को कमजोर पड़ने दिया और न खुद हिम्मत हारी.
यहीं से इमा कैथल अस्तित्व में आया. इस बाजार से उस दौर में महिलाओं ने खुद को आत्मनिर्भर ही नहीं बनाया बल्कि अपने परिवार और समाज को भी सशक्त किया. उन्होंने अपने दम पर प्रबंधन का हुनर सीखा और एक शानदार बाजार प्रणाली बना डाली, जो आज एशिया के सबसे बड़े महिलाओं के बाजार का रूप ले चुकी है.
'स्टेटिस्टिकल अकाउंट ऑफ द नेटिव स्टेट ऑफ मणिपुर, एंड द हिल टेरिटरी अंडर इट्स रूल' (1870) के लेखक आर ब्राउन के मुताबिक, "लल्लुप की सामान्य कार्य प्रणाली इस धारणा पर आधारित रही थी कि 17 से लेकर 60 साल की उम्र के हर पुरुष को हर साल निश्चित दिनों के लिए बगैर पारिश्रमिक के सेना और नागरिक परियोजनाओं में काम करना था और ये उनका कर्तव्य बताया गया था. इसमें पुरुष मुश्किल से केवल कुछ वक्त के लिए अपने घर रह पाते थे." हालांकि इस सिस्टम से महिलाओं को छूट दी गई थी.
जब इमाओं ने ब्रिटिश हुकूमत को हराया
ये जबरन बंधुवा मजदूरी वाली सदियों पुरानी लुल्लुप-काबा प्रथा आगे भारत में अंग्रेजों के आने के बाद तक चलती रही थी. तब अंग्रेजों का अत्याचार चरम पर था. इस प्रथा का फायदा अंग्रेजों ने अपनी तरह से उठाया और ब्रिटिश सरकार की नीतियों ने इमा बाजार के कामकाज में भी दखलअंदाजी करनी शुरू कर दी. हालांकि अंग्रेजों को इसके लिए बाजार चलाने वाली महिलाओं के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा.
जो अंग्रेज भारत के चप्पे-चप्पे में लोगों को डरा-धमकाकर अपना फायदा कर रहे थे, मणिपुर में उन्हें सबक सिखाने का बीड़ा वहां की औरतों ने उठाया. अंग्रेजों ने इमा कैथल की इमारतों को विदेशियों को बेचने की भी भरपूर कोशिश की थी, लेकिन इमा बाजार की महिलाओं ने इसका पुरजोर विरोध किया और ब्रिटिश हुकूमत को मुंह की खानी पड़ी.
यहां जबरन आर्थिक सुधार लागू करने की कोशिशों में लगी ब्रिटिश हुकूमत के लोगों का इमा कैथल की साहसी औरतों ने जमकर मुकाबला किया. इसके लिए उन्होंने एक आंदोलन नूपी लेन यानी औरतों की जंग का आगाज किया. इस आंदोलन के जरिए अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ चक्काजाम, विरोध प्रदर्शन और जुलूस का सिलसिला चलाया गया. नूपी लेन की आग दूसरे विश्व युद्ध तक भी सुलगती रही थी.
हिम्मत और हौसलों से भरी इमा बाजार की महिलाओं ने दुनिया को मातृशक्ति की ताकत का एहसास बखूबी कराया. माना जाता है कि उस दौर में जब अखबार नहीं हुआ करते थे, तब इस बाजार में लोग यहां आसपास की खबरें जानने के लिए पहुंचते थे. देश की आजादी के बाद ये बाजार सामाजिक विषयों पर चर्चा का एक अहम स्थान बन गया. तब से आज तक ये बाजार आगे बढ़ता ही रहा है.
इमा नाम क्यों पड़ा
ये तो जग जाहिर है कि इमा बाजार औरतों ने शुरू किया हुआ है. इसके नाम-पहचान और इसमें औरतों की भागीदारी साबित करते के लिए इसे इमा कैथल नाम दिया गया. मणिपुरी में इमा का मतलब होता है मां और कैथल का मतलब होता है बाजार. इसका पूरा मतलब मां का बाजार है. औरतों का शुरू किया गया ये बाजार आज दुनिया में मणिपुर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की पहचान बन गया है. इस बाजार की चहल-पहल राह चलते को भी यहां रुकने के लिए मजबूर कर देती है.
इमा बाजार का नजारा ही कुछ ऐसा होता है कि यहां दाखिल होते ही भावनाओं की खूबसूरती का नजारा हर तरफ होता है. ये बाजार रात के वक्त रोशनी में और अधिक खुशनुमा एहसास जगाता है. आत्मविश्वास से भरी औरतों के चेहरे आपको बरबस अपनी तरफ खींच लेंगे. यहां ये महिलाएं अक्सर अपने पारंपरिक परिधानों में ही होती है.
ये पारंपरिक फेनेक ( लुंगी जैसा वस्त्र) और इनेफिस (शॉल) पहने हुए होती हैं. इस बाजार में केवल शादीशुदा महिलाओं को ही दुकान चलाने की मंजूरी है. इसके साथ ही यहां एक संगठन औरतों को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के लिए काम करता है. ये संगठन जरूरत के वक्त इन महिलाओं को लोन देता है.
एशिया का बड़ा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स
इमा कैथल या मदर्स मार्केट पूरी तरह से औरतों का बाजार है. एशिया में ये इस तरह का सबसे बड़ा शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है. हर दिन यहां 3000 से अधिक दुकानें लगती हैं, इस हिसाब से इसे शॉपिंग हैवन कहना गलत नहीं होगा. इस बाजार में पुरुष विक्रेताओं और दुकानदारों को प्रतिबंधित किया गया है. मणिपुर सरकार ने 2018 में एलान किया था कि यदि कोई पुरुष विक्रेता इस बाजार में सामान बेचता पाया गया तो उसके खिलाफ मणिपुर नगर पालिका अधिनियम, 2004 के तहत कानूनी कार्रवाई की जाएगी. कैथल पहले स्टालों का एक समूह भर था. सूबे की सरकार ने साल 2010 में इसे ख्वाइरामबंद बाज़ार में स्थानांतरित कर दिया, जहां इसने अधिक संगठित और सुरक्षित आकार ले लिया है.
इंफाल के पश्चिम जिले की वेबसाइट के मुताबिक,"ये एक अनूठा और महिलाओं का बाजार, जिसमें 3,000" ईमा "या स्टॉल चलाने वाली मांएं हैं, यह सड़क के दोनों तरफ दो भागों में बंटा है. सब्जियां, फल, मछली और घरेलू किराने का सामान एक तरफ और बेहतरीन हथकरघा और घरेलू उपकरण दूसरी तरफ बेचे जाते हैं. यहां से कुछ ही दूरी पर एक गली है जहां सींकों का सुंदर सामान बनता है और टोकरियां बेची जाती है." ये अनूठा बाजार महिला दुकानदारों की वजह से अपनी अलग पहचान रखता है. शायद विश्व में ये महिलाओं के निगरानी में चलने वाला अपनी तरह का पहला महिला बाजार है.