जम्मू कश्मीर में लिथियम का भंडार मिला है. इसकी क्षमता 59 लाख टन है. भारत में पहली बार इतनी बड़ी मात्रा में लीथियम मिला है. बताया ये भी जा रहा है कि यह दुनिया का तीसरा सबसे  बड़ा लिथियम भंडार हो सकता है. इतनी भारी मात्रा में लिथियम मिलने से नॉन फेरस मेटल के लिए अब भारत की निर्भरता दूसरे देशों से कम हो जाने की उम्मीद है. 


जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी GSI ने 59 लाख टन लिथियम की पहचान जम्मू-कश्मीर के रियासी में की है. लिथियम एक तरह का रेअर एलिमेंट है. जिसका इस्तेमाल मोबाइल-लैपटॉप, इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) समेत दूसरे चार्जेबल बैटरियों को बनाने में किया जाता है. 


क्या है लिथीयम 
लिथियम (Li) एक नरम और चाँदी जैसी-सफेद धातु है. इसका इस्तेमाल रिचार्जेबल बैटरी के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है. इस वजह से कभी-कभी इसे 'व्हाइट गोल्ड' के नाम से भी जाना जाता है. 


 पहले लिथियम के इस्तेमाल को समझिए


चाहे मोबाइल फोन हो या सौर पैनल, हर जगह महत्वपूर्ण खनिजों की जरूरत होती है. इसमें लिथियम एक जरूरी खनिज है.



  • लैपटॉप, मोबाइल जैसे गैजेट्स बनाने में लिथियम एक जरूरी घटक है. 

  • लिथियम का इस्तेमाल थर्मोन्यूक्लियर रिएक्शन में भी किया जाता है. 

  • लिथियम का इस्तेमाल एल्युमीनियम और मैग्नीशियम के साथ मिश्र धातु बनाने के साथ ही मिश्र धातुओं की कैपेसिटी बढ़ाने में भी किया जाता है. 

  • मैग्नीशियम-लिथियम मिश्र धातु का इस्तेमाल कवच बनाने के लिए भी किया जाता है. 

  • एल्युमीनियम-लिथियम मिश्र धातु का इस्तेमाल साइकिलों के फ्रेम , एयरक्राफ्ट और हाई-स्पीड ट्रेनों में भी किया जाता है. 

  • मूड स्विंग और बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी बीमारियों के इलाज में भी लिथियम का इस्तेमाल किया जाता है. 


यानी प्रौद्योगिकी के विकास के लिए लिथियम एक जरूरी एलिमेंट है. लिथीयम मिलने पर खनन मंत्रालय ये कहा था कि इतने बड़े पैमाने पर मिलना उभरती प्रौद्योगिकी के लिए मील का पत्थर साबित होगा. सरकार ऑस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना से लिथियम सहित दूसरे खनिजों को सुरक्षित करने के लिए कई कदम पहले ही उठा चुकी है. केंद्रीय भूवैज्ञानिक प्रोग्रामिंग बोर्ड की 62वीं बैठक में भी लिथियम के इस्तेमाल और इसकी बढ़ती जरूरत पर चर्चा की जा चुकी है. 


ऐसे में इसके भंडार का पता लगाना भारत को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने दिशा में बड़ा कदम है. 




 


भारत इन देशों से करता है लिथियम का आयात 


लिथियम का सबसे बड़ा भंडार चिली में 93 लाख टन का है. ऑस्ट्रेलिया में 63 लाख टन, अर्जेंटीना में 27 लाख टन और चीन में 20 लाख टन लिथियम उत्पाद किया जाता है. भारत अपनी जरूरत का 96 फीसदी लिथियम आयात करता है. भारत चीन से सबसे ज्यादा लिथियम आयात करता है. जो पूरे आयात का 80 प्रतिशत है. 


हर साल लिथियम के आयात पर भारत खर्च करता है इतने रुपये


साल 2020 -21 के बीच भारत ने लिथियम ऑयन बैटरी के आयात पर 8,984 करोड़ रुपये खर्च किए थे. वहीं साल 2021-22 में लिथियम के आयात पर 13,838 करोड़ रुपये खर्च किए थे. भारत इस तरह के धातु के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए अर्जेंटीना, चिली, ऑस्ट्रेलिया और बोलिविया की खदानों में अपनी हिस्सेदारी खरीदने पर भी काम कर रहा है. 


लिथियम का भंडार मिलने से भारत को क्या होगा फायदा?


फिल्हाल भारत  96 प्रतिशत लिथियम का आयात अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चिली, चीन, अर्जेंटीना और बोलीविया से करता है. इतने बड़े पैमाने पर लिथियम के निर्यात से भारत की काफी विदेशी मुद्रा खर्च होती है. लिथियम भंडार भारत में मिलने से भारत का विदेशी मुद्रा खर्च होने से तो बचेगी ही. साथ ही भारत लिथियम का निर्यात कर अपना राजस्व भी बढ़ा सकेगा. 
 
कितनी है लिथियम की कीमत?


मौजूदा समय में 1 टन लिथियम की कीमत करीब 57.36 लाख रुपये है. भारत में 59 लाख टन लिथियम का भंडार मिला है.  ऐसे में आज के समय इसकी कीमत लगभग 3,384 अरब रुपये होगी. बता दें कि कमोडिटी मार्केट हर दिन मेटल की कीमत तय करता है. 


 लिथियम भंडार मिलने से बैटरियों की कीमत पर क्या असर पड़ेगा


अगर भारत अपने भंडार से जरूरत के मुताबिक लिथियम का उत्पादन कर लेता है तो जाहिर है कि बैटरियों के दाम कम होंगे. साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के दामों में भी कमी आ सकती है. 


भारत में मिले भंडार से चीन को हो सकता है नुकसान


दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाली 10 लिथियम बैटरियों  में से लगभग चार का इस्तेमाल चीन में हो रहा है. लिथियम की इंपोर्टेड बैटरियों का 77 प्रतिशत उत्पादन भी चीन में होता है. अब लिथियम मिलने पर अगर भारत ने लिथियम बैटरियां बनाना शुरू कर दिया तो चीन को बड़ा नुकसान होगा. 


जलवायु परिवर्तन को काबू करने के लिए पूरी दुनिया को है लिथियम आयन बैटरियों से उम्मीद


भविष्य में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ने वाली है. इलेक्ट्रिक वाहनों में लिथिमय आयन बैटरियों का ही इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में पूरी दुनिया को लिथियम बैटरियों से बड़ी उम्मीदें हैं. अगर भारत जरूरत के जितना लिथियम उत्पाद कर लेता है और दूसरे देशों में निर्यात करने लगे तो पूरी दुनिया में बढ़ रहा प्रदुषण और जलवायु परिवर्तन को काबू किया जा सकता है. 


लिथियम के मिलने से भारत के ये लक्ष्य भी होंगे पूरे 


भारत ने साल 2070 तक अपने उत्सर्जन को पूरी तरह से इन्वॉरमेंट फ्रेंडली करने का संकल्प लिया है. इसके लिए इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी में लिथियम का एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप होना जरूरी है . सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुताबिक देश को साल 2030 तक 27 GW ग्रिड-स्केल बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम की जरूर होगी, जिसके लिये भारी मात्रा में लिथियम की जरूरत होगी. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी IEA का अनुमान है कि साल  2025 तक दुनिया को लिथियम की कमी का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में भारत में मिला लिथियम इस कमी को भी दूर करेगा . 


लिथियम बैटरी बनाने में भारत के सामने क्या होगी चुनौतियां?


सिर्फ लिथियम का भंडार मिलने भर से बैटरियां बनाना आसान नहीं होगा. लिथियम बैटरी बनाना एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है , जिसमें कई आधुनिक तकनीकों की जरूरत होती है.  इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि आस्ट्रेलिया जैसे देश में  लिथियम का भंडार 63 लाख मीट्रिक टन का है लेकिन वहां पर लिथियम का उत्पाद 0.6 मिलियन टन ही है.