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Rajendra Prasad Death Anniversary: जवाहरलाल नेहरू के विरोध के बाद भी पहले राष्ट्रपति कैसे बने थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद?

संविधान बनने के इस क्रम में संविधान सभा के लगभग हर सदस्य के मन में ये बात घर कर गई कि संविधान लागू होने के बाद भारत का पहला राष्ट्रपति तो डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को ही होना चाहिए.

India First President Rajendra Prasad Death anniversary: अगर पंडित जवाहर लाल नेहरू की चली होती तो देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद नहीं बल्कि चक्रवर्ती राजगोपालाचारी बने होते, लेकिन कांग्रेस में नेहरू की नहीं चली और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति बन गए.

तो आखिर वो कौन लोग थे, जिन्होंने आजादी के ठीक बाद नेहरू का विरोध करने की हिम्मत जुटाई और राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बना दिया. आखिर वो कौन सी परिस्थितियां थीं, जिनमें नेहरू को कांग्रेस के कुछ चुनिंदा नेताओं के आगे झुकना पड़ा और राजेंद्र प्रसाद को नापसंद करने के बावजूद उन्हें राष्ट्रपति बनाने पर सहमत हो गए. डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की पुण्यतिथि पर आज बात विस्तार से.

यहां से पहली बार उछला राजेंद्र प्रसाद का नाम

9 दिसंबर 1946  को भारत ने अपना संविधान बनाने के लिए संविधान सभा की पहली बैठक की. इस बैठक की अध्यक्षता संविधान सभा के अस्थाई अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा ने की. दो दिनों के बाद ही 11 दिसंबर, 1946 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को सर्वसम्मति से संविधान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया. 2 साल 11 महीने और 18 दिन के बाद 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने अपना काम पूरा किया और भारत का संविधान बनकर तैयार हो गया. संविधान बनने के इस क्रम में संविधान सभा के लगभग हर सदस्य के मन में ये बात घर कर गई कि संविधान लागू होने के बाद भारत का पहला राष्ट्रपति तो डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को ही होना चाहिए. सरदार वल्लभ भाई पटेल के सचिव वी शंकर ने अपने संस्मरण में लिखा-

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा का संचालन जिस योग्यता से किया और सरदार ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के प्रति सदस्यों की जैसी सद्भावना देखी, उससे वो समझते थे कि डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को ही भारतीय गणराज्य का पहला राष्ट्रपति होना चाहिए.”

पंडित जवाहर लाल नेहरू नहीं थे इससे सहमत

लेकिन पंडित जवाहर लाल नेहरू इससे सहमत नहीं थे. वह चाहते थे कि राजाजी यानी कि सी. राजगोपालाचारी भारतीय गणराज्य के पहले राष्ट्रपति बनें. सी. राजगोपालाचारी तब गवर्नर जनरल थे. सरदार पटेल के निजी सचिव वी. शंकर के 1975 में प्रकाशित संस्मरण में लिखा है-

अपनी अमेरिका यात्रा से पहले पंडित नेहरू ने सरदार पटेल को फोन किया. कहा कि अगर मैं वर्तमान गवर्नर जनरल को राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव रखता हूं तो पार्टी के नेता मेरे फैसले का इसलिए समर्थन करेंगे, क्योंकि वह उनका मुझे उपहार होगा.”

सरदार पटेल ने किया नेहरू का विरोध

सरदार पटेल ने नेहरू की इस बात का विरोध कर दिया. बकौल वी शंकर, सरदार पटेल ने कहा कि मेरा अनुमान इसके विपरीत है और आपका प्रस्ताव आसानी से नहीं माना जाएगा. हालांकि नेहरू नहीं माने. सरदार पटेल के खिलाफ जाकर नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव रख दिया. जैसा कि पहले से ही तय था, नेहरू के इस प्रस्ताव का भयंकर तरीके से विरोध हो गया. नेहरू बोल रहे थे और कांग्रेसी उन्हें बोलने से रोकने के लिए टोकाटाकी कर रहे थे. जब लगा कि बात ज्यादा बिगड़ जाएगी तो सरदार पटेल खुद उठे. बोले-

कांग्रेस में गंभीर मतभेदों को पहले भी दूर किया गया है. इस बार भी परस्पर बातचीत से कोई हल निकल आएगा. प्रधानमंत्री की विदेश से वापसी के बाद हम फिर इसपर विचार करेंगे. जल्दबाजी में निर्णय करने से बेहतर है हम थोड़ी प्रतीक्षा करें.”

पटेल के इस भाषण की वजह से कांग्रेसियों का हंगामा तो खत्म हो गया, लेकिन नेहरू की परेशानी बढ़ गई. सरदार पटेल ने इसे भांप लिया. राम बहादुर राय अपनी किताब भारतीय संविधान की अनकही कहानी में लिखते हैं-

सरदार पटेल ने जैसे ही नेहरू का चेहरा देखा, उन्होंने तुरंत ही गोविंद वल्लभ पंत से कहा कि वो पंडित नेहरू के साथ उनके निवास स्थान जाएं ताकि पंडित नेहरू को निराशा में डूबने से बचाया जा सके. हालांकि गोविंद वल्लभ पंत पंडित नेहरू के साथ नहीं गए, बल्कि अपने घर 1 औरंगजेब रोड चले गए. और जैसे ही वो आराम करने पहुंचे, उन्हें पंडित नेहरू का पत्र मिला. पत्र में पंडित नेहरू ने अपने इस्तीफे की पेशकश की थी और कहा था कि विदेश से वापसी के बाद वो गवर्नर जनरल से मिलकर कहने जा रहे हैं कि अब सरकार का नेतृत्व सरदार पटेल करेंगे.”

विरोध देखकर पंडित नेहरू हो गए थे परेशान

राजाजी को राष्ट्रपति बनाए जाने के नेहरू के प्रस्ताव का जिस तरह से कांग्रेसियों ने ही विरोध किया, उसने नेहरू को परेशान कर दिया. नेहरू को लगा कि जैसा समर्थन और विश्वास सरदार पटेल को हासिल है, वैसा उनके पास नहीं है. लेकिन सरदार पटेल ने फिर एक बार संकटमोचक की भूमिका निभाई और सभी कांग्रेसियों को बता दिया कि अगर इस मसले को तूल दिया जाएगा, तो नुकसान हो सकता है. लिहाजा सभी ने चुप्पी साध ली. खुद नेहरू भी शांत हो गए, क्योंकि जब वो विदेश जा रहे थे, तो उन्हें विदा करने के लिए हजारों की संख्या में कांग्रेस के नेता मौजूद थे.

महावरी त्यागी ने अपने संस्मरण में किया विवाद का जिक्र

राष्ट्रपति पद के लिए हुए विवाद पर कांग्रेस नेता और संविधान सभा के सदस्य रहे महावीर त्यागी ने अलग तरह से बात रखी है. भारत के प्रथम राष्ट्रपति नाम से लिखे अपने संस्मरण में महावीर त्यागी ने लिखा है-

एक रात को जवाहरलाल जी ने प्रस्ताव किया कि संविधान लागू होते ही भारत के राष्ट्रपति पद पर राजगोपालाचारी को नियुक्त किया जाए. हमने प्रस्ताव दिया कि संविधान सभा के अध्यक्ष बाबू राजेंद्र प्रसाद को ही प्रथम राष्ट्रपति नियुक्त करना चाहिए. बहुत गरमा गरमी की बहस हुई. जोश में आकर जवाहरलाल जी ने खड़े होकर चुनौती के रूप में कहा कि यदि आप राजगोपालाचारी को स्वीकार नहीं करते हैं तो आपको अपनी पार्टी का नेता भी नया चुनना पड़ेगा. मैंने भी जोश में चिल्लाकर सभापति महोदय से कहा कि हम तो राजेंद्र बाबू को चुनना चाहते हैं. यदि वे त्याग पत्र देना चाहते हैं तो दें, हम किसी दूसरे साथी को पार्टी का नेता चुन लेंगे.”

उस रात मामले ने इतना तूल पकड़ लिया कि कांग्रेस अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया ने बैठक स्थगित कर दी ताकि मामला और न बिगड़ जाए. जवाहर लाल नेहरू भी अमेरिका चले गए. जब नेहरू अमेरिका से वापस लौटे तो सरदार पटेल ने एक दिन महावीर त्यागी को फोन किया. बोले-

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने तो जवाहरलाल जी लिखकर दे दिया है कि वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं हैं.”

राजेंद्र प्रसाद पर गुस्सा हो गए थे महावीर त्यागी

महावीर त्यागी अपने संस्मरण में लिखते हैं कि मेरे तो पैरों तले ज़मीन खिसक गई. फौरन जीप लेकर राजेंद्र बाबू के घर पहुंचा. और पूछ बैठा कि क्या सचमुच आप मैदान से भाग निकले. तो डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि भाई तुम ही बताओ, मैं क्या करता. अमेरिका से लौटते ही जवाहरलाल नेहरू घर आए और बोले कि राजेंद्र बाबू, मेरी आपसे अपील है कि आप राजाजी को निर्विरोध चुने जाने दो. तो मेरे पास कहने को कुछ नहीं बचा और मैंने लिखकर दे दिया कि राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति चुने जाने में मेरी कोई आपत्ति नहीं है और मैं इसका उम्मीदवार भी नहीं हूं. तब महावीर त्यागी बनावटी गुस्से के साथ राजेंद्र प्रसाद पर चिल्ला पड़े. बोले-

राजेंद्र बाबू. याद रखना. मैं भी कांग्रेस में एक अव्वल नंबर का गुंडा हूं. जिस तरह तुमने हमारे साथियों के साथ विश्वासघात किया है, मैं उसका बदला लिए बिना नहीं छोडूंगा. भरे चौराहे पर तुम्हारी टोपी उछालूंगा बिहारी बुद्धू कहीं के.”

इस बातचीत के बाद महावीर त्यागी राजेंद्र प्रसाद के घर से निकले और सीधे पहुंच गए सरदार पटेल के घर. सारा हाल सुनाया तो सरदार पटेल बोले-

“जब तुम्हारा दूल्हा ही पालकी छोड़कर भाग गया तो बारात कैसे चढ़ेगी. उसने तुमको नहीं पूछा, यह तो समझ में आता है पर कम से कम हमको तो टेलीफोन करता, बीसियों वर्ष का हमारा साथी है.”

महावीर त्यागी फिर राजेंद्र प्रसाद के घर पहुंचे और सारी बात बता दी. अगले दिन महावीर त्यागी सरदार पटेल के साथ मॉर्निंक वॉक पर निकले तो पटेल ने महावीर त्यागी से कहा-

तुम्हारा कश्मीरी बड़ा सयाना है. उसने कांग्रेस सदस्यों की बैठक आज शाम मेरे घर बुलाई है, ताकि तुम लोगों का मुंह बंद रहे.”

पंडित नेहरू ने इस तरह रखा राजगोपालाचारी का नाम

उस शाम करीब साढ़े चार बजे सरदार पटेल की औरंगजेब रोड वाली कोठी के सामने वाले चबूतरे पर कांग्रेसियों की बैठक हुई. पहला भाषण पंडित नेहरू ने दिया और कहा कि राजेंद्र बाबू ने अपना नाम वापस ले लिया है और यह गौरव की बात इतिहास में जाएगी कि हमने अपना पहला राष्ट्रपति निर्विरोध चुन लिया है. इस भाषण के दौरान ही नेहरू ने सी राजगोपालाचारी की तारीफ की. कहा-

“राजगोपालाचारी का नाम उनके सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के विरोध की वजह से बहुत से कांग्रेसियों को अच्छा नहीं लगेगा. लेकिन अगर विदेशी खिड़की से झांका जाए तो राजाजी का व्यक्तित्व बहुत उंचा है.”

पंडित नेहरू की बातों का सभा में हो गया विरोध

नेहरू की इस बात का विरोध हो गया. रामनाथ गोयनका ने कहा कि जब आप खुद मान रहे हैं कि राजाजी का नाम कांग्रेसियों को पसंद नहीं आएगा तो क्या हम गैरकांग्रेसी हैं. महावीर त्यागी ने तो कह दिया कि "जवाहरलाल जी, आप हमेशा विदेशी खिड़िकियों से ही क्यों झांकते हैं." कुल मिलाकर उस शाम हुआ ये कि कांग्रेस नेताओं ने मिलकर तय कर दिया कि जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल मिलकर जो भी फैसला करेंगे, सभी कांग्रेसियों को वो मान्य होगा. फिर अगले दिन जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल एक साथ कमरे में बैठे. दोनों के बीच बातचीत हुई. नेहरू ने फिर कहा कि जब राजेंद्र बाबू ने अपना नाम वापस ले ही लिया है, तो हमें अपना फैसला राजगोपालाचारी के पक्ष में दे देना चाहिए. पटेल ने फिर विरोध किया. बोले-

“हमें पार्टी की आवाज का फैसला देना है, अपनी आवाज का नहीं. और पार्टी के अधिकांश लोग राजेंद्र बाबू को चाहते हैं.”

सरदार पटेल की बात सुन नेहरू भी हुए तैयार 

फिर नेहरू ने सरदार पटेल से कहा कि आप फैसला सुना दीजिए कि हम दोनों की राय में राजेंद्र बाबू को ही राष्ट्रपति चुना जाना चाहिए. फिर तारीख आई 24 जनवरी, 1950. संविधान सभा का सत्र हुआ. तब अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि अब राष्ट्रपति के निर्वाचन का परिणाम घोषित किया जाएगा. संविधान सभा के सचिव और निर्वाचन अधिकारी एचवी आर आयंगर ने घोषणा की. बोले-

“भारत के राष्ट्रपति पद के लिए केवल एक मनोनयन प्राप्त हुआ है. उम्मीदवार का नाम डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद है. नियमानुसार डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित घोषित करता हूं.”

और इस तरह से डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गए.

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