नई दिल्ली: दक्षिण एशिया की पल-पल की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए इस गुरुवार यानि 5 मार्च को इसरो एक जियो-स्टेशनरी सेटेलाइट लॉन्च करने जा रहा है. जीआईसैट-1 भारत का पहला जियो-स्टेशनरी सेटेलाइट है जो इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) को रियल टाइम में पूरे दक्षिण एशिया की इमेज मुहैया कराएगा.
इसरो के मुताबिक, 2268 किलो की इस सेटेलाइट, जियो इमेज सेटेलाइज (जीआईसैट-1) को जीएसएलवी-एफ10 से आंध्रा प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस रिसर्च सेंटर से 5 मार्च की शाम 5.43 (17.43 बजे) लॉन्च किया जाएगा. इसरो के इस जीएसएलवी यानि जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल का ये 14वां लॉन्च है.
इसरो के मुताबिक, ये पहला स्टेट ऑफ द आर्ट एजाइल यानि चुस्त और मुस्तैद सेटेलाइट है जिसे पहले जियोसिनक्रोनिस ऑर्बिट में भेजा जाएगा और उसके बाद ये अपने प्रोपल्शन से जियो स्टेशनरी ऑर्बिट में पहुंच जाएगा. जीआईसैट-1 की लॉन्चिंग के दौरान एबीपी न्यूज़ की टीम भी श्रीहरिकोटा में इसरो के परिसर में कवरेज के लिए मौजूद रहेगी.
आपको बता दें कि जियो स्टेशनरी ऑर्बिट धरती से करीब 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है और यहां पर जीआईसैट-1 पृथ्वी की दिशा में ठीक उतनी ही गति से घूमता रहेगा जितनी पृथ्वी की स्पीड है. ऐसे में ये दक्षिण एशिया के ठीक ऊपर रहकर रियल टाइम तस्वीरें इसरो को भेजता रहेगा. इसरो के मुताबिक, ये सेटेलाइट थोड़े थोड़े अंतराल पर दक्षिण एशिया की तस्वीरें भेजती रहेगा. लेकिन ये इमेज तभी दे सकेगा जबकि आसमान में बादल ना हों. अगर आसमान में क्लाउड हुए तो ये साफ इमेज नहीं भेज पाएगा.
पूर्व रक्षा वैज्ञानिक, रवि कुमार गुप्ता ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि इस तरह की अगर तीन (03) जियो स्टेशनरी सेटेलाइट को अंतरिक्ष में लांच कर दिया जाए तो पूरी पृथ्वी की निगहबानी एक साथ की जा सकती है. रवि कुमार गुप्ता एक लंबे समय तक देश के सरकारी संस्थान, डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानि डीआरडीओ से जुड़े रहे हैं.
आपको बता दें कि इस तरह की सेटेलाइट का इस्तेमाल बॉर्डर पर दुश्मन की सेना और सैन्य साजो सामान की मूवमेंट के लिए की जा सकती है. साथ ही बाढ़ और दूसरे प्राकृतिक आपदा में राहत और बचाव कार्यों में भी किया जा सकता है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी दक्षिण एशिया में अपने मित्र-देशों को सेटेलाइट से मिलने वाली मदद का भरोसा दे चुके हैं. ऐसे में इस तरह की जीआईसैट-1 सेटेलाइट दक्षिण एशियाई देशों को भी जरूरत पड़ने पर काफी अहम मदद निभा सकती हैं.
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