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ICJ का फैसला तय करेगा कुलभूषण जाधव की सलामती की सूरत
कुलभूषण मामले पर अंतिम सुनवाई फरवरी 2019 में हुई थी जब दोनों देशों के वकीलों ने दलीलें रखी थी. भारत का पक्ष पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने रखा था. पाकिस्तान की तरफ से चौधरी खावर कुरैशी अदालत के सामने पेश हुए थे.
द हेग: पाकिस्तान की कैद में मौजूद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच बीती दो सालों से जारी कानूनी लड़ाई अब नतीजे के मोड़ पर आ पहुंची है. हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय अदालत 17 जुलाई की शाम भारतीय समयानुसार करीब साढ़े 6 बजे अपना फैसला सुनाएगी. यह फैसला तीन सालों से पाकिस्तानी जेल में बंद कुलभूषण जाधव की सलामती की सूरत तय करेगा.
हालांकि आईसीजे में अब तक चार बार हुई भारत-पाक की भिड़ंत हो चुकी है और बीते चार दशक से ज़्यादा हुई तीन कानूनी लड़ाइयों में भारतीय पलड़ा ही भारी नज़र आता है. मामला चाहे 1971 के युद्ध बंदियों का हो या फिर 1999 में पाकिस्तानी नौसैनिक विमान अटलांटिक मार गिराने का केस, पाकिस्तान ने कभी खुद ही अपना केस वापस लेने का फैसला लिया तो कभी अदालत ने उसे बाहर का दरवाजा दिखाया. इसके अलावा वियना संधि 1963 के मामलों में आईसीजे के फैसलों का इतिहास भी जाधव मामले में भारत की उम्मीदों को दम देता है.
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कैसे पढ़ा जाएगा फैसला?
निर्धारित प्रक्रिया के मुताबिक आईसीजे के मुख्य कोर्ट रूम में 16 जजों की बेंच की मौजूदगी में सुनाया जाएगा. हालांकि आईसीजे अध्यक्ष जज अब्दुलकावी यूसुफ न्यायालय के फैसले को पढ़कर सुनाएंगे. इस दौरान भारत और पाकिस्तान के आधिकारिक प्रतिनिधि भी कोर्ट में मौजूद होंगे. भारत के एजेंट और विदेश मंत्रालय में पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव दीपक मित्तल और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भारत की नुमाईंदगी करेंगे.
बंटा हो सकता है आईसीजे का फैसला
आईसीजे के 16 जजों की बेंच में भारत और पाकिस्तनी मूल के जजों के अलावा अमेरिका व चीन के जज भी मौजूद हैं. ऐसे में इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले मामलों और राष्ट्रीय स्थिति के संदर्भों के मद्देनजर जाधव मामले पर आने वाला अदालत के फैसले में कुछ डिसेंट नोट या असहमति पत्र भी हो सकते हैं.
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ध्यान रहे कि पाकिस्तान ने अपने हितों का हवाला देते हुए ही बेंच में अस्थाई जज के तौर पर पाक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस तसद्दुक हुसैन जिलानी को शामिल करवाने पर जोर दिया था. इतना ही नहीं फरवरी 2019 की सुनवाई के दौरान जब जिलानी दो दिन बीमार हो गए थे तो पाक ने सुनवाई रोकने तक की अपील कर डाली थी. हालांकि अदालत ने पाकिस्तान की यह अपील खारिज कर दिया था. इस मामले में भारत ने जिन दो मामलों का हवाला दिया उनमें अमेरिका और मेक्सिको के बीच 2004 का अवीना केस और 1999 का लग्राण्ड केस भी है. लग्राण्ड केस में अमेरिका ने ईआसीजे का आदेशों को सिरे से नकारते हुए जासूसी के आरोप में पकड़े गए जर्मन नागरिकों
कार्ल और वाल्टर लग्राण्ड को फांसी दे दी थी. ऐसे में इन मामलों से सहमति या अपनी राष्ट्रीय स्थिति के मुताबिक राय रखने वाले जज असहमति जता सकते हैं. हालांकि जज आईसीजे में स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी राष्ट्रीयता के आधार पर फैसला लेने के लिए बाध्य नहीं होते हैं.
अब तक क्या हुआ?
पाकिस्तानी मिलिट्री कोर्ट द्वारा 10 अप्रैल 2017 को कुलभूषण जाधव को सज़ा-ए-मौत सुनाए जाने के बाद भारत ने 8 मई 2017 को आईसीजे का दरवाजा खटखटाया था. अदालत ने भारत की अंतिरम राहत अपील के हक में फैसला देते हुए पाकिस्तान को इस मामले में आईसीजे का निर्णय आने तक अदालत कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगाने का आदेश दिया था. इसके बाद बीते दोन सालों में भारत और पाकिस्तान को पहले लिखित और फिर मौखिक रूप से अपना-अपना पक्ष रखने का मौका दिया.
मामले पर अंतिम सुनवाई फरवरी 2019 में हुई थी जब दोनों देशों के वकीलों ने दलीलें रखी थी. भारत का पक्ष पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने रखा था. पाकिस्तान की तरफ से चौधरी खावर कुरैशी अदालत के सामने पेश हुए थे. अदालत ने करीब 6 महीने का वक्त लेने के बाद अपना फैसले की तारीख तय की है.
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प्रशांत कुमार मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक
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