अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले 2022 में खादी है छाई, बिक्री का बनाया शानदार रिकॉर्ड
खादी को महात्मा गांधी से जोड़ कर देखा जाता है. एक ऐसा बुना हुआ कपड़ा जो भारत की आजादी के संघर्ष का प्रतीक बना. अब यही कपड़ा दुनिया में अपनी धाक जमा रहा है. इसका सबूत इसकी रिकॉर्ड तोड़ बिक्री होना है.
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खादी या खद्दर केवल कपड़ा भर नहीं है. ये भारत के स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष का पर्याय है. महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से इस कपड़े का चोली दामन सा साथ रहा है. इसका नाम आते ही भारतीयों के जेहन में जो सबसे पहली तस्वीर उभरती है वो चरखा कातते राष्ट्रपिता की होती है.
देश की आजादी के पहले से ही इस कपड़े की अहमियत रही है. इसमें कोई दो राय नहीं की ये हमेशा से ही भारत की टैक्सटाइल विरासत का एक प्रतीक रहा है. आजादी के लगभग 7 दशकों बाद भी खादी हर घर की जान है. यही वजह है की नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले 2022 में खादी छाई रही.
यहां खादी इंडिया पवेलियन में इसके दीवानों के बीच इससे बने उत्पादों को खरीदने की होड़ रही. यहां इस पवेलियन से 12.06 करोड़ की रिकॉर्ड तोड़ बिक्री दर्ज की गई है. खादी की बिक्री में हुआ ये इजाफा हाथ के कारीगरों के हौसले बुलंद कर रहा है.
खादी इंडिया पवेलियन के दीवाने हुए लोग
देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने रविवार 27 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले 2022 में खादी की बिक्री को लेकर एक आधिकारिक बयान जारी किया. इसमें कहा गया है कि मेले के खादी इंडिया पवेलियन में गांव के माहौल में तैयार खादी कारीगरों के खादी उत्पादों की खासी मांग रही.
इस पवेलियन में इन कारीगरों के बनाए प्रीमियम खादी परिधानों और ग्रामीण उत्पादों को बिक्री के लिए रखा गया है. पवेलियन में बिक्री के लिए रखे पश्चिम बंगाल की मलमल खादी, जम्मू-कश्मीर की पश्मीना, गुजरात की पटोला सिल्क, बनारसी सिल्क, भागलपुरी सिल्क पंजाब की फुलकारी, आंध्र प्रदेश की कलमकारी के लोग मुरीद बन गए.
इसके अलावा कई अन्य तरह के सूती, रेशमी और ऊनी उत्पाद मेले में बिक्री के लिए रखे गए थे. मेले में खादी से बने इन कपड़ों की अच्छी-खासी मांग रही. इस वजह से खादी के कपड़ों का ये पवेलियन यहां आकर्षण का केंद्र बना रहा.
खादी से बने कपड़ों और अन्य उत्पादों को खरीदने के लिए यहां लोगों भीड़ लगाए खड़े रहे. बड़े स्तर पर हो रही खादी की ये बिक्री इन्हें तैयार करने वाले कारीगरों के चेहरे पर भी मुस्कान ले आई.
खादी उत्पादों के लिए मिले कई ऑर्डर
जैसा की महात्मा गांधी ने कहा था, "खादी केवल वस्त्र नहीं बल्कि विचार है." उनका सपना था कि खादी वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाए. इसे साकार करने की दिशा में देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कदम बढ़ाए हैं. गांधी जी के सपनों की खादी को पीएम के विजन के साथ वैश्विक स्तर पर ले जाया जा रहा है.
इस दौरान खादी व्यवसायियों का हौसला बढ़ाने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग केवीआईसी (KVIC) के चेयरमैन मनोज कुमार ने सभी कारीगरों और मेले में शिरकत करने वाले लोगों को सर्टिफिकेट दिए.
उन्होंने व्यापार मेले में उनकी भागीदारी के लिए भी धन्यवाद दिया. इस मेले में खादी के उद्यमियों को कई उत्पादों को बनाने के लिए ऑर्डर भी मिले. ये साबित करता है कि खादी की मांग बढ़ रही है. इस तरह से खादी उत्पाद बनाने के ऑर्डर मिलने से आने वाले वक्त में उद्यमियों को उनके उत्पादों की बिक्री के लिए भी फायदा पहुंचेगा.
पवेलियन की थीम रही शानदार
भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले 2022 में खादी इंडिया पवेलियन हाल नबंर 3 में था. ये खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने लगाया था. इसमें देश के कारीगरों की खादी की बेहतरीन दस्तकारी और ग्रामोद्योग उत्पाद ब्रिकी के लिए रखे गए थे.
इस पवेलियन के जरिए पीएम मोदी के "वोकल फॉर लोकल, लोकल टू ग्लोबल" विजन को साकार किया गया. भारतीय ही नहीं बल्कि कई देशों के राजदूत, दूतावासों के सीनियर ऑफिसर, संसद सदस्यों सहित कई लाख लोग इस पवेलियन में खरीददारी के लिए पहुंचे थे.
सबसे खास आकर्षण इसकी थीम रही. इस थीम में महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आधार बनाया गया था. एक तरह से ये थीम यहां आने वाले लोगों के लिए 'सेल्फी प्वाइंट' बन गई. लोगों ने खादी के चरखे के साथ सूत कातते पीएम मोदी की तस्वीर के साथ जमकर सेल्फी ली.
खिल गए कारीगरों के चेहरे
इस अंतरराष्ट्रीय मेले के लिए कारीगरों का भी अच्छा खासा रूझान रहा. यहां 200 से अधिक खादी कारीगरों और उद्यमियों ने अपनी स्टॉल लगाईं थीं. इस बड़े स्तर पर कारीगरों की भागीदारी भी खादी के सुनहरे भविष्य को लेकर बहुत कुछ कहती है.
इन स्टॉल के जरिए देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोगों सहित विदेशियों को भी देश के कारीगरों की कला, सांस्कृतिक विविधता और पारंपरिक शिल्प को देखने का मौका मिला. यही नहीं लघु उद्योगों से जुड़े लोगों ने खादी प्रेमी लोगों को और उनकी जरूरतों को जाना-समझा.
कारीगरों को इस मेले में खादी के लिए लोगों में दिलचस्पी जगाने का मौका भी मिला. कारीगरों ने ये भी जाना कि भविष्य में वो इसी तरह के उत्पाद तैयार करें जो खादी के दीवानों की पसंद हो.
युवाओं ने सीखे आत्मनिर्भरता के गुर
पवेलियन में लोगों ने केवल खादी से बने उत्पाद ही नहीं खरीदे बल्कि युवाओं ने आत्मनिर्भर बनने के गुर भी सीखे. यहां चरखा कताई, "कपास से सूत" बनाने, मिट्टी के बर्तन बनाने, अगरबत्ती बनाने और इस तरह के कई कामों का लाइव प्रदर्शन भी किया गया.
इसके युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया गया. केवीआईसी मुताबिक युवाओं ने अद्वितीय 'सुविधा डेस्क' के जरिए स्वरोजगार अपनाने और नौकरी चाहने वाला बनने के बजाय नौकरी देने वाला बनने की केवीआईसी की पहल के बारे में जानकारी ली.
भारत की कपड़ा विरासत का प्रतीक
भारत की आजादी के लगभग सात दशकों के बाद खादी अभी भी हर भारतीय घर में अपनी जगह बनाए हुए है. खादी शब्द "खद्दर" से लिया गया है. ये शब्द भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हाथ से काते हुए कपड़े के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाला शब्द है. ये कपास से बनाया जाता है, लेकिन आजकल इसे रेशम से भी बनाया जाता है.
ऊनी धागों को खादी रेशम और खादी ऊन कहा जाता है. खादी का कपड़ा अपनी खुरदुरी बनावट के लिए मशहूर है. इस कपड़े की खासियत है कि ये सर्दियों में शरीर को गर्म और गर्मियों में ठंडा रखता है. खादी को दो चरणों में बनाया जाता है. पहले में चरखे का इस्तेमाल कर कपास की रूई को सूत या धागे में बदला जाता है. इसके बाद हथकरघे का इस्तेमाल कर इस सूत से कपड़ा में बुना जाता है.
बेहद पुरानी है खादी की कहानी
खादी से हमारा रिश्ता बहुत पुराना है. ये हमारी परंपरा और इतिहास का प्रतीक है. देश में हाथ से कताई और बुनाई की प्रक्रिया एक हजार वर्षों से पुनर्जीवित होती रही है. इसने खादी को एक प्राचीन कपड़ा बना दिया गया है. ये कपड़ा सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 2800 ईसा पूर्व) में पाया गया है.
पुरातत्वविदों के मुताबिक सिंधु घाटी सभ्यता में कपड़ों का विकसित और समृद्ध व्यवसाय रहा था. मोहनजोदड़ो सभ्यता की खोज में मिली मशहूर पुजारी-राजा की मूर्तियों के कंधे पर पैटर्न वाला एक खूबसूरत कपड़ा मिला. ये कपड़ा अभी भी आधुनिक सिंध, गुजरात और राजस्थान में इस्तेमाल किया जाता है.
कहा जाता है कि जब सिकंदर महान ने भारत पर आक्रमण किया. तो उसके सैनिकों ने अपने पारंपरिक ऊनी कपड़ों की जगह सूती कपड़े पहनना शुरू कर दिया था. सूती कपड़े गर्मी में कहीं अधिक आरामदायक थे. सिकंदर के एडमिरल नियोरकस ने कहा था, "भारतीयों का पहने जाने वाला ये कपड़ा पेड़ों पर उगाई गई कपास से बना है."
गांधी की खादी
आजादी की लड़ाई में पूरे देश को एकजुट करने में महात्मा गांधी और चरखे का अहम योगदान रहा. 1918 में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने देशवासियों से विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने का आह्वान किया. गांधी जी के साथ मिलकर लोगों ने चरखे से सूत काता और खादी का कपड़ा बनाया.
और ये खादी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग का प्रतीक बन गई. आजादी के करीब एक दशक बाद देश में खादी और ग्रामोद्योग आयोग बना. गांधी जी के इस ख्वाब को परवान चढ़ाने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के हवाले कर दिया गया.
खादी को बुरे दौर से भी गुजरना पड़ा और इसके लिए खादी बचाओ जैसे आंदोलन भी देश में चले, लेकिन खादी का वजूद फिर भी सांस लेता रहा. आज खादी विदेशों में धूम मचा रही है. मौजूदा वक्त में मोदी सरकार भी खादी के जमकर प्रोत्साहन कर रही है.
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