48वां विजय दिवस : 1971 के युद्ध के इस बेजुबान हीरो की कहानी दिलचस्प है
युद्ध के दौरान एक बार पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर से सटी भारतीय सेना के एक काफिले पर हमला कर दिया.
नई दिल्ली: देश आज 48वां विजय दिवस मना रहा है. आज ही के दिन 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर विजय हासिल की थी और बांग्लादेश का जन्म हुआ था. इस युद्ध में तत्कालीन सेना प्रमुख (बाद में फील्ड मार्शल) सैम मानेकशा से लेकर हर सिपाही ने बहादुरी का परिचय देते हुए पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों को सरेंडर करने के लिए मजबूर कर दिया था, लेकिन इस युद्ध में एक ऐसा बेजुबान हीरो भी था जिसे भारतीय सेना ने वीर चक्र से नवाजा था. ये था सेना का एक खच्चर जिसका नाम था 'पेडोंगी'.
भारतीय सेना की सर्विस कोर (आर्मी सर्विस कोर यानि एएससी) में कार्यरत, पेडोंगी खच्चर 1971 के युद्ध के दौरान अपनी यूनिट के साथ जम्मू कश्मीर में तैनात थी. हालांकि, '71 का युद्ध मूलत: पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) में लड़ा गया था, लेकिन पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर से सटी सीमा पर भी मोर्चा खोलने का प्लान बनाया था. हालांकि वो काम नहीं आया और और पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी. युद्ध के दौरान एक बार पाकिस्तानी सेना ने जम्मू कश्मीर से सटी भारतीय सेना के एक काफिले पर हमला कर दिया. ये काफिला था पेडोंगी की यूनिट, 853वीं एएससी (एटी-एनिमल ट्रासपोर्ट) कंपनी. अचानक हुए हमले से पूरी कंपनी तितर-बितर हो गई. साथ में चल रही इंफेंट्री यूनिट ने पाकिस्तानी सेना का हमला विफल कर दिया, लेकिन थोड़ी देर में जब यूनिट को वापस बुलाकर गिनती की गई तो उसमें तीन खच्चर कम पाए गए, यानि पाकिस्तानी सेना अपने साथ भारत के तीन (03) खच्चर ले भागी थी. इन्ही में से एक था पेडोंगी.
दरअसल, भारतीय सेना की सर्विस कोर में घोड़े, खच्चर इत्यादि को तैनात किया जाता है. ये खच्चर उन पहाड़ी और दूसरे इलाकों तक सैनिकों को रसद, राशन और हथियार पहुंचाते हैं जहां पर सड़क या वाहन से जाना संभव ना हो. यहां तक की छोटी तोप (फील्ड गन) तक ये खच्चर अपनी पीठ पर उठाकर 15-20 हजार फीट की ऊंचाई तक ले जाते हैं. इस खच्चर को इस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है कि ये कहीं भी हो लेकिन वापस अपनी यूनिट में लौट आते हैं. 71 के युद्ध में भी कुछ ऐसा ही हुआ. करीब बीस दिन बाद पेडोंगी वापस अपनी यूनिट लौट आया. यानि एलओसी पारकर पाकिस्तान से भारत में पहुंच चुका था, लेकिन जब वो लौटा तो अकेला नहीं था. उसकी पीठ पर एक पाकिस्तानी एमएमजी यानि मीडियम मशीन गन और दो एम्युनिशेन बॉक्स भी थी. उसकी थकान को देखकर उसके हैंडलर्स (वो सैनिक जो इन खच्चरों की देखभाल करते हैं) को समझते देर नहीं लगी कि वो कम से कम बीस किलोमीटर चलकर भारतीय सीमा में लौटा है.
पेडोंगी कि इस कर्तव्यपरायणता और वफादरी को देखते हुए सेना ने उसे वीर चक्र से नवाजा. इसके मायने ये हुए कि इसके बाद पेडोंगी को कोई भार नहीं उठाना पड़ा और उसे बेंगलुरू स्थित एएससी रेजीमेंटल सेंटर भेज दिया गया, लेकिन सात साल बाद (1978) में उसकी मौत हो गई. करीब 16 साल तक उसने भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दी थी (1962-78). पेडोंगी कि मौत को भले ही 40 साल से ज्यादा हो गए हों, लेकिन उसकी फोटो और मेडल आज भी बेंगलुरु स्थित एएससी सेंटर में रखा हुआ है. रेजीमेंटल सेंटर की एक लाउंज तक उसके नाम पर है.
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