नई दिल्ली: चीन की बहुचर्चित और विवादित बीआरआई परियोजना की काट के तौर पर सुझाई गई बी3डबल्यू योजना में भारत ने भी दिलचस्पी दिखाई है. ब्रिटेन की अगुवाई में हुई जी-7 शिखर बैठक में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की तरफ से प्रस्तावित बिल्ड बैक बैटर वर्ल्ड योजना में शिरकत की संभावना पर भारत ने सकारात्मक संकेत दिए हैं. 


जी-7 शिखर बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी के बाद विदेश मंत्रालय ने लोकतांत्रिक और आर्थिक रूप से अहम देशों के इस साझा प्रयास के बारे में पूछे जाने पर कहा कि भारत के संबंधित विभाग इसकी संभावनाओं को सक्रियता से देखेंगे. मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव पी हरीश ने बताया कि जी-7 शिखर बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि लोकतांत्रिक देशों को यह दर्शाना चाहिए कि परियोजना क्रियान्वयन में उनकी बेहतर क्षमताएं हैं. अपने देश में ही नहीं अन्य देशों में भी वो विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित कर सकते हैं. 


विदेश मंत्रालय के अनुसार जी-7 के मंच पर पीएम मोदी ने केवल पड़ोसी देशों बल्कि अफ्रीकी मुल्कों में भारतीय विकास परियोजनाओं के अनुभवों का उल्लेख किया. साथ ही इस बात पर भी जोर दिया कि भारत अधिक सक्रिय योगदान करने को तैयार है. एक प्रेस कांफ्रेंस में अतिरिक्त सचिव पी हरीश ने कहा कि बी3डबल्यू के प्रस्ताव पर हम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि भारत की संबंधित विकास एजेंसियां इसका अध्ययन कर भागीदारी की संभावनाओं को देखेंगी. 


ध्यान रहे कि राष्ट्रपति जो बाइडन ने जी7 शिखर बैठक में बिल्ड बैक बैटर वर्ल्ड के साथ एक व्यापक परियोजना का प्रस्ताव रखा. इस प्रस्ताव पर शिखर बैठक में ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली समेत लोकतांत्रिक देशों के समूह ने सहमति जताई. करीब 40 ट्रिलियन डॉलर की इस परियोजना के सहारे विकासशील देशों और अल्प विकसित देशों में विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जाएगा. अमेरिका सरकार के अनुसार इस मैगा परियोजना को साझा मूल्यों, उच्च गुणवत्ता के साथ और पारदर्शी तरीके से ढांचागत विकास जरूरतों के लिए मदद मुहैया कराएगी. 


व्हाइट हाउस की तरफ से जारी बयान के मुताबिक यह योजना चीन की तरफ से उभरती रणनीतिक चुनौती से मुकाबले और न्यून व मध्यम आय वाले देशों में विकास निर्माण जरूरतों को पूरा करने में ठोस सहायता मुहैया कराएगी. 


गौरतलब है कि चीन अब तक अरबों डॉलर की अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना के जरिए 100 से अधिक देशों में पैर पसार चुका है. वहीं कई देशों में चीनी कर्ज, वित्तपोषण और परियोजना क्रियान्वयन के अपारदर्शी तौर-तरीकों को लेकर उसके कथित साझेदार देशों में भी लोगों का विरोध सामने आया है. बीते कुछ सालों के दौरान कई देशों में चीन प्रायोजित परियोजनाओं के कारण कई मुल्कों में सत्ताएं भी बदली हैं. 


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