Survey On Partition: भारत-पाकिस्‍तान के बंटवारे के सात दशक के बाद भी ज्यादातर भारतीय चाहते हैं कि दोनों देश एक हो जाए. ये बात एक सर्वे में सामने आई है. सर्वे से पता चला है कि आज भी विभाजन (Partition) के 75 साल बाद 44 फीसदी लोग चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान (India-Pakistan) एक हो जाएं. सर्वे में 1947 के विभाजन के बाद भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिकों से राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर कई सवाल किए गए.  


सर्वे के दौरान लगभग 14 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि पाकिस्तानी सरकार पर भरोसा किया जा सकता है, जबकि 60 प्रतिशत ने बांग्लादेश को भरोसेमंद माना. सेंटर फॉर वोटिंग ओपिनियन एंड ट्रेंड्स इन इलेक्शन रिसर्च (सीवोटर) और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के इस सर्वे में लोगों ने अपनी कई बातें सामने रखी.  


15 भाषाओं में किया गया सर्वे 


यह सर्वे मई और सितंबर के बीच 15 भाषाओं में किया गया, जिसकी पहली रिपोर्ट पिछले महीने जारी गई. इसमें 5,815 भारतीयों की प्रतिक्रियाएं शामिल हैं. इसमें भारत की आर्थिक संभावनाओं, देश के रोजगार पर नागरिकों का क्या कहना है इसपर भी सवाल किए गए. 


'पिछले 10 सालों में मजबूत हुआ लोकतंत्र'


भारत में लोकतंत्र के बारे में पूछे जाने पर पाया गया कि 48 प्रतिशत नागरिकों का मानना ​​है कि यह पिछले 10 सालों में मजबूत हुआ है. लगभग 51 प्रतिशत ने यह भी माना कि भारत निरंकुश शासन के करीब नहीं है. वहीं, लगभग 31 प्रतिशत लोगों ने कहा कि देश निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है. 


विभाजन पर क्या रही लोगों की राय 


विभाजन को लेकर जब सवाल किए गए तो लगभग 46 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि भारत और पाकिस्तान का विभाजन उस समय सही फैसला था. 44 प्रतिशत ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के विभाजन का समर्थन किया. हालांकि, सर्वे में कहा गया है कि पश्चिमी भारत, जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और गोवा शामिल हैं, यहां के लोग विभाजन के आलोचक बने रहे. उन्होंने माना की इंडिया-पाकिस्‍तान को अब एक हो जाना चाहिए. 


बुनियादी ढांचे पर प्रगति


जब रहने की स्थिति, सड़कों की स्थिति, पानी की गुणवत्ता और भारत में रोजगार को लेकर सवाल किए गए तो 79 प्रतिशत लोगों ने इसे बेहतर बताया. हालांकि, दक्षिण भारत थोड़ा असहमत था. इस क्षेत्र के केवल 28 प्रतिशत लोगों ने बुनियादी ढांचे पर प्रगति को अपेक्षा से बेहतर पाया. 


आर्थिक संभावनाएं


जब देश की आर्थिक संभावनाओं की बात आई, तो सर्वेक्षण में अधिकांश भारतीयों को आशावादी पाया गया. औसतन, लगभग एक तिहाई उत्तरदाताओं ने सहमति व्यक्त की कि कुछ सालों में भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. वहीं, लगभग 26 प्रतिशत ने इसके और खराब होने का अनुमान लगाया. 


लिंग असमानता (Gender Inequality)


सर्वे में यह आंकलन करने की भी कोशिश की गई कि लिंग मानदंडों (Gender Norms) ने देश की अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित किया. लगभग 62 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके घरों में महिलाओं को नौकरी करने, राजनीतिक बैठकों में भाग लेने या अपनी पसंद के कपड़े पहनने के लिए अनुमति की जरूरत होती है. 


यह भी पाया गया कि 51 प्रतिशत शहरी महिलाओं को अपने घरों से बाहर काम करने के लिए अपने परिवारों से अनुमति की जरूरत थी, जबकि ग्रामीण भारत में रहने वालों के लिए यह आंकड़ा 65 प्रतिशत था. जब राजनीति की बात आई तो 61 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने कभी किसी रैली या अभियान में हिस्सा नहीं लिया. 


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