12 साल में बढ़ जाएगी महिलाओं की हिस्सेदारी, 2036 तक कितनी होगी भारत की आबादी, जानें
रिपोर्ट के अनुसार अगले 12 सालों में 15 साल से कम उम्र वालों की जनसंख्या में 2011 के मुकाबले कमी देखी जा सकती है, जिसका कारण फर्टिलिटी रेट में कमी आना हो सकता है.
भारत की आबादी अगले 12 साल में बढ़कर डेढ़ सौ करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगी. सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सोमवार (12 अगस्त, 2024) को डेटा जारी कर बताया कि आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी और 2011 के मुकाबले यह बढ़कर 48.8 फीसदी हो जाएगी. रिपोर्ट से एक अच्छी बात यह भी सामने आई है कि साल 2011 के मुकाबले 2036 तक सेक्स रेशो बेहतर होगा. 2011 में लिंगानुपात 943 था, जो 2036 तक 952 पर पहुंच जाएगा.
भारत में लिंगानुपात 2011 में प्रति एक हजार पुरुषों पर 943 महिलाएं थीं और साल 2036 तक यह बढ़कर प्रति 1000 पुरुषों पर 952 महिलाएं होने की उम्मीद है. सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 'भारत में महिला एवं पुरुष 2023' के नाम से यह रिपोर्ट जारी की है. रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि 2036 में भारत की जनसंख्या में 2011 के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक होने की संभावना है.
रिपोर्ट के मुताबिक, सेक्स रेशो में बेहतरी होना लैंगिक समानता में सकारात्मक चलन को दिखाता है. 2011 में देश की कुल आबादी में से 48.5 फीसदी महिलाएं थीं, जिसमें अगले 12 सालों में 0.3 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 48.8 फीसदी होने का अनुमान है. रिपोर्ट में बताया गया कि 2036 तक दिल्ली की आबादी का आंकड़ा 2.65 करोड़ पर पहुंच जाएगा, जिनमें से 1,25,89,000 महिलाएं और 1,40,02,000 पुरुष होंगे. 2011 में दिल्ली की1,67,87,941 आबादी में से 78,00615 महिलाएं और 89,87,326 पुरुषों की आबादी थी.
रिपोर्ट में बताया गया कि 15 साल से कम उम्र वालों की जनसंख्या में 2011 के मुकाबले 2036 में कमी देखी जा सकती है, जिसका कारण प्रजनन दर में कमी आना हो सकता है. वहीं, इस अवधि में 60 साल और उससे ज्यादा आयु वालों की जनसंख्या के अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया गया है. फर्टिलिटी रेट को लेकर रिपोर्ट में कहा गया कि 2016 से 2020 के बीच 20-24 और 25-29 आयु वर्ग में आयु विशिष्ट प्रजनन दर (ASFR) 135.4 और 166.0 से घटकर 113.6 और 139.6 रह गई है. इस दौरान 35-39 वर्ष की आयु के लिए एएसएफआर 32.7 से बढ़कर 35.6 हो गया है. यह दिखाता है कि महिलाओं लाइफ में अच्छे सैटल होने के बाद ही परिवार बढ़ाने पर ध्यान दे रही हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में जो कम पढ़ी लिखी युवा महिलाओं में फर्टिलिटी रेट 33.9 था, जबकि पढ़ी लिखी महिलाओं में यह 11.0 थी. आयु आधारित प्रजनन दर को एक विशिष्ट आयु वर्ग की महिलाओं में उस आयु वर्ग की प्रति हजार महिला जनसंख्या पर जन्मे एवं जीवित बच्चों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है. रिपोर्ट में बताया गया कि मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के संकेतकों में से एक है और इसे 2030 तक 70 तक लाने का लक्ष्य रखा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के निरंतर प्रयासों के कारण, भारत ने समय रहते एमएमआर (2018-20 में 97/लाख जीवित जन्म) को कम करने का मील का पत्थर सफलतापूर्वक हासिल कर लिया है और एसडीजी लक्ष्य को भी हासिल करना संभव होना चाहिए. किसी साल में प्रति 100,000 जन्म पर गर्भावस्था या प्रसव संबंधी जटिलताओं के परिणामस्वरूप मरने वाली महिलाओं की संख्या को MMR कहते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में लड़का और लड़की दोनों में शिशु मृत्यु दर (IMR) में कमी आई है. आईएमआर हमेशा लड़कों की तुलना में लड़कियों की अधिक रही है, लेकिन 2020 में दोनों में समान आंकड़ा देखा गया है. यह उस समय समय दोनों में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 28 शिशुओं पर था. पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर के आंकड़ों से पता चलता है कि यह 2015 में 43 थी, जो 2020 में 32 रह गई है. यही स्थिति लड़के और लड़कियों दोनों के लिए है और लड़के और लड़कियों के बीच का अंतर भी कम हो गया है.
यह भी पढ़ें:-
'ISIS और तालिबान की तरह...', बांग्लादेश हिंसा पर RSS नेता इंद्रेश कुमार ने विपक्ष की चुप्पी पर उठाए सवाल