नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता संभालते ही भारत ने आतंकवाद के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस की अपनी नीति पर तेवर और कलेवर साफ कर दिए हैं. भारत ने सभी देशों से जहां आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने को कहा है, वहीं नाम लिए बिना चीन और पाकिस्तान जैसे मुल्कों को भी आड़े हाथों लिया. इतना ही नहीं यूएन के मंच से भारत ने आतंकवाद के खिलाफ आठ सूत्रीय एजेंडा भी सुझाया है.
यूएन के मंच से भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सुझाया एजेंडा
अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा को आतंकवादी कार्रवाइयों से खतरे पर सुरक्षा परिषद में मंगलवार को आयेजित बहस में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंन कहा कि हाल के दिनों में आतंकी हमलों का खतरा बढ़ा है. उन्होंने बीते कुछ बरसों में आतंकी गुटों, लोन वुल्फ हमलावरों के ड्रोन तकनीक, एकन्क्रिप्टेड संचार व वर्चुअल करेंसी जैसे साधनों तक पहुंच का हवाला दिया. उन्होंने ये भी बताया सोशल मीडिया नेटवर्क की मदद से कट्टरपंथी विचारधारा और युवाओं को जोड़ने की हरकतें भी बढ़ी हैं. कोविड-19 महामारी ने हालात को और मुश्किल ही बनाया है. ऐसे में आतंकवादियों की आर्थिक रसद बंद करना, उनके संसाधन कम करना आतंकी घटनाओं की रोकथाम के अहम उपाय हैं.
विदेशमंत्री ने नाम लिए बिना कहा कि कुछ देशों के पास आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने के प्रभावी उपाय नहीं होते हैं. लेकिन कई ऐसे भी देश हैं जो आतंकियों की मदद करने और उन्हें पनाह देने के लिए खुले तौर पर दोषी हैं. यह मुल्क आतंकियों को खुलकर आर्थिक मदद और सहायता मुहैया करा रहे हैं. लिहाज़ा कमज़ोर मुल्कों की क्षमता बढ़ाने में मदद की जानी चाहिए. जानबूझकर आतंकवादियों की मदद करने वाले देशों को जवाबदेह बनाने के लिए सबको मिलकर आगे आना होगा. भारत की तरफ से आतंकवाद के लिए विदेश मंत्री ने 8 सूत्रीय एजेंडा पेश किया. जयशंकर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आतंक के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के लिए संयुक्त राष्ट्र तंत्र को ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है.
विदेश मंत्री ने नाम लिए बिना चीन, पाकिस्तान को लताड़ा
आतंकवाद की चुनौती के खिलाफ सबसे पहले सभी देशों को उचित राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखानी होगी. जिससे न तो आतंकियों का कोई बचाव हो और न ही उनका कहीं महिमामंडन. बैठक में भारत ने साफ किया कि आतंकवाद के खिलाफ दोहरा रवैया नहीं रखा जा सकता. आतंकियों की मदद करने वाले भी बराबर के दोषी हैं. नाम लिए बिना जयशंकर ने चीन की करतूतों पर भी तंज किया. विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवादियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की यूएन प्रक्रिया में भी सुधार करने की ज़रूरत है. प्रतिबंध के प्रस्तावों पर बिना वजह अड़ंगा लगाने और बाधित करने की प्रथा बंद होनी चाहिए. साथ ही यह भी ज़रूरी है कि व्यक्तियों के नाम प्रतिबंधित सूची में डालने या हटाने की प्रक्रिया तार्किक आधार पर हो न कि धार्मिक या राजनीतिक कारणों पर.
ध्यान रहे कि चीन ने कई आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले जैश-ए-मुहम्मद जैसे संगठन के सरगना मसूद अजहर का नाम यूएन प्रतिबंधित सूची में डाले जाने की कवायदों पर काफी दिन अड़ंगा लगाए रखा था. बाद में भारत के साथ अधिकतर पी-5 मुल्कों और सुरक्षा परिषद के ज़्यादातर सदस्यों का समर्थन देख चीन को अपना विरोध वापस लेना पड़ा था. दाऊद इब्राहिम की डी-कम्पनी जैसे संगठित गिरोहों का मुद्दा भी भारत ने एक बार फिर उठाया. विदेश मंत्री ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के लिए ज़रूरी है कि अंतरराष्ट्रीय रूप से सक्रिय संगठित आपराधिक गोरोहों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. भारत ने यह देखा है कि 1993 के मुंबई बम धमाकों जैसे अपराधों में शामिल लोगों को न केवल पनाह दी गई बल्कि उनका 5 सितारा सत्कार भी किया जाता रहा है.
भारत ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स के तहत मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग के विरुद्ध कार्रवाई की कवायद मज़बूत करने की हिमायत की. साथ ही संयुक्त राष्ट्र आतंकवाद निरोधक उपक्रमों को अधिक ताकतवर बनाने के लिए आर्थिक संसाधन मुहैया कराने पर भी जोर दिया. महत्वपूर्ण है कि भारत 1996 से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को एक बड़े खतरे के तौर पर वैश्विक चुनौती बताता आया है. हालांकि भारत की इस चेतावनी की अहमयित अमेरिका जैसे देश ने भी 2001 में हुए 9/11 के आतंकी हमले के बाद ही समझी. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से व्यापक आतंकवाद-निरोधक समझौते के अपने आग्रह को भी दोहराया.