नई दिल्ली: कोरोना महामारी के बीच भारत ने रासायनिक और जैविक हथियारों के लिए एक व्यापक और कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रोटोकॉल की अपनी मांग को दोहराया है. जैविक और रासायनिक हथियार संधि की 45वीं सालगिरह के मौके पर भारत ने कहा कि कोविड 19 संकट ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को मजबूत करने और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरत को भी रेखांकित किया है.
विदेश मंत्रालय की तरफ बयान के मुताबिक भारत साल 2021 में होने वाली जैविक-रसायनिक शस्त्र संधि की 9वीं समीक्षा बैठक से पहले इस बात को दोहराता है कि सभी पक्षों को इसका पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए. साथ ही इस संधि की संस्थागत मजबूती भी बढ़ाई जानी चाहिए. महत्वपूर्ण है कि 26 मार्च 1975 से प्रभावी इस संधि पर अधिकतर देशों के हस्ताक्षर तो हैं लेकिन इसमें किसी मुल्क के जैविक हथियारों की निष्पक्ष जांच का कोई प्रावधान नहीं है.
कोविड 19 महामारी के बीच भारत ने वैश्विक आर्थिक और सामाजिक चिंताओं को दूर करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ को मजबूत करने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया है. इस कड़ी में भारत इस संधि में एक अनुपूरक आर्टिकल 7 जोड़ने का भी आग्रह कर रहा है जिसके सहारे जैव-खतरों और जैव-आपात स्थितियों से निपटने में इन प्रावधानों का इस्तेमाल किया जा सके.
बीते 26 मार्च को जी20 नेताओं की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शिखर वार्ता के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बात को उठाया था कि मानवीय सुरक्षा और विकास को केंद्र में रखते हुए वैश्विक नीतियां बनाए जाने की जरूरत है. भारत ने जैविक और रासायनिक हथियार संधि को उभरते वैज्ञानिक और तकनीकी विकास से पैदा चुनौतियों से मुकाबले के लिए मजूबत बनाए जाने की मांग की.
विदेश मंत्रालय के मुताबिक भारत संयुक्त राष्ट्र महासभा में "अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और निरस्त्रीकरण के संदर्भ में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका" पर एक वार्षिक प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा है, जिसे सर्वसम्मति से अपनाया गया है. इतना ही नहीं भारत दुनिया को जैविक और रासायनिक हथियारों के आतंकियों के हाथों में जाने के खतरे से भी आगाह करता रहा है. इस कड़ी में भारत ने 2002 में महासभा की बैठक में एक प्रस्ताव रखा था जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था.