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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

अफगानिस्तान की स्थिति पर भारत-रूस ने जताई चिंता, बिगड़े हालात पर मॉस्को के बाद ताशकंद-दुशांबे में क्षेत्रीय बैठकों का दौर

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरो के साथ मॉस्को में मुलाकात के बाद एक साझा प्रेस कांफ्रेस में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान के ताजा हालात चिंताजनक हैं.

नई दिल्ली: भारत और रूस ने अफगानिस्तान के हालात को लेकर चिंता जताई है. मॉस्को में भारत और रूस के विदेश मंत्रियों की मुलाकात के दौरान चर्चा की मेज पर एक मुद्दा अफगानिस्तान में बढ़ती हुई हिंसा भी था. हालांकि, ईरान और ताजिकिस्तान से सटी अफगान सीमा के बॉर्डर प्वाइंट तालिबानी नियंत्रण में आने के बाद इसका असर अन्य इलाकों में फैलने की आशंका तो है, लेकिन रूस ने साफ कर दिया है कि उसकी भूमिका केवल राजनीतिक प्रक्रिया आगे ले जाने की अपील तक ही सीमित है. 

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरो के साथ मॉस्को में मुलाकात के बाद एक साझा प्रेस कांफ्रेस में विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान के ताजा हालात चिंताजनक हैं. अफगानिस्तान की स्थिति का भारत और रूस पर भी असर पड़ता है. लिहाजा स्वाभाविक तौर पर इस मुद्दे को लेकर काफी देर दोनों पक्षों के बीच बात हुई है. डॉ जयशंकर ने कहा कि तात्कालिक तौर पर जरूरत हिंसा में कमी लाने को लेकर है. साथ ही अगर अफगानिस्तान के भीतर और आस-पास शांति स्थापित करना है तो भारत और रूस को साथ मिलकर प्रयास करने होंगे. क्योंकि अफगानिस्तान का प्रशासनिक प्रबंधन कौन और कैसे करता है उसकी वैधता के भी सवाल हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. 

हालांकि, अफगानिस्तान के अखाड़े में सैन्य दखल कर अपने हाथ जला चुका रूस मौजूदा हालात में काफी फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है. रूस के विदेश मंत्री लावरोव ने साफ किया कि अफगानिस्तान के हालात बड़ी चिंता के हैं. इस बात की आशंका है कि हिंसा का प्रभाव पड़ोसी देशों और रूस के साथी राष्ट्रों पर पड़ सकता है. यह भी सही है कि ईरान और ताजिकिस्तान से लगी सरहदों के बॉर्डर प्वाइंट तालिबान के नियंत्रण में आ चुके हैं. लेकिन रूस इन स्थितियों के बीच कोई कदम नहीं उठाने जा रहा, बल्कि उसकी भूमिका केवल यह अपील करने तक सीमित है कि राजनीतिक प्रक्रिया आगे बढ़ाई जानी चाहिए जिसका अफगानिस्तान के लोगों ने समर्थन किया.  

इस बीच अगला हफ्ता खासा अहम होगा. जब ताशकंद और दुशांबे में अफगानिस्तान और उसके कई पड़ोसी देशों के विदेश मंत्री जमा होंगे. शंघाई सहयोग संगठन की अगले हफ्ते ताजिकिस्तान के दुशांबे में होने वाली विदेश मंत्री स्तर वार्ता में जहां अफगानिस्तान के हालात एक अहम मुद्दा होंगे. वहीं उजबेकिस्तान में दक्षिण और मध्य एशियाई मुल्कों के विदेश मंत्री अफगानिस्तान के हालात पर मंथन करेंगे. इन बैठकों में भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर भी मौजूद होंगे.   

महत्वपूर्ण है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बीच तालिबानी लड़ाके तेजी से अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं. अफगानिस्तान में मची अफरा-तफरी के बीच जहां राजनितिक समाधान की प्रक्रिया अभी उलझी हुई है. वहीं तालिबानी लड़ाके करीब 85 फीसद अफगान इलाके को अपने नियंत्रण में ले चुके हैं. इस दौरान कई मोर्चों पर तो अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों की तरफ से बहुत ज्यादा प्रतिकार भी नहीं हुआ. जानकारों के मुताबिक पहले यह माना जा रहा था कि अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद कम से कम कुछ महीनों तक अफगान नेशनल आर्मी तालिबान को रोक सकेगी. लेकिन अब लगता है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद काबुल की सरकार कुछ हफ्तों के भीतर ही गिर सकती है. इसको लेकर अफगानिस्तान से नजदीकी रखने वाले सभी मुल्कों को चिंताएं हैं.  

दरअसल, तालिबान ने एक सोची समझी रणनीति के तहत अफगानिस्तान के उत्तरी और पश्चिमी इलाकों को कब्जाना शुरु किया. यानी खास तौर पर उन इलाकों में अपनी ताकत बढ़ाई है, जहां 90 के दशक में अफगानिस्तान के अधिकतर इलाकों पर नियंत्रण के बावजूद उनका कब्जा नहीं था. साल 2015 में कुंदूज में तालिबानी नियंत्रण के बाद इस रणनीति के निशान साफ हो गए थे. जाहिर है कि तालिबानी लड़ाके अबकी बार पुरानी गलती न दोहराने और अधिक ताकत के साथ अफगानिस्तान को कब्जाने के लिए तैयार थे. ऐसे में कई जानकारों की राय है कि राजनितिक समझौता एक ऐसा गलियारा था जिसकी तलाश अमेरिका भी कर रहा था. लिहाजा आधे-अधूरे समाधान के साथ जहां अमेरिकी सेनाओं की वापसी हो गई, वहीं अफगानिस्तान के हालात तेजी से बिगड़ने लगे.  

जाहिर है कि अफगानिस्तान के ऐसे हालात भारत जैसे करीबी मुल्क की फिक्र बढ़ाने के लिए काफी हैं. खासकर ऐसे में जबकि अमेरिकी मौजूदगी के दौरान उसने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माओं के लिए न केवल लाखों डॉलर लगाए हैं बल्कि अपने संसाधनों का भी निवेश किया है.  

ऐसे में भारत की रणनीति रूस, ईरान जैसे अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के साथ तालमेल और उनके प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने हितों के लिए बीमा खरीदने की है. पड़ोसी पाकिस्तान और तालिबान की पुरानी साठगांठ और अफगनिस्तान में बीते कुछ दशकों के दौरान चीन के बढ़े असर के बीच भारत के विकल्प सीमित हैं. यही वजह है कि पिछले गलियारों के सहारे तालिबान के साथ भी संपर्कों का सिलसिला शुरू किया है. हालांकि अभी भारत सरकार बेहद सावधानी और हालात का आकलन कर आगे बढ़ रही है. 

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