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भारत-रूस रिश्तों की चादर में आई सिलवटें मिटाने की कोशिश

द्विपक्षीय वार्ता के बाद साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में एबीपी न्यूज़ के सवाल पर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि, जहां तक तालिबान का सवाल है वो अफ़ग़ान समाज का हिस्सा है. ऐसे में अफगानिस्तान के लिए कोई भी समाधान तभी सम्भव है जब उसमें अफगान समाज के सभी धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक वर्गों का प्रतिनिधित्व हो.

नई दिल्ली: बहुत अच्छे दोस्तों के रिश्तों में भी कई बार ऐसे मुद्दे आ जाते हैं, जहां मन तो मिलते हैं, लेकिन मत नहीं. भारत और रूस के विदेश मंत्रियों की नई दिल्ली में हुई मुलाकात के दौरान अफगानिस्तान में चल रही शांति प्रक्रिया ऐसा ही एक मुद्दा नज़र आया. एक तरफ तालिबान को मिल रही तवज्जो को लेकर भारत की चिंताएं और सवाल थे. तो वहीं क्वाड और अमेरिका से भारत की दोस्ती को लेकर उभरती रूस की असहजता भी थी.

ऐसे में रूसी विदेश मंत्री का दिल्ली से सीधा इस्लामाबाद का रुख करना और उनके भारत यात्रा कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का न होना, रिश्तों की चादर के कुछ कोनों पर आई सिलवटों के संकेत देते हैं. सम्भवतः यही वजह थी कि रूसी विदेश मंत्री ने जहां एशियाई इलाके में अमेरिका की बढ़ती साझेदारियों पर चुटकी ली तो वहीं अफगानिस्तान के लिए तालिबान की अहमियत पर भी दो टूक स्विकारोक्ति दी.

अफगानिस्तान पर बरकरार भारतीय चिंताएं

द्विपक्षीय वार्ता के बाद साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में एबीपी न्यूज़ के सवाल पर रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि, जहां तक तालिबान का सवाल है वो अफ़ग़ान समाज का हिस्सा है. ऐसे में अफगानिस्तान के लिए कोई भी समाधान तभी सम्भव है जब उसमें अफगान समाज के सभी धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक वर्गों का प्रतिनिधित्व हो. अन्यथा कोई भी समाधान फॉर्मूला टिकाऊ नहीं हो सकता. साथ ही अफगानिस्तान के सुरक्षा हालात भी इस पर निर्भर करते हैं कि समाधान की प्रक्रिया किस गति और कितने प्रभावी ढंग से लागू की गई है.

ज़ाहिर है लावरोव का यह जवाब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का भरोसा बढ़ाने वाला नहीं था. क्योंकि मॉस्को की अगुवाई में चल रही शांति प्रक्रिया को लेकर भारत के मन में स्वाभाविक आशंकाएं हैं कि कट्टरपंथी तालिबान के आने से हालात में स्थायित्व कैसे आएगा? साथ ही भारत की चिंताएं इस बात को लेकर भी हैं कि पाकिस्तान से गहरे ताल्लुकात रखने वाले तालिबान के सत्ता में आने पर अफगानिस्तान में भारत के हितों की हिफाज़त कौन और कैसे कर पाएगा?

हालांकि इन सवालों का कोई ठोस जवाब देने की बजाए लावरोव ने इतना भर कह कि रूस चाहता है, अफगानिस्तान के पड़ोसी ही नहीं बल्कि सभी प्रभावी मुल्क समाधान के लिए सहायक माहौल बनाने में भूमिका निभाएं. इसमें रूस के साथ साथ चीन, ईरान, पाकिस्तान, भारत, मध्य एशिया के देशों और अमेरिका समेत सभी पक्षों की भूमिका है.

दरअसल, अफगानिस्तान को लेकर भारत की चिंताएं मई 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी तेज किए जाने के बाइडन प्रशासन के ऐलान को लेकर हैं. ऐसे में कोशिशें तेज़ हैं कि समाधान का कोई फॉर्मूला तेज़ी से निकाला जाए.

इन कवायदों के बीच भारत की चिंताएं स्वाभाविक हैं और विदेश मंत्री जयशंकर ने इसका इज़हार भी किया. रूसी विदेश मंत्री के साथ साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में जयशंकर ने कहा कि हमने काफी देर अफगानिस्तान के मुद्दे पर बात की. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में जो कुछ भी होता है उसका सीधा संबंध भारत की सुरक्षा से है. ऐसे में ज़रूरी है कि अफगानिस्तान के भीतर और उसके आसपास मौजूद मुल्कों के हितों का सामंजस्य हो. यह शांति और स्थायित्व के लिए ज़रूरी होगा.

लावरोव से नहीं मिले पीएम मोदी

अफगानिस्तान समाधान की सक्रियता कहें या फिर रणनीतिक बिसात का पैंतरा, मगर रूस और पाकिस्तान के बीच नज़दीकी के निशान भी भारत की पेशानी पर चिंता की लकीरें बढाते हैं. लावरोव के नई दिल्ली से सीधे इस्लामाबाद जाने के फैसले ने भी भारत को असहज ही किया है. ऐसे में लावरोव का भारत में करीब 20 घंटे बिताने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बिना मिले जाना असहजता के निशान ही बढ़ाता है. खासकर तब जबकि उनकी यात्रा के एजेंडा में एक मुद्दा दोनों देशों के बीच इस साल के अंत में होने वाली शिखर वार्ता के लिए तैयारी करना हो. यहां तक कि लावरोव ने अपने सार्वजनिक बयान में प्रधानमंत्री मोदी के नाम रूसी राष्ट्रपति पुतिन के सन्देश का भी ज़िक्र किया.

ध्यान रहे कि बीते सात जनवरी 2020 को जब लावरोव भारत आए थे तो बाकायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी उनकी शिष्टाचार भेंट हुई थी. इतना ही नहीं यह एक कूटनीतिक परम्परा सी रही है कि जब भी अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन आदि महत्वपूर्ण देशों के विदेश मंत्री भारत आते हैं तो पीएम के साथ यथासंभव भेंट की रस्म भी शामिल होती है. इस बारे में पूछे जाने पर सरकारी सूत्रों की तरफ से इतना ही कहा गया कि समय की कमी और पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में व्यस्तता के कारण भेंट का वक्त नहीं हो पाया.

रूस से गर्मजोशी दिखाने की जुगत में पाक

इस बीच पाकिस्तान यह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता कि रूस से उसे कितनी तवज्जो मिल रही है. लिहाज़ा पाकिस्तान में रूसी विदेश मंत्री की यात्रा के दौरान न केवल रेड कार्पेट स्वागत इंतज़ाम किए जा रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री इमरान खान भी लावरोव से मिलेंगे.

हालांकि भारतीय खेमे के सूत्रों का कहना है कि पाकिस्तान को लेकर भारत की चिंताओं का मुद्दा विदेश मंत्री लावरोव और जयशंकर की मुलाकात में उठा तो मॉस्को की तरफ से भरोसा ही मिला. सूत्रों के मुताबिक लावरोव ने कहा कि रूस भारत की चिंताओं से वाकिफ है. ऐसे में पाकिस्तान को लेकर उसका सहयोग आतंकवाद निरोधक कार्रवाई से लेकर कुछ सीमित क्षेत्रों तक ही है.

मतभेद मिटाने के नए उपायों पर ज़ोर

बहरहाल, रिश्तों की चादर में नज़र आ रही सिलवटों के बीच यह बात दोनों पक्षों ने कही कि भारत और रूस की साझेदारी खास भी है और विशेषाधिकार वाली भी है. दोनों नेताओं ने आर्थिक क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने के लिए भारत-यूरेशिया मुक्त व्यापार समझौते पर जल्द बात शुरू करने, भारत की पीएलआई योजना में रूसी कम्पनियों को न्यौता देने और उन्नत रूसी सैन्य साजो सामान के भारत में उत्पादन जैसे उपायों पर सहमति जताई. गौरतलब है कि भारत और रूस के बीच बेहद मजबूत सैन्य सहयोग होने के बावजूद दोनों मुल्कों के बीच आपसी व्यावसायिक कारोबार काफी कम है. उसे बढ़ाने के लिए ही दोनों देश एक दूसरे की अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने का रास्ता तलाशने में जुटे हैं. साल 2019 में अपनी रूस यात्रा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने रूस के सुदूर पूर्व इलाके के साथ कारोबार बढ़ाने पर ज़ोर दिया था.

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