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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

कहानी भारत के पहले क्रिसमस केक की...कैसे बना ये और किसने बनाया इसे?

प्लम केक के बगैर क्रिसमस अधूरा सा लगता है. ये इस त्योहार का एक अहम हिस्सा है और दोनों की कहानी भी बेहद पुरानी है, जो एक परंपरा को आगे बढ़ाती है. इसे भारत में सबसे पहले केरल में बनाया गया था.

क्रिसमस आज पूरी दुनिया में मनाया जाता है, लेकिन आज से 140 साल पहले ऐसा नहीं था. भारत में भी लोग इस त्योहार से उतने परिचित नहीं थे. उस वक्त देश में अंग्रेजों का राज था और उनके मुल्क के कई बाशिंदे सोने की चिड़िया कहे जाने वाले हिन्दोस्तान में कारोबार के लिए आया करते थे. एक ऐसे ही स्कॉट कारोबारी को क्रिसमस के मौके पर अपना देश इतना याद आया कि उसने भारतीयों की जीभ को एक नए पकवान का को स्वाद चखाया.

और यहीं से शुरू हुई भारत के पहले क्रिसमस केक की दिलचस्प कहानी. उस वक्त केक बनाने के लिए न तो इतने अत्याधुनिक उपकरण थे और न ही वो खास सामग्री ही आसानी से मुहैया हो पाती थी, जो क्रिसमस केक को तैयार करने के लिए जरूरी थी. बावजूद इसके भारत में क्रिसमस का पहला केक बना और आजतक बनता आ रहा है. 

स्कॉट कारोबारी की बेकरारी

कल्पना कर सकते हैं आप आज से 140 साल पहले एक दूर देश में अपने त्योहार और पकवान की महक महसूस करने के लिए एक शख्स कितना बेताब रहा होगा कि उसने एक नए देश में एक नए पकवान को जन्म दे दिया. उसी की बेकरारी का नतीजा था कि भारत में पहला क्रिसमस केक वजूद में आया. साल था 1883 और महीना था नवंबर का. एक स्कॉट कारोबारी मर्डाक ब्राउन रॉयल बिस्किट फैक्ट्री में क्रिसमस केक बेक करने के लिए पहुंचे थे. ये फैक्ट्री अब दक्षिण भारतीय राज्य केरल में है.

ब्राउन ने फैक्ट्री के मालिक माम्बली बापू से पूछा कि क्या वह उनके लिए क्रिसमस केक बेक करेंगे? ब्राउन स्कॉटलैंड से थे और तटीय राज्य के मालाबार इलाके में बड़े पैमाने पर दालचीनी का बागान चलाते थे. तब ये इलाका ब्रिटिश हुकूमत की एक रियासत का हिस्सा हुआ करता था. शायद ब्राउन को यह पता था कि हिन्दोस्तान में उन्हें क्रिसमस का केक नसीब नहीं होगा. यही सोचकर वो ब्रिटेन से क्रिसमस केक का एक नमूना साथ लाए थे. उन्होंने इसी नमूने से फैक्ट्री के मालिक माम्बली बापू से केक बेक करने को कहा.

ऐसे बना भारत में पहला क्रिसमस केक

स्कॉट कारोबारी मर्डाक ब्राउन ने क्रिसमस केक बनाने से पहले माम्बली बापू को इसके बारे में समझाया. माम्बली बापू केवल ब्रेड और बिस्किट बेक करना जानते थे. उन्होंने ये हुनर बर्मा (वर्तमान म्यांमार) के एक बिस्किट कारखाने में सीखा था. उन्होंने पहले कभी केक नहीं बनाया था. लेकिन माम्बली बापू ने मिस्टर ब्राउन के बताए तरीके से केक बनाने में हाथ आजमाने का फैसला किया.

और फिर क्या था आनन-फानन में भारत में पहला क्रिसमस केक बनाने की तैयारी शुरू हो गई. रॉयल बिस्किट फैक्ट्री के मालिक माम्बली ने क्रिसमस केक बनाने के इस पहले प्रयोग में ब्रिटेन के केक से कुछ बदलाव किए. आमतौर पर क्रिसमस का प्लम केक बनाने में ब्रांडी का इस्तेमाल होता है. बापू ने ब्रांडी के बजाय काजू एप्पल से बने एक स्थानीय घोल को केक के घोल के साथ मिलाया.

ये काजू के फल का फूला हुआ खाने लायक वो हिस्सा होता है जिससे काजू लटका रहता है. इसका इस्तेमाल कभी-कभी शराब बनाने के लिए किया जाता है. बापू को ब्रांडी की जगह काजू एप्पल के घोल का इस्तेमाल करने का सुझाव भी मिस्टर ब्राउन ने ही दिया था. उन्होंने बापू को इसे नजदीकी फ्रांसीसी कॉलोनी माहे से लाने को कहा था. क्रिसमस केक में ब्रांडी की जगह कैश्यू एप्पल घोल और स्थानीय सामग्रियों के इस्तेमाल का नतीजा एक अनोखे- अनूठे प्लम केक के तौर पर सामने आया.

गोरों को पसंद आया केरल में बना प्लम केक

माम्बली बापू के बने केक का स्वाद जब स्कॉट कारोबारी मर्डाक ब्राउन ने चखा तो इसके शानदार स्वाद से वो हैरान रह गया. वो इतना खुश हुआ कि उसने माम्बली को एक दर्जन केक बनाने के और ऑर्डर दिए. इस तरह से भारत में पहला क्रिसमस केक बनाया गया था. यहीं नहीं उनके बनाए इस केक का स्वाद विदेशियों की जुबां पर ऐसा चढ़ा कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैनिकों को केक और मिठाई भी रॉयल बिस्किट फैक्ट्री से निर्यात की गई. 

माम्बली बापू के भतीजे के पोते प्रकाश माम्बली ने बीबीसी को बताया, "इस कहानी के समर्थन में भले ही कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन माम्बली बापू और उनकी शुरू की गई बेकरी अभी भी तेल्लीचेरी (अब थालास्सेरी) में मजबूत हो रही है. ये अब भारत के क्रिसमस की कहानियों का हिस्सा है." आज रॉयल बिस्किट फैक्ट्री के मालिक माम्बली बापू के वंशजों की चार पीढ़ियों को अपनी इस विरासत पर गर्व है. प्रकाश माम्बली कहते हैं, "उनके परदादा माम्बली बापू ने भारतीयों के बीच ब्रिटिश स्वाद को मशहूर बनाया."

बरकरार है 140 साल पहले का स्वाद

केरल में बाद में माम्बली खानदान ने अलग-अलग नामों से कई आउटलेट खोले जो केक प्रेमियों के लिए पसंदीदा जगह बन गए. थालास्सेरी में परिवार की मूल बेकरी अब प्रकाश माम्बली चलाते हैं. उस वक्त की केरल की परंपरा के मुताबिक प्रकाश के दादा गोपाल माम्बली को बेकरी उनकी मातृसत्तात्मक विरासत के तौर मिली थी.

गोपाल माम्बली के 11 बच्चे थे, जिनमें से सभी इस खानदानी कारोबार से जुड़ गए. थालास्सेरी में छोटा सा आउटलेट है जहां से ये सब शुरू हुआ था. मौजूदा वक्त में अब इसे एक अलग पड़ोस में दूसरी जगह ले जाया गया है. माम्बली बताते हैं ऐसा इसलिए किया गया ताकि ये सभी लोगों की नजर में आ सकें और लोग आसानी से इस तक पहुंच सकें.

60 साल के माम्बली ने बताया, "लेकिन हम केक की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करते. इसे बनाने के लिए हम 140 साल पहले के पारंपरिक तरीकों का सख्ती से पालन करते हैं." वर्षों से क्रिसमस केक बनाने का काम कर रहे माम्बली खानदान ने इस केक में नए स्वाद भी जोड़े हैं.

उनकी बेकरी अब अपने ग्राहकों की जरूरतों के मुताबिक केक की दो दर्जन से अधिक किस्में बनाती हैं. उनकी पत्नी लिजी प्रकाश बताती हैं कि उनके अधिकतर ऑर्डर मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई और कोलकाता जैसे अन्य भारतीय शहरों से आते हैं. वह आगे कहती है, "हम उन्हें कूरियर से उनका पसंदीदा स्वाद भेजते हैं."

केरल क्यों बना केक हब

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि केरल क्रिसमस केक के एक अहम केंद्र के तौर पर उभरा है. इस सूबे की 33 करोड़ की आबादी में 18 फीसदी ईसाई है. राज्य में छोटी-छोटी बेकरी और कैफे हैं जो अपने डिजर्ट के लिए मशहूर हैं. सूबे की बेकर्स एसोसिएशन ने जनवरी 2020 में 5.3 किमी का लंबा केक बनाकर दुनिया के सबसे लंबे केक का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. तब इसने चीन के 3.2 किमी के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था. ये सूबा अब कोविड महामारी के बाद पूरी तरह से शानदार तरीके से क्रिसमस मनाने के लिए तैयार है.

माम्बली बेकरी में भी केक बनाने की तैयारी नवंबर में ही शुरू कर दी गई थी. बेकरी ने शराब में सामग्री भिगोना शुरू कर दिया था. दिसंबर के तीसरे हफ्ते तक केक बनकर तैयार हो गए थे. युवा अधिकतर फ्रेश क्रीम केक पसंद करते हैं, जिनकी शेल्फ लाइफ कम होती है, लेकिन यह क्रिसमस केक मौसमी तौर पर तेजी से चलने वाला आइटम है. माम्बली कहते हैं कि आउटलेट पर बिक्री में तेजी क्रिसमस के पहले सप्ताहांत में शुरू होती है और नए साल तक चलती रहती है.

क्रिसमस और प्लम केक का अटूट रिश्ता

कभी आपने गौर किया कि क्रिसमस पर प्लम केक खाने-खिलाने और उपहार में देने का ही चलन क्यों है. दरअसल इसकी उत्पत्ति ही क्रिसमस के त्योहार से हुई है. प्लम केक क्रिसमस के उत्सव का एक पारंपरिक हिस्सा है और मध्ययुगीन काल से चला आ रहा है. इस केक का नुस्खा लोगों के इस दौरान रखे जाने वाले उपवास और उसके बाद होने वाली बड़ी दावत को देखते हुए सामने आया था. उन दिनों बड़ी मात्रा में सूखे मेवे और जई मसाले और शहद के साथ मिलाकर गाढ़ी और पेट भरने वाली मिठाई बनाई जाती थी.

क्रिसमस के मौके पर लोगों ने पारंपरिक रूप से केक बनाया. इसे बनाने की की तैयारी क्रिसमस की छुट्टी से कम से कम एक महीने पहले शुरू हो जाती है. आमतौर पर इसे बनाने के लिए सूखे मेवे ब्रांडी में भिगोए जाते हैं. केक के बेक हो जाने के बाद इस भीगी हुई सामग्रियों को बैटर में मिलाया जाता है. परंपरागत तौर पर ये केक एक समृद्ध और स्वादिष्ट सुगंध लिए होता है. प्लम केक के स्वाद की तुलना अक्सर दालचीनी से की जाती है.

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