Indus Waters Treaty: भारत की ओर से सिंधु जल संधि की समीक्षा के लिए पाकिस्तान को औपचारिक नोटिस दिए जाने के कुछ दिनों बाद इस्लामाबाद ने गुरुवार (19 सितंबर 2024) को कहा कि वह इस समझौते को महत्वपूर्ण” मानता है और उम्मीद करता है कि नई दिल्ली भी 64 साल पहले हस्ताक्षरित इस द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों का पालन करेगा.


नई दिल्ली में बुधवार (18 सितंबर 2024) को सरकारी सूत्रों ने कहा कि भारत ने 30 अगस्त को पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजकर 64 साल पुराने समझौते की समीक्षा की मांग की थी, जिसमें उसने परिस्थितियों में मौलिक और अप्रत्याशित बदलावों और सीमा पार से लगातार जारी आतंकवाद के प्रभाव का हवाला दिया था.


पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय का बयान


भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की वार्ता के बाद 19 सितंबर 1960 को सिंधु जल संधि (आईडब्लूटी) पर हस्ताक्षर किये थे, जिसका एकमात्र उद्देश्य सीमा पार की छह नदियों का प्रबंधन करना था. सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच प्रमुख समझौतों में से एक है, जो समय की कसौटी पर खरा उतरा है और दोनों पड़ोसियों के बीच युद्धों और तनावों के बावजूद इसका पालन किया गया है.  


भारत के नोटिस पर एक सवाल का जवाब देते हुए विदेश कार्यालय की प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने कहा, “पाकिस्तान सिंधु जल संधि को महत्वपूर्ण मानता है और उम्मीद करता है कि भारत भी इसके प्रावधानों का पालन करेगा.” जहरा बलूच ने बताया कि दोनों देशों के बीच सिंधु जल आयुक्तों का एक तंत्र है और संधि से जुड़े सभी मुद्दों पर इसमें चर्चा की जा सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि संधि से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए कोई भी कदम समझौते के प्रावधानों के तहत ही उठाया जाना चाहिए.  


पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों, चिनाब, झेलम और सिंधु से संपूर्ण जल प्राप्त होता है, जबकि भारत का सतलुज, व्यास और रावी नदियों पर पूर्ण अधिकार है. संधि के प्रावधानों के अनुसार, 207.2 अरब घन मीटर की कुल आपूर्ति में से, तीन आवंटित नदियों से भारत का हिस्सा 40.7 अरब घन मीटर या लगभग 20 फीसदी है, जबकि पाकिस्तान को 80 फीसदी मिलता है.


भारत ने क्यों की समीक्षा की मांग?


नई दिल्ली में सूत्रों के मुताबिक, भारत की चिंताओं में से महत्वपूर्ण हैं जनसंख्या में परिवर्तन, पर्यावरणीय मुद्दे और भारत के उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए स्वच्छ ऊर्जा के विकास में तेजी लाने की आवश्यकता. भारत ने अपनी सीमा पर कई जलविद्युत परियोजनाओं की योजना बनाई है. भारत ने समीक्षा की मांग के पीछे एक कारण सीमापार से लगातार जारी आतंकवाद का प्रभाव भी बताया है. डेढ़ साल में यह दूसरी बार है जब भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है.  


पिछले साल जनवरी में भारत ने पाकिस्तान को पहला नोटिस जारी कर संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की थी, क्योंकि इस्लामाबाद कुछ विवादों को निपटाने में अड़ियल रवैया अपना रहा था. भारत ने पिछला नोटिस इसलिए जारी किया था, क्योंकि वह मध्यस्थता कोर्ट की नियुक्ति से विशेष रूप से निराश था.


भारत के कदम से घुटनों पर आया पाकिस्तान


विश्व बैंक की ओर से जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जल विद्युत परियोजनाओं पर मतभेदों को सुलझाने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता कोर्ट के अध्यक्ष की नियुक्ति की घोषणा के कुछ महीने बाद नई दिल्ली ने यह महत्वपूर्ण कदम उठाया है. भारत ने पिछला नोटिस इसलिए जारी किया था क्योंकि वह मध्यस्थता न्यायालय की नियुक्ति से विशेष रूप से निराश था.


सिंधु नदी को पाकिस्तान की जीवन रेखा माना जाता है, क्योंकि उत्तर से दक्षिण तक जहां यह अरब सागर से मिलती है, लगभग 90 फीसदी जल सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि विदेश कार्यालय के प्रवक्ता की प्रतिक्रिया से पता चलता है कि पाकिस्तान उस समझौते में संशोधन में रुचि नहीं रखता है, जिसके तहत दोनों देशों के बीच जल बंटवारे के जटिल मुद्दे का समाधान किया गया था.


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