भारत ने शुरू किया सैन्य साजों सामान का निर्यात
नई दिल्ली: भारत को दुनिया को सबसे बड़े हथियारों के आयातक यानि इंपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. लेकिन भारत ने अब सेना के साजों सामान का एक्सपोर्ट यानि निर्यात करना शुरू कर दिया है. पहली बार भारत अब म्यामांर को युद्धपोत में इस्तेमाल होने वाले सोनार सिस्टम देने जा रहा है. इस बारे में शुक्रवार को डीआरडीओ ने रक्षा मंत्री अरूण जेटली को म्यांमार के साथ हुए समझौते की कॉपी सौंपी.
भारत तीन सोनार सिस्टम म्यांमार को दे रहा है, जिनकी कुल कीमत करीब 180 करोड़ है. म्यांमार इन सोनार को अपने उंग-ज़ेया क्लास के वॉरशिप के लिए भारत से खरीद रहा है. भारत म्यांमार को डीआरडीओ द्वारा निर्मित डायरेक्ट गियर सोनार-एैरे दे रहा है. ये सोनार युद्धपोत के निचले हिस्सों में लगाया जाता है. ये सोनार समंदर में दुश्मन के युद्धपोत, पनडुब्बी और टोरपीडो का पता लगाने में कारगर साबित होता है. ये दुश्मन के युद्धपोत, पनडुब्बी और टोरपीडो की साउंड यानि आवाज से ही पता लगा लेती है. जिससे समय रहते उन्हें युद्धपोत के करीब आने से पहले ही खत्म किया जा सकता है.
डीआरडीओ ने इन एैरे-सोनार का उत्पादन शुरू कर दिया है. शुक्रवार को रक्षा मंत्री अरूण जेटली ने इस सोनार सिस्टम को नौसेना के हवाले कर दिया. नौसेना कुल दस सिस्टम डीआरडीओ से खरीद रहा है.
शुक्रवार को डीआरडीओ भवन में हुए एक समारोह में रक्षा मंत्री ने भारत में तैयार हुए 'ऊषस-2' सोनार सिस्टम को नौसेना प्रमुख अनुपल सुनी लांबा को सौंपी. ये सोनार सिस्टम पनडुब्बियों में लगाया जाता है. हाल ही में आई हिंदी फिल्म, 'द गाज़ी अटैक' में यह दिखाया गया था कि किस तरह से सोनार की मदद से भारतीय पनडुब्बी पाकिस्तान की गाज़ी नाम की सबमोरिन का पता लगाकर समंदर के नीचे ही मार गिराती है.
इसके अलावा डीआरडीओ ने युद्धपोतों के नेवीगेशन-सिस्टम बनाने का गौरव भी प्राप्त कर लिया है. अभी तक इस तकनीक को मात्र चार देश ही बनाते थे. बाकी सभी देश इन चार देशों से अपने समुद्री जहाजों को चलाने के लिए इन चार देशों पर ही निर्भर रहते थे. ये चार देश हैं अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस और इजरायल हैं. भारत पांचवा ऐसा देश है जिसने ये 'इनर्शियल नेवीगेशन सिस्टम फॉर शिप एप्लीकेशन' यानि आईएनएसए बनाने की महारत हासिल की है.
इसके अलावा डीआरडीओ द्वारा डिजायन किए गए टोरपीडो का एक्सपोर्ट का करार भी म्यांमार से किया गया है. इस समझौते की कीमत 37.90 मिलियन डॉलर है. ये टोरपीडो एलएंडटी और बीडीएल मिलकर म्यांमार को लिए तैयार करेंगे.