बड़ा फैसला: करतारपुर साहिब कॉरिडोर बनाने की गुजारिश करेगी मोदी सरकार, सिद्धू ने पाक दौरे पर उठाया था मुद्दा
नवजोत सिंह सिद्धू जब इमरान खान के शपथ ग्रहण में गए थे तो उन्होंने इसका जिक्र किया था. शपथ ग्रहण समारोह में पाक सेना प्रमुख जनरल बाजवा के गले मिलने पर सिद्धू की आलोचना भी हुई थी. इस पर सफाई देते हुए सिद्धू ने कहा था कि जनरल बाजवा से करतापुर कॉरीडोर को लेकर चर्चा हुई, मैं भावुक हो गया और उन्हें गले लगा लिया.
नई दिल्ली: केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में आज मोदी सरकार ने बड़ा फैसला किया है. सरकार करतारपुर साहिब तक कॉरिडोर बनाने के लिए पाकिस्तान सरकार से आग्रह करेगी. इसके साथ ही 2019 में पूरे देश में गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती मनाने का फैसला भी किया है.
इस बीच सूत्रों के मुताबिक खबर है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान 28 नवंबर को करतापुर कॉरीडोर की नींव रख सकते हैं. आपको याद दिला दें कि नवजोत सिद्धू जब पाकिस्तान गए थे तो उन्होंने इसका जिक्र किया था.
फैसले की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ''यहां बहुत से श्रद्धांलु आते हैं और भारत की सीमा पर खड़े होकर वहां दर्शन करने की सुविधा है. केंद्रीय कैबिनेट ने आज तय किया कि डेरा बाबा नानक जो गुरदासपुर में हैं वहां से लेकर इंटरनेशनल बॉर्डर तक करतापुर कॉरीडोर का निर्माण होगा.''
आपको याद दिला दें कि नवजोत सिंह सिद्धू जब इमरान खान के शपथ ग्रहण में गए थे तो उन्होंने इसका जिक्र किया था. शपथ ग्रहण समारोह में पाक सेना प्रमुख जनरल बाजवा के गले मिलने पर सिद्धू की आलोचना भी हुई थी. इस पर सफाई देते हुए सिद्धू ने कहा था कि जनरल बाजवा से करतापुर कॉरीडोर को लेकर चर्चा हुई, मैं भावुक हो गया और उन्हें गले लगा लिया.
सिद्धू की इस हग डिप्लोमेसी का जमकर विरोध हुआ था. तब इसपर सिद्धू ने कहा था कि बाबा नानक ने मुझे सिर्फ जरिए बानाया, काम उन्हीं का है. अगर मोदी जी मुझे इस बात में शामिल करना चाहते हैं तो मैं जमीन पर लेट कर उनके पास जाने के लिए तैयार हूं. मैं अपनी पगड़ी तक उनके चरणों में रखने के लिए तैयार हूं.
क्यों महत्वपूर्ण है करतारपुर कॉरीडोर? दरबार साहिब सिखों का बहुत बड़ा धार्मिक तीर्थ स्थल है. गुरुनानक देव ने अपने जीवन के आखिरी 15 साल यहीं बिताए और 1539 में आखिरी सांस यहीं ली. गुरुनानाक देव ने करतारपुर में सिख धर्म की स्थापना की थी.
1974 के समझौते में नहीं है करतारपुर साहिब बता दें कि भारत और पाकिस्तान के बीच धार्मिक स्थानों पर तीर्थयात्राओं को सहूलियत देने का एक समझौता सितंबर 1974 में हुआ था. इसके तहत दोनों देश अपने यहां मौजूद निर्धारित तीर्थस्थलों पर यात्राओं के लिए वीजा देते हैं. इसके तहत हर साल दोनों ओर के पांच-पांच चिह्नित धार्मिक स्थलों की तीर्थ यात्रा के लिए 20 जत्थों या समूहों को इजाजत दी जाती है. इस फेहरिस्त में पाकिस्तान के नारोवाल स्थित करतारपुर साहिब गुरुद्वारा नहीं है. गुरुनानक देव से जुड़े इस गुरुद्वारे को 1974 के प्रोटोकॉल में जगह देने की मांग उठती रही है. पंजाब सरकार इस बारे में विदेश मंत्रालय को पहले भी पत्र भी लिखती रही है.
लंबे समय से हो रही है मांग लोग भी दोनों देशों के बीच गुरुद्वारे तक एक सुरक्षित गलियारा बनाने की मांग करते रहें हैं ताकि सिख धर्मावलंबी बिना पासपोर्ट या वीजा के इस गुरुद्वारे में दर्शन और पूजा कर सकें. विदेश मंत्रालय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने भी बीते साल भारत-पाक संबंधों पर पेश अपनी रिपोर्ट में 2019 में गुरुनानक देव के 550वें प्रकाश पर्व से पहले करतारपुर साहिब गुरुद्वारे को खोलने के लिए प्रयास किए जाने पर जोर दिया था.