नई दिल्ली: कश्मीर से धारा 370 समाप्त किए जाने और राज्य को जम्मू कश्मीर और लद्दाख नाम के 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के फैसले के बाद से पाकिस्तान बौखला गया है. रोजाना पाकिस्तान की ओर से भारत के विरुद्ध जंग जैसी धमकियां दी जा रही हैं. भारत जहां कूटनीतिक और सेना के मोर्चे पर पाकिस्तान पर शिकंजा कस रहा है. वहीं अपने हक के पानी का पूरा इस्तेमाल कर उसे पाकिस्तान जाने से रोकने का भी इंतजाम कर रहा है.


तीन परियोजनाओं पर काम कर रहा है भारत


पाकिस्तान पर शिकंजा कसने के लिए भारत अब अपने एक और हथियार का इस्तेमाल कर रहा है. सिंधु नदी जल समझौता के तहत भारत के हिस्से में आई तीन नदियों के पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए भारत ने अब तेजी से काम करने का फैसला किया है. इसके लिए फिलहाल 3 बांध परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ है.


पहली परियोजना शाहपुर कंडी बांध परियोजना है. परियोजना के पूरा होने पर रावी नदी पर बने रणजीत सागर डैम से छोड़े गए पानी का पूरा इस्तेमाल हो सकेगा. रणजीत सागर डैम पठानकोट के पास पंजाब और जम्मू कश्मीर के बॉर्डर पर बनी एक जल बिजली परियोजना है. अभी तक परियोजना द्वारा बिजली उत्पादन के बाद छोड़ा गया पानी बिना उपयोग हुए सीधा पाकिस्तान चला जाता है. लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा. शाहपुर कंडी परियोजना पूरी होने के बाद रणजीत सागर डैम से छोड़े गए पानी का इस्तेमाल 206 मेगावाट बिजली के उत्पादन और पंजाब के 37000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई के काम में हो सकेगा. परियोजना , जिसपर लगभग 2750 करोड़ रुपए खर्च होंगे, का काम 2016 तक पूरा हो जाना था लेकिन पंजाब और जम्मू कश्मीर के बीच कुछ तकनीकी विवाद के चलते इसे रोक देना पड़ा था. अब इस परियोजना पर फिर से काम शुरू किया गया है जिसे अगले 4 सालों में पूरा कर लिया जाएगा.


भारत ने जिन परियोजनाओं पर काम करना शुरू किया है उनमें उझ बहुउद्देश्यीय बांध परियोजना सबसे अहम है. जम्मू कश्मीर के कठुआ ज़िले में बनाई जाने वाली ये परियोजना उझ नदी पर बनाई जाएगी जो रावी नदी की एक सहायक नदी है. क़रीब 6000 करोड़ रूपए की लागत से बनने वाली इस योजना से क़रीब 78 करोड़ क्युबिक मीटर पानी के भंडारण का इंतज़ाम हो पाएगा. परियोजना के 6 साल में पूरा होने की उम्मीद है और इससे जम्मू कश्मीर के कठुआ , सांबा और हीरानगर ज़िले की 31000 हेक्टेयर ज़मीन को सिंचाई की सुविधा मिलने के साथ साथ कठुआ ज़िले में पीने का पानी भी मिल सकेगा.


उझ परियोजना के नीचे रावी - ब्यास के बीच एक और बराज और लिंक नहर बनाए जाने की योजना बन रही है. सरकार की योजना है कि रावी नदी पर एक बराज बनाकर पानी को एक लिंक नहर के ज़रिए ब्यास बेसिन तक पहुंचाया जाए. अबतक रावी नदी पर रणजीत सागर ( थियाम डैम ) डैम होने के बावजूद बहुत मात्रा में पानी उपयोग नहीं हो पाने के कारण पाकिस्तान को चला जाता है. अब इस बराज और लिंक नहर का निर्माण कर क़रीब 5 लाख एकड़ फीट पानी को पाकिस्तान जाने से रोका जा सकेगा. इस परियोजना का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि इसे मोदी सरकार ने राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया है और इसे अगले पांच सालों में पूरा किए जाने का लक्ष्य है.


अभी 90 फ़ीसदी हिस्से का हो रहा है इस्तेमाल


1955 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी जल बंटवारा समझौता हुआ था. समझौते के तहत पाकिस्तान को सिंधु , झेतम और चिनाब नदी के 135 मिलियन एकड़ फीट पानी का अधिकार मिला जबकि भारत को रावी , ब्यास और सतलज नदी के 33 मिलियन एकड़ फीट पानी के इस्तेमाल का अधिकार मिला. हालांकि समझौते के मुताबिक़ पाकिस्तान के हिस्से वाली नदियों के पानी का इस्तेमाल भारत उन कामों के लिए कर सकता है जिसके लिए पानी निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ती हो जैसे पनबिजली परियोजना. वहीं भारत को मिली तीनों नदियों के पानी के इस्तेमाल का पूरा अधिकार भारत के पास है. मतलब ये कि भारत के पास ये अधिकार है कि इन नदियों का पानी वो पूरी तरह से इस्तेमाल कर सके. अबतक मुकम्मल इंतज़ाम नहीं होने के चलते भारत अपने हक़ का क़रीब 90 फ़ीसदी पानी ही इस्तेमाल कर पा रहा है जबकि बाक़ी पानी पाकिस्तान चला जाता है.


उरी हमले के बाद ही सरकार ने बनाई थी योजना


दरअसल 2016 में उरी सैन्य अड्डे पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए कई मोर्चों पर काम करना शुरू किया था. इनमें पाकिस्तान पर कुटनीतिक दबाव , सैन्य विकल्प और आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई को मज़बूत करना शामिल था. पानी के मसले पर पाकिस्तान को घेरने की नयी योजना भी इसी प्रयास का हिस्सा है.


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