नई दिल्ली: कोरोना महामारी से मुकाबले के मोर्चे पर भारत और ब्रिटेन ने मिलकर उन मुल्कों की मदद का फैसला किया है जो व्यापक टीकाकरण की कीमतों के बोझ नहीं उठा सकते. भारत दौरे पर आए ब्रिटिश विदेशमंत्री डोमनिक राब और भारतीय विदेशमंत्री की चर्चा के दौरान ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजनिका-सीरम इंस्टिट्यूट की साझेदारी में बन रहे कोरोना टीकों के इस्तेमाल पर चर्चा भी हुई और सहयोग पर रज़ामंदी भी हुई.
विदेश मंत्री जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता का बाद ब्रिटिश विदेश मंत्री राब ने कहा कि भारत और ब्रिटेन कोरोना टीकों को कमज़ोर आय वाले देशों तक उपलब्ध कराने के लिए सहयोग कर रहे हैं. ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजनिका-सीरम इंस्टिट्यूट की साझेदारी में बन रहे कोविड-19 रोधी टीके के करीब एक अरब डोज़ का अगले साल तक उत्पादन किया जाएगा. साथ ही इस टीके का उन देशों के साथ भी हम साझा करेंगे जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं. ध्यान रहे कि भारत दुनिया में बनने वाले 60 फीसद टीकों का उत्पादक है. लिहाज़ा सभी बड़ी कंपनियां और टीका बनाने वाले देश वैक्सीन के व्यापक उत्पादन के लिए भारत के साथ साझेदारी बनाने में लगे हैं.
इस कड़ी में भारत ने पड़ोसी बांग्लादेश को कोविड टीकों की एक बड़ी खेप उपलब्ध कराने का फैसला किया है. भारतीय कम्पनी सीरम इंस्टिट्यूट ने बांग्लादेश के स्वास्थ्य मंत्रालय और स्थानीय कम्पनी बैक्सीमको के साथ 3 करोड़ टीकों के डोज़ सप्लाई करने के लिए समझौता किया है.
दोनों देशों का विदेशमंत्रियों की मंगलवार को हुई द्विपक्षीय वार्ता में प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार प्रो के विजय राघवन भी मौजूद थे. महत्वपूर्ण है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्रोजनिका-सीरम इंस्टिट्यूट के संयुक्त प्रयास से तैयार वैक्सीन कम दाम वाली और प्रभावी मानी जा रही है. इसके एक डोज़ की अनुमानित लागत करीब 250 रुपये मानी जा रही है.
सूत्रों के अनुसार भारत अपनी लाइन ऑफ क्रेडिट या आर्थिक सहायता का इस्तेमाल कर इस कोविड-रोधी टीके की कुछ खुराक एमरजेंसी इस्तेमाल के लिए भूटान, मालदीव समेत कुछ पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराने पर विचार कर सकता है. बीते दिनों अपनी नेपाल यात्रा के दौरान विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने अपनी नेपाल यात्रा के दौरान नेपाल को भरोसा दिया था कि टीकों की आपूर्ति में उसे प्राथमिकता दी जाएगी.
कोरोना महामारी के इस दौर में सभी देशों को आपात इस्तेमाल के लिए टीकों की ज़रूरत होगी. ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता देश भारत के लिए यह पड़ोसियों की मदद करने और नई वैक्सीन-डिप्लोसी करने का भी अच्छा मौका होगा.
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