भारत-यूके स्ट्रैटेजिक फ्यूचर्स फोरम में भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और ब्रिटेन की विदेश सचिव एलिजाबेथ ट्रस ने यूक्रेन संकट को लेकर चर्चा की. इस दौरान ब्रिटिश विदेश सचिव की तरफ से भारत की जमकर तारीफ की गई. उन्होंने कहा कि, यूक्रेन से छात्रों को निकालने को लेकर वो भारत को ट्रिब्यूट देती हैं. 


एस जयशंकर ने यूक्रेन संकट का किया जिक्र
इस दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूक्रेन-रूस संकट पर कहा कि, हमारे लगभग 22 हजार छात्र भारत की तत्काल चिंता थी, उन्हें सुरक्षित बाहर निकालना काफी चुनौती भरा था. यूक्रेन के बहुत से पड़ोसी देश बेहद मददगार थे. उन्होंने कहा कि, पिछले साल हमने अफगानिस्तान में जो कुछ देखा, उसका जो असर भारत पर पड़ा वो यूरोप के देशों पर नहीं पड़ा. जरूरी नहीं कि लोग तालिबान के आने से उसी तरह संबंधित हों. विदेश मंत्री ने आगे कहा कि, यूक्रेन को लेकर जिस बात पर हम सहमत थे, वह यह थी कि तत्काल युद्धविराम की आवश्यकता है और कूटनीति और संवाद पर लौटने की जरूरत है. 


विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि, पिछले 2-3 साल में कोरोना महामारी एक बड़ा झटका थी, इसके बाद अफगानिस्तान में जो हुआ वो भी एक झटका था, अब यूक्रेन नया झटका है. वहीं अमेरिका और चीन के बीच संबंधों का भी अपना अलग असर है. चीन को लेकर विदेश मंत्री ने कहा कि, लगभग एक सप्ताह पहले चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए थे, हमने यूक्रेन की स्थिति और हमारे आपसी (भारत-चीन) संबंधों पर चर्चा की, जो वास्तव में अच्छे दौर से नहीं गुजर रहे. यूक्रेन में जो हो रहा है, उसे लेकर चीन का अपना विश्लेषण है.


ब्रिटिश विदेश सचिव ने रूस पर बोला हमला
इस बातचीत में शामिल ब्रिटेन की विदेश सचिव एलिजाबेथ ट्रस ने कहा कि, भारत और ब्रिटेन ने यूनिकॉर्न्स की संख्या में दुनिया का नेतृत्व किया. दोनों देशों के लोग टेक इंडस्ट्री में सबसे आगे हैं. दोनों लोकतांत्रिक देश स्वतंत्रता के चाहने वाले हैं और दुनिया का नेतृत्व करने में मदद करते रहेंगे. दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार सौदों को तेजी से पूरा किया जा सकता है.


यूक्रेन संकट पर ब्रिटिश विदेश सचिव ने कहा कि, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में एक चीज साफ थी कि रूस सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है. ब्रिटेन लगातार अमेरिका के साथ मिलकर उस खतरे को उजागर करने का काम कर रहा था जो रूस ने यूक्रेन के साथ किया है. उन्होंने आगे कहा कि, दुनिया भर के देश समझते हैं कि अगर कोई हमलावर एक संप्रभु राष्ट्र पर हमला करके बच निकलता है तो ये एक बड़ी समस्या है. यह समझना कि हमें इस संकट के कारण केवल यूरोप पर ध्यान देना चाहिए, गलत है, इसके परिणाम दूरगामी हैं. 


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