India-US Yudh Abhyas: उत्तराखंड के औली में चल रही भारत और अमेरिका की ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज, युद्धाभ्यास में बुधवार को दोनों देशों की सेनाओं ने माउंटेन वॉरफेयर की ड्रिल की. दरअसल, चीन से सटी एलएसी पर ऐसी कई पर्वत श्रृंखला हैं जहां सड़क मार्ग नहीं है. हाई ऑल्टिट्यूड यानी 9 हजार फीट से ऊपर होने के चलते वहां पैदल ही जाया जा सकता है. इसलिए भारत और अमेरिका के सैनिकों ने रॉकक्राफ्ट का खास तौर से अभ्यास किया.
रॉकक्राफ्ट यानि उंची चट्टानों पर चढ़ने और उतरने की एक खास ड्रिल होती है. 'युद्धाभ्यास' एक्सरसाइज के दौरान औली में बेहद ही उंचाई वाली चट्टानों और पहाड़ों पर चढ़ने के लिए इस खास एक्सरसाइज को किया गया. भारत और अमेरिका के सैनिकों ने खास तौर से रोप यानि रस्सी से चढ़ने और उतरने का अभ्यास किया. रॉकक्राफ्ट एक बेहद ही मुश्किल अभ्यास है. जरा सी गलती से जान जोखिम में पड़ सकती है.
कितनी ऊंचाई पर है गलवान वैली?
भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी 10 हजार से 18 हजार फीट की ऊंचाई से होकर गुजरती है. गलवान घाटी जहां वर्ष 2020 में भारत और चीन की सेनाओं में झड़प हुई थी वो भी करीब14 हजार फीट की ऊंचाई पर है. औली की ऊंचाई करीब 10 हजार फीट है और चीन से सटी एलएसी से महज 90 किलोमीटर की दूरी पर है.
अपने आप में पहली तरह का है युद्धाभ्यास
औली जैसे हाई एल्टीट्यूड एरिया में भारतीय सेना पहली बार किसी मित्र-देश की सेना के साथ मिलिट्री एक्सरसाइज करने जा रही है. इससे पहले तक भारतीय सेना अमेरिकी सेना के साथ सालाना मिलिट्री एक्सरसाइज, युद्धाभ्यास उत्तराखंड के चौबटिया (रानीखेत) या फिर राजस्थान के महाजन फील्ड फायरिंग रेंज (बीकानेर) में करती आई थी. लेकिन रानीखेत की उंचाई करीब छह हजार फीट है. रानीखेत चीन से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (एलएसी) से काफी दूर है जबकि औली की दूरी करीब 90 किलोमीटर है.
ऐसे में भारत और अमेरिका की ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज के जरिए भारत अपनी हाई आल्टिट्यूड मिलिट्री वॉरफेयर की रणनीति अमेरिका से साझा कर रहा है. वहीं अमेरिकी सेना भी अलास्का जैसे बेहद ही सर्द इलाकों में तैनात रहती हैं जहां 12 महीने बर्फ रहती है. ऐसे में अमेरिकी सेना भी अपने हाई ऑल्टिट्यूड स्ट्रेटेजी भारतीय सेना से साझा की.
जंगल-वॉरफेयर ड्रिल का अभ्यास कर रही है सेना
बुधवार को औली में साझा युद्धाभ्यास के दौरान जंगल-वॉरफेयर की ड्रिल को किया गया.क्योंकि चीन से सटी एलएसी के अरूणाचल प्रदेश में बेहद ही घने जंगल हैं.युद्ध के दौरान जंगल में दुश्मन घात लगाकर हमला ना कर दे उसके लिए भारतीय सेना ने अमेरिकी सेना को बुबी-ट्रैप के जरिए दुश्मन पर हमला करने से लेकर टैक्टिकल मूवमेंट से गोलियों की बौछार करने का प्रदर्शन भी किया.
भारत और अमेरिका की सेनाओं के बीच होने वाली सालाना मिलिट्री एक्सरसाइज, 'युद्धाभ्यास' का ये 18वां संस्करण है जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच बढ़ते रक्षा संबंधों के साथ सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों और रणनीतियों का आदान-प्रदान करना है.एक्सरसाइज की शुरूआत 16 नबम्बर को हुई थी और 2 दिसम्बर को क्लोजिंग सेरेमनी है.भारत और अमेरिका की ज्वाइंट एक्यरसाइज को 'युद्धाभ्यास' नाम दिया जाता है.
किन परिस्थतियों में हो रहा है यह युद्धाभ्यास?
भारत और अमेरिका के बीच युद्धाभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जब पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर भारत और चीन के बीच पिछले 30 महीने से तनातनी जारी है. यह सैन्य अभ्यास सालाना तौर पर भारत और अमेरिका के बीच आयोजित होता है. इसके पिछले संस्करण का आयोजन अक्टूबर 2021 में अमेरिका के अलास्का में ज्वाइंट बेस एलमेन्ड्राफ रिचर्डसन में किया गया था.
इस साल युद्धाभ्यास में भारतीय सेना की की असम रेजीमेंट की एक पूरी बटालियन हिस्सा ले रही है.यै बटालियन फिलहाल सेना की लखनऊ स्थित मध्य कमान (सूर्या कमान) की एक इंडीपेंडेट ब्रिगेड की अधीन है.भारतीय सेना की असम रेजीमेंट का आदर्श-वाक्य 'तगड़ा रहो' है.
यूएस आर्मी की 11 एयरबॉर्न डिवीजन ले रही है हिस्सा
युद्धाभ्यास में अमेरिकी सेना की 11 एयरबॉर्न डिवीजन की सेकेंड (2) ब्रिगेड हिस्सा ले रही है. इन अमेरिकी पैरा-ट्रूपर्स को 'स्पार्टन्स' (स्पार्टा) के नाम से जाना जाता है. भारतीय सेना के मुताबिक, युद्धाभ्यास के दौरान फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज, इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप, फोर्स मल्टीप्लायर्स, निगरानी ग्रिड की स्थापना और संचालन, ऑपरेशन्ल लॉजिस्टिक और पर्वतीय युद्ध कौशल को शामिल किया गया है.
साझा युद्धाभ्यास से क्या फायदा होगा?
प्रशिक्षण के दौरान कॉम्बेट इंजीनियरिंग, 'अनमैन्ड एयरक्राफ्ट सिस्टम’ (यूएएस) और यूएएस का मुकाबला करने वाली तकनीकों का इस्तेमाल सहित युद्ध कौशल की अन्य रणनीति का आदान प्रदान किया गया. भारतीय सेना ने कहा कि यह युद्धाभ्यास दोनों देशों की सेनाओं को अपने व्यापक अनुभवों, कौशलों को साझा करने तथा सूचना के आदान-प्रदान से अपनी तकनीकों के विस्तार का अवसर प्रदान किया.हालांकि भारत और अमेरिका की ये एक्सरसाइज यूएन यानि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत हो रही है लेकिन इसकी धमक हिमालय के पार तक जरूर सुनाई पड़ेगी.
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