नई दिल्ली: भारत और उज्बेकिस्तान के बीच दूसरा साझा युद्धाभ्यास, ‘डस्टलिक’ उत्तराखंड के चौबटिया (रानीखेत) में शुरू हो गया है (10-19 मार्च). दस दिनों तक चलने वाले इस युद्धाभ्यास के दौरान दोनों देशों की सेनाएं यूएन (संयुक्त राष्ट्र) के चार्टर के तहत पर्वतीय क्षेत्र के ग्रामीण और शहरी परिवेश में काउंटर-टेरेरिज्म और काउंटर-इनसर्जेंसी ऑपरेशन ड्रिल में हिस्सा लेंगे. भारतीय सेना के मुताबिक, इस साझा युद्धाभ्यास से दोनों देशों के बीच सैन्य और राजनयिक संबंधों को मजबूत होने में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही दोनों देशों का आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के संकल्प को भी दर्शाता है.


भारतीय सेना ने बयान जारी कर कहा कि इस सालाना ‘डस्टलिक’ (उजबेक भाषा में दोस्ती) युद्धाभ्यास में दोनो देशों के 45-45 सैनिक हिस्सा ले रहे हैं. रानीखेत के चौबटिया में दोनों देशों की टुकड़ियां इस दौरान काउंटर-टेरेरिस्ट ऑपरेशन्स के युद्ध-कौशल और दक्षता को एक दूसरे से साझा करेंगी. पहली डस्टलिक एक्सरसाइज वर्ष 2019 में उजबेकिस्तान की राजधानी, ताशकंद में हुई थी. डस्टलिक युद्धाभ्यास की वैलीडेशन-एक्सरसाइज 17-18 मार्च को होगी जब एक हफ्ते की ट्रेनिंग को दोनों देशों की टुकड़ियां वास्तविक ऑपरेशन्स की चुनौतियों का सामना करने की ड्रिल करेंगे.



बता दें कि हाल के सालों में भारत ने मध्य-एशिया के देशों से अपने संबंध मजबूत करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं. इसी कड़ी में उज्बेकिस्तान की सेना से डस्टलिक युद्धाभ्यास शामिल है. दोनों देश शंघाई कॉपरेशन ऑर्गेनाईजेश (एससीओ) के सदस्य हैं और आतंकवाद से लड़ने की प्रतिबद्धता जाहिर कर चुके हैं.


चीन के मध्य-एशिया में बढ़ते कदमों को रोकने के लिए भी भारत मध्य-एशियाई देशों से अपने संबंध मजबूत करने मे जुटा है. क्योंकि चीन का बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) प्रोजेक्ट मध्य एशिया के उन देशों से ही गुजरता है जहां से प्राचीन सिल्क-रूट निकलता था. इन देशों में उज्बेकिस्तान भी शामिल है. चीन ने उज्बेकिस्तान तक रेल सेवा शुरू करने का भी प्रस्ताव दिया है.


साल 1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल था जिसने सबसे पहले उज्बेकिस्तान को स्वतंत्र देश की मान्यता दी थी. हालांकि, भारत और उज्बेकिस्तान के संबंध प्राचीन काल से हैं. माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से जिन शक-राज्य के सैनिकों ने हिस्सा लिया था, वे उजबेक-मूल के थे. बाद में मुगल-राज्य की स्थापना करने वाला बाबर भी उज्बेकिस्तान के समरकंद का रहने वाला था. बाबर, समरकंद के फरगना के एक कबीले का सरदार था और 16वीं सदी में अफगानिस्तान के रास्ते भारत आया था.


जब उत्तराखंड के चौबटिया में भारत और उज्बेकिस्तान की सेनाएं साझा युद्धाभ्यास करने में जुटी हैं तो, एक और मध्य-एशियाई देश, तुर्कमेनिस्तान के स्पेशल फोर्स के कमांडोज़ भी हिमाचल प्रदेश के नाहन में भारतीय सेना के स्पेशल फोर्सेज़ के ट्रेनिंग स्कूल में पैरा-जंप का अभ्यास कर रहे हैं.


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