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भारत में कितनी कामयाब है गठबंधन की राजनीति, 70 साल पहले क्यों साथ आई थीं कई पार्टियां?

देश में पहली बार जनता पार्टी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार सत्ता में आई थी और मोरारजी देसाई को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया था. आइए जानते हैं कि अब तक भारत की राजनीति में कितनी बार गठबंधन सरकार बनी.

साल 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले जिसके मद्देनजर सभी पार्टियों ने अपनी अपनी तैयारियां तेज कर ली है. एक तरफ जहां देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने अन्य 26 विपक्षी पार्टियों के साथ INDIA यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस नाम का गठबंधन बना लिया है. तो वहीं दूसरी तरफ एनडीए की 38 पार्टियों ने भी कुछ दिन पहले ही दिल्ली में अपनी रणनीति पर मंथन किया था.

17 जुलाई को INDIA और NDA में हुई बैठक से ये तस्वीर तो लगभग साफ हो गई है कि आने वाला आम चुनाव NDA बनाम INDIA होने वाला है. राजनीति में पहले भी ऐसे कई मौके आए हैं, जहां दो गठबंधन आपस में भिड़ चुके हैं. देश में तो कई बार गठबंधन की सरकार बन चुकी हैं.

1999 में बीजेपी तो 2004 और 2009 में कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर पूरे 5 साल तक देश पर शासन किया. इस रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर भारत की राजनीति में गठबंधन की सरकार कितनी सफल रही है?

जब कांग्रेस के विकल्प के तौर पर बना जनसंघ
1947 में भारत के आजाद होने के बाद जब देश मेपहली अंतरिम सरकार बनी उस वक्त जवाहर लाल नेहरू ने अपने कैबिनेट में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी मंत्री बनाया था, लेकिन मुखर्जी नेहरू और पाकिस्तान के पहले पीएम लियाकत अली खान के बीच हुए समझौते को लेकर नाराज थे. उन्होंने साल 19 अप्रैल 1950 में इस समझौते को मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति करार देते हुए केंद्रीय उद्योग मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया 

इस्तीफे के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नई राजनीतिक पार्टी बनाने का बीड़ा उठाया. केंद्रीय उद्योग मंत्री पद से इस्तीफे के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी गुरु गोलवलकर से मिले. वह उस वक्त आरएसएस के सरसंघचालक थे. उनके साथ मिलकर ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ के गठन की रणनीति बनाई. इसके बाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय इन तीनों ने एक साथ मिलकर 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में भारतीय जनसंघ की स्थापना की. 

जनसंघ को बीजेपी की पितृ पार्टी कहा जाता है

जनसंघ 21 अक्टूबर 1951 में पैदा हुई और 25 साल बाद इसी पार्टी का विलय जनता पार्टी में हो गया. हालांकि बाद में जनता पार्टी में टूट का कारण भी यही जनसंघ बना. जनता पार्टी में टूट के बाद इसी पार्टी में शामिल जनसंघ के नेताओं ने 80 के दशक की शुरुआत में एक नई पार्टी की स्थापना की और उसका नाम रखा गया भारतीय जनता पार्टी.

पहले आम चुनाव में जनसंघ को सिर्फ तीन सीटें मिली

मुखर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी तो बना ली लेकिन यह पार्टी अपने पहले आम चुनाव में कांग्रेस को कुछ खास नुकसान नहीं पहुंचा पाई. दरअसल 1952 में हुए आम चुनाव में जनसंघ सिर्फ तीन सीटें जीतने में कामयाब हो पाई थी. जिसमें एक सीट खुद श्यामा प्रसाद मुखर्जी की थी. 

श्यामा प्रसाद संसद में अक्सर ही नेहरू की कश्मीर नीतियों का विरोध करते थे. उन्होंने कांग्रेस के विरोध में छोटी-छोटी पार्टियों को साथ लाने की पहल की और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से गठबंधन बनाया. इस गठबंधन में लोकसभा के 32 और राज्यसभा के 10 सांसद शामिल थे. हालांकि नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट को विपक्षी पार्टी की मान्यता नहीं मिली.  

केंद्र में बनी पहली गठबंधन सरकार की कहानी 

गठबंधन सरकार के इतिहास को देखें तो इसकी शुरुआत 1977 में जनता पार्टी की सरकार से हुई थी. दरअसल, देश में इमरजेंसी खत्म होने के बाद साल 1977 में पहली बार आम चुनाव हुए. उस वक्त इंदिरा सरकार में इमरजेंसी लगाए जाने की वजह से जनता गुस्से में थी, जिसका सीधा असर आम चुनाव के परिणाम पर पड़ा और कांग्रेस साल 1977 की लोकसभा चुनाव हार गई. 

चुनाव से पहले 13 दलों ने जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन किया था. हालांकि, इस गठबंधन में 2 साल में ही दरार पड़ने लगे. दरअसल चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. जिसे देखते हुए मोरारजी देसाई ने साल 1979 में पीएम पद से इस्तीफा दे दिया.

देसाई के बाद चौधरी चरण सिंह भारत के प्रधानमंत्री बने. हालांकि वह इस पद पर 6 महीने भी नहीं रह सके.

साल 1980 में जनता पार्टी की सरकार भी गिर गई और इसी साल लोकसभा चुनाव हुए. चुनाव से पहले जनता पार्टी ने जगजीवन राम को पीएम उम्मीदवार बनाया. लेकिन इस चुनाव में जनता पार्टी को सिर्फ 31 सीटें ही मिल पाई. इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर 350 सीटें अपने नाम कर लिया था. 

केंद्र में कब कब बनी गठबंधन सरकार 

       गठबंधन                       साल      प्रधानमंत्री
     जनता पार्टी       1977-79      मोरारजी देसाई
जनता पार्टी (सेक्युलर)      1979-1980     चरण सिंह
  राष्ट्रीय मोर्चा               1989-1990      वीपी सिंह 
  जनता दल (सोशलिस्ट)      1990-1991       चन्द्रशेखर 
  संयुक्त मोर्चा      1996-1997      एचडी देवगौड़ा
  संयुक्त मोर्चा      1997-1998   इंद्र कुमार गुजराल
भाजपा नेतृत्व वाला गठबंधन     1998-1999   अटल बिहारी वाजपेयी
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन  (NDA)   1999-2004   अटल बिहारी वाजपेयी
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA)    2004-2009  मनमोहन सिंह 
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन   2009-2014  मनमोहन सिंह
 एनडीए    2014-2019   नरेंद्र मोदी 

गठबंधन की सरकार में अस्थिरता

साल 1980 से 1989 देश में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में रही. लेकिन साल 1989 में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी और वीपी सिंह प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री पद का शपथ ग्रहण किया. लेकिन पीएम पद संभालने के 11 महीने बाद बीजेपी ने इस गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया था. वीपी सिंह की सरकार इसलिए गिर गई.

जिसके बाद 10 नवंबर 1990 में कांग्रेस ने इस गठबंधन को समर्थन दिया और चंद्रशेखर सिंह प्रधानमंत्री बने. चंद्रशेखर सिंह 21 जून 1991 तक ही प्रधानमंत्री रह सके. इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई सरकार बनी और उन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

साल 1996 में बना यूनाइटेड फ्रंट
 
साल 1996 में लोकसभा चुनाव हुए. परिणाम आया तो किसी भी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. उस वक्त बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री भी बने, लेकिन उन्होंने सिर्फ 13 दिनों में ही इस्तीफा दे दिया.

1996 के आम चुनाव में जनता दल को 46 सीटें मिली थीं. जिसके बाद कई पार्टियों एक साथ मिले और यूनाइटेड फ्रंट नाम से गठबंधन बनाया. इस गठबंधन को कांग्रेस का भी समर्थन मिला था. जिसके बाद एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने. हालांकि कांग्रेस 10 महीने बाद ही अपना समर्थन वापस ले लिया और देवगौड़ा की सरकार गिर गई.

जिसके बाद जनता दल के नेता इंद्र कुमार गुजराल जनता कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने. लेकिन वो भी एक साल का भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उनकी सरकार भी गिर गई.

जब गठबंधन की सरकार ने कार्यकाल पूरा किया

साल 1998 में हुए आम चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए बनाया गया. गठबंधन की शुरुआत में इसमें 13 पार्टियां शामिल थीं.

साल 1998 के में हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 258 सीटों पर जीत दर्ज की और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. हालांकि ये सरकार भी पांच सालों का कार्यकाल नहीं खत्म कर पाई. दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी के पीएम पद संभालने के 13 महीने बाद ही जयललिता की अन्नाद्रमुक ने एनडीए से अपना समर्थन वापस ले लिया था.

इसके बाद साल 1999 में आम चुनाव हुए. जिसमें एनडीए के साथ 24 पार्टियां शामिल थी और बार फिर एनडीए की सरकार बनी. इस बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम पद का शपथ ग्रहण किया. यह भारत की पहली गठबंधन सरकार थी, जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था.

एनडीए के मुकाबले कांग्रेस का यूपीए
 
यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले बना गया गठबंधन है, जिसकी अगुवाई कांग्रेस कर रही थी. 2004 के आम चुनाव में यूपीए ने 222 सीटें अपने नाम की थी. उस वक्त समाजवादी पार्टी और लेफ्ट पार्टियों ने भी यूपीए को बाहर से समर्थन दिया था. हालांकि साल 2008 में लेफ्ट पार्टियों ने अपना समर्थन वापस ले लिया था उस वक्त समाजवादी पार्टी ने ही इस सरकार को गिरने से बचाया था.

इसके बाद साल 2009 में एनडीए बनाम यूपीए का चुनाव हुआ और दो गठबंधन पार्टियां एक दूसरे के आमने सामने आई. उस वक्त तक देश की लगभग सभी पार्टियां दो खेमों- यूपीए और एनडीए में बंट चुकी थी. उस चुनाव में भी यूपीए की जीत हुई. यूपीए की दोनों सरकारों में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे.

भारतीय में गठबंधन की सरकार कितनी अहम
 
पिछले कुछ आम चुनावों के परिणाम को देखे तो पाएंगे कि भारतीय राजनीति में गठबंधन की सरकार इस कदर हावी हो चुकी है कि उसके बिना सरकार नहीं बनती है. यूपीए की सरकार के बाद साल 2014 एक बार फिर एनडीए और यूपीए के बीच मुकाबला हुआ था.

हालांकि इस बार अकेले बीजेपी को 282 सीटें मिली थी. ये बहुमत के आंकड़े यानी 272 से ज्यादा था. इसके अलावा साल 2019 के हुए आम चुनाव में भी एनडीए को लगभग दो तिहाई बहुमत मिली थी. सिर्फ बीजेपी को 543 में से 303 सीटें मिली थी.  

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